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ज्योतिष में जन्म-कुंडली फलादेश करने की विधि

ज्योतिष में जन्म-कुंडली फलादेश करने की विधि

*⭕कुंडली मे 1, 5, 9 भाव सबसे शुभ, 4, 7, 10 शुभ, 2, 3, 11 सम तथा 6, 8, 12 अशुभ कहें जाते हैं।*

1) ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि का पूरा फल व स्वराशि का आधा फल प्रदान करते हैं अर्थात मेष लग्न मे गुरु भाग्य स्थान का पूरा व द्वादश स्थान का आधा फल प्रदान करेगा यह नियम फलदीपिका के 15वे अध्याय भाव चिंता से लिया गया हैं।

2) ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार ग्रहो का अन्य ग्रहो व भावो पर प्रभाव उनके दीप्तांशो पर निर्भर करता हैं जो इस प्रकार से हैं। सूर्य 10 अंश, चन्द्र 5 अंश, मंगल 4 अंश, बुध 3.5 अंश, गुरु व शनि 4.5 अंश, शुक्र 3 अंश, राहू केतू जिस ग्रह की राशि मे होंगे उनके दीप्तांश उसी ग्रह के अनुसार होंगे। उदाहरण के लिए यदि लग्न 13 अंश का हैं और भाग्य स्थान मे गुरु 18 अंश का हैं तो गुरु का प्रभाव किसी भी दृस्ट गृह व भाव पर 4.5 अंश आगे या पीछे तक ही होगा इस प्रकार गुरु के अंश लग्न के अंश से अधिक होने पर उसका प्रभाव ना तो नवम भाव पर होगा और ना ही लग्न पर यदि यह अंतर 4.5 से कम होता तब प्रभाव होता। इस प्रकार अंतर अधिक होने पर गुरु का प्रभाव किसी भी भाव पर नहीं हैं। अब यदि तीसरे भाव मे सूर्य 10 अंश का हैं तो उसका प्रभाव तीसरे व नवम दोनों भावो पर होगा गुरु के अंश मे केवल 8 का अंतर होने से (सूर्य दीप्तांश से ज्यादा) सूर्य की गुरु पर दृस्टी मानी जाएगी जबकि गुरु की सूर्य पर नहीं। इसी प्रकार अन्य ग्रहो का प्रभाव होगा।

3) भाव स्वामी की अपेक्षा भाव का बलाबल प्रमुख होता हैं जिसके अनुसार यदि किसी भाव पर अशुभ प्रभाव पड़ रहा हो तो उसके स्वामी का बली होना अधिक सहायक नहीं होगा जबकि शुभ प्रभाव होने पर उसके स्वामी की निर्बलता कम करने मे सहायक होगा।

*🚩#हरिऊँ🚩*
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