महाभारत को “पंचम वेद” क्यों कहा जाता है
महाभारत को “पंचम वेद” क्यों कहा जाता है
महाभारत को “पंचम वेद” (पाँचवाँ वेद) कहा जाता है। यह उपाधि इसलिए दी गई क्योंकि यह न केवल हिंदू धर्म और दर्शन का महान ग्रंथ है, बल्कि इसमें वेदों का सार, नीति, धर्म, राजनीति, युद्धकला, योग, भक्ति, और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
क्यों कहा जाता है “पंचम वेद”?
- वेदों का सार समाहित है – महाभारत में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के ज्ञान को कथाओं और शिक्षाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- लोक भाषा में ज्ञान का प्रसार – वेद संस्कृत में होते हुए भी कठिन हैं, लेकिन महाभारत को कथा शैली में लिखा गया जिससे आम जनता भी इसे समझ सके।
- विविध विषयों का समावेश – इसमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, राजनीति, युद्धनीति, न्याय, कूटनीति, समाजशास्त्र, और अध्यात्म से जुड़े ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
- श्रीमद्भगवद्गीता – महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण भाग “भगवद्गीता” है, जिसे हिंदू धर्म का सबसे पवित्र और आध्यात्मिक ग्रंथ माना जाता है।
- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित – इसे महर्षि वेदव्यास ने लिखा, जो स्वयं वेदों के महान ज्ञाता थे, इसलिए इसे “पांचवाँ वेद” कहा गया।
अन्य उल्लेख
- स्कंद पुराण और अन्य शास्त्रों में महाभारत को “इतिहास” और “पंचम वेद” दोनों कहा गया है।
- महाभारत स्वयं कहता है:
“यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत्क्वचित्”,
अर्थात, “जो कुछ भी इस ग्रंथ में है, वह अन्यत्र भी मिलेगा, लेकिन जो यहाँ नहीं है, वह कहीं नहीं मिलेगा।”
निष्कर्ष
महाभारत केवल एक महाकाव्य ही नहीं, बल्कि वेदों का सार है। इसलिए इसे “पंचम वेद” की उपाधि दी गई। 🚩