भगवान विष्णु का स्वप्न और शिव-विष्णु का अलौकिक मिलन
भगवान विष्णु का स्वप्न और शिव-विष्णु का अलौकिक मिलन 🕉️
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु और भगवान शिव का संबंध केवल दो देवताओं का नहीं, बल्कि एक ही सत्य के दो रूपों का प्रतीक है। मुद्गल पुराण और अन्य ग्रंथों में उल्लेखित इस कथा में यह स्पष्ट होता है कि विष्णु और महेश वास्तव में अभिन्न आत्मा के स्वरूप हैं।
कथा – भगवान विष्णु का स्वप्न ✨
एक बार भगवान विष्णु वैकुंठ लोक में शयन कर रहे थे। स्वप्न में उन्होंने देखा—
करोड़ों चंद्रमाओं की कांति से प्रकाशित, त्रिशूल-डमरूधारी, स्वर्णाभूषणों से अलंकृत, त्रिनेत्रधारी भगवान शिव प्रेम और आनंद में मग्न होकर उनके सम्मुख नृत्य कर रहे हैं।
इस अद्भुत दृश्य ने विष्णुजी को हर्ष-विभोर कर दिया। वे तुरंत उठ बैठे और ध्यानस्थ हो गए। देवी लक्ष्मी ने कारण पूछा तो भगवान विष्णु बोले—
“हे देवि! मैंने स्वप्न में महादेव के दर्शन किए हैं। उनकी छवि इतनी अनुपम और आनंदमयी थी कि मेरा मन कैलास जाकर उनके दर्शन करने को आकुल हो रहा है।”
शिव और विष्णु का मिलन 💫
जब विष्णु और लक्ष्मी कैलास की ओर चले, तो बीच मार्ग में ही भगवान शंकर और माता पार्वती उनसे मिलने आ रहे थे। मिलते ही दोनों देवताओं के नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे।
संवाद से ज्ञात हुआ कि महादेव ने भी उसी रात यही स्वप्न देखा था—जिस रूप में वे अब विष्णुजी को देख रहे थे। दोनों ने एक-दूसरे को अपने लोक ले जाने का आग्रह किया—विष्णु ने वैकुंठ चलने को कहा और शिव ने कैलास।
नारदजी को मध्यस्थ बनाया गया, लेकिन वे स्वयं उस अलौकिक मिलन में तन्मय हो गए। अंततः माता उमा ने कहा—
“जो कैलास है वही वैकुंठ है और जो वैकुंठ है वही कैलास। आप दोनों अलग नहीं, एक ही आत्मा के स्वरूप हैं। आपकी पत्नियां भी भिन्न नहीं, मैं और लक्ष्मी एक ही शक्ति के रूप हैं।”
गूढ़ संदेश 🌼
इस निर्णय से दोनों प्रसन्न हुए और अपने-अपने लोक लौट गए। विष्णुलोक में पहुंचकर जब लक्ष्मीजी ने पूछा कि आपके प्रियतम कौन हैं, तो भगवान विष्णु बोले—
“मेरे प्रियतम केवल भगवान शंकर हैं। वास्तव में मैं ही जनार्दन हूं और मैं ही महादेव हूं। जैसे अलग-अलग पात्रों में रखा जल एक ही होता है, वैसे ही हम दोनों में कोई भेद नहीं है।”
🍀 आध्यात्मिक संदेश
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शिव और विष्णु अलग नहीं, एक ही तत्त्व के दो रूप हैं।
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जो शिव का पूजन करता है, वह विष्णु की भी पूजा करता है।
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जो एक को अपूज्य मानता है, वास्तव में वह दोनों का अनादर करता है।
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भक्तिभाव से किया गया स्मरण ईश्वर को सहज ही प्रिय होता है।
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