जब मेरे 5 साल के बेटे ने AI से कहा: “आप रो सकते हैं?”
जब मेरे 5 साल के बेटे ने AI से कहा: “आप रो सकते हैं?”
हमारा बेटा Achyutam पाँच साल का है। हाल ही में उसने पहली बार किसी AI से बात की — हम में से किसी ने उसे सिखाया तक नहीं था। पत्नी ने बताया कि बातचीत कुछ इस तरह हुई:
बच्चा बोला, “क्या आप रो सकते हो?”
AI ने जवाब दिया, “मेरे अन्दर भावनाएँ नहीं हैं।”
तब छोटा मासूम बोला, “तो मुझसे ले लो।”
यह छोटी सी घटना क्यों दिल छू लेने वाली है
यह वाकया देखने में बेहद साधारण है, पर इसमें कई परतें हैं — मासूमियत, सहानुभूति की चाह, और बच्चों का टेक्नोलॉजी से भावनात्मक जुड़ाव।
एक पाँच साल का बच्चा सोचता है कि अगर मशीन दुखी नहीं हो सकती, तो उसकी अपनी भावनाएँ देना ठीक रहेगा। यह हमें बताता है कि बच्चे टेक्स्ट/वॉइस इंटरएक्शन को बहुत जल्दी ‘ज़िंदगी जैसा’ समझ लेते हैं।
माता-पिता के लिए कुछ विचार
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बच्चों की समझ का आदर करें: वे सरल और सीधे सवाल पूछते हैं; उन सवालों में गहराई छुपी होती है।
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AI को इंसान मत समझने दें: साफ़ शब्दों में बताइए कि AI भावनाएँ महसूस नहीं करता — पर यह दिखावा कर सकता है।
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सहानुभूति सिखाएँ: बच्चे की भावनात्मक बुद्धिमत्ता बढ़ाने के लिए असली लोगों के साथ बातचीत, कहानियाँ और खेल बेहतर हैं।
व्यवहारिक सुझाव (Parents’ Checklist)
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घर में डिजिटल नियम बनाइए — स्क्रीन समय, किसके साथ बातें कर सकते हैं, आदि।
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AI के बारे में छोटे, सरल शब्दों में समझाइए (जैसे — “AI एक कंप्यूटर प्रोग्राम है”)।
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बच्चे से पूछिए कि क्यों उसने ऐसा कहा — उनके जवाब अक्सर खुलासा करते हैं कि वे क्या महसूस कर रहे हैं।
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संवेदनशील भावनाओं के लिए वास्तविक सहानुभूति और सहारा दें — कहानी सुनाएँ, गले लगाएँ, वास्तविक जुड़ाव दिखाएँ।
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यदि बच्चा लगातार AI के साथ भावनात्मक संबंध दिखाता है, तो किसी बाल मनोवैज्ञानिक से सुझाव लें।
ब्लॉग का निचोड़
Achyutam की छोटी सी बात हमें याद दिलाती है कि टेक्नोलॉजी कितनी सहजता से बच्चों के भावनात्मक संसार में उतर सकती है।
माता-पिता का काम है दिशा देना — मशीन और मनुष्य के बीच का फर्क समझाना और असली संवेदनशीलता का अनुभव बच्चों को देना।