शुभ चावल
शुभ चावल / Shubh Chawal
बात बहुत पुरानी है, पटना में गंगा किनारे के एक मुहल्ले में एक साधारण परिवार किराये के दो कमरे के घर में रहता था। परिवार में पति-पत्नी और तीन बच्चे दो लड़के और एक लड़की थे। राम स्वरूप प्राईवेट कम्पनी में काम करते और उनकी पत्नी प्रेमलता घर के काम खत्म करके सिलाई का काम करती थी। शहर में परिवार रखने का एकमात्र उद्देश्य बच्चों को उचित शिक्षा-संस्कार देना था, गाँव में बड़ा घर, खेती बाड़ी सब छोड़ कर बच्चों को शिक्षित कर अच्छी नौकरी में लगाने के लिए आये थे। दिन रात दोनों पति पत्नी मेहनत करते और सुनहरे भविष्य की कल्पना में खो जाते। तीनों बच्चे बहुत होशियार थे, सीमित साधनों के बावजूद वर्ग में हमेशा अच्छा करते। कपड़े, जूते या खिलौने के लिए दोस्तों को देखकर जीद करते तो प्यार से बहला-फुसला देते थे।
एक दिन की बात है कि उनकी बेटी अपने घर के पीले चावल को खाने से इंकार कर दिया, उसका कहना था कि उसकी सहेली के घर एकदम सफेद चावल बनता है। उसे भी सफेद चावल खाना है, असल में उनके घर कुकर एक ही था, दाल बनाकर भगोने में उलट देतीं और उसी में पानी से धोकर, चावल बना लेती थी।
जिससे चावल का रंग हल्का-सा पीला हो जाता था।
माँ ने बेटी को समझाते हुए कहा कि हम शुभ चावल खाते हैं, उदाहरण देते हुए बोली कि पूजा में चावल पीला इस्तेमाल किया जाता है। शादियों में चुमाने के लिए, छीटने के लिए रंगीन चावल ही प्रयोग में लाया जाता है। बच्चों का मन कोरा कागज-सा होता है, बच्ची समझ गई, हम शुभ चावल खाते हैं। माँ बहला फुसलाकर खाना खिलाया और भूल गई। बेटी के मन में बात घर कर गई। समय बीतता गया, बच्चों की सफलता से माँ-बाप खुश होते और दुगने जोश से अपने काम में लग जाते। बच्चे जवान हो गए, माता-पिता बुजुर्ग। बेटा इंजीनियर बन गया, बेटी बी.एड कर स्कूल में लग गई, छोटा बेटा प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी में लगा था। बेटा के लिए रिश्तों की लाईन लगने लगी , जो लोग उन्हें अपने बराबर बैठने लायक नहीं समझते थे वो भी रिश्ते लेकर आने लगे। भाई ने पहले बहन की शादी करने का विचार किया, बहन की शादी योग्य वर,प्रतिष्ठित परिवार देखकर कर दिया।
संयुक्त परिवार में शादी हुई, सास-जेठानियों का व्यवहार अच्छा था। छुट्टी के दिन रसोई में जेठानी के साथ लग कर कुछ मदद करने लगी। यहाँ ज्यादा लोग होने से चावल भगोने में बनता था, चावल बनाने में उसे शुभ करने के लिए हल्दी का डब्बा उठाया तो जेठानी बोली, ये क्या कर रही हो? चावल में हल्दी! यहाँ सफेद चावल खाते हैं? हमारे यहाँ शुभ करके खाया जाता है — मासूमियत से बोली। राम स्वरूप बहुत पूजा पाठ करते हैं, ये सभी जानने वालों को मालुम था। जेठानी को लगा किसी पुराण में लिखा होगा।
जेठानी बोली, नाममात्र का डालना सबको सफेद चावल ही पसंद है। बात आई-गई हो गई, सब अच्छा चल रहा था। भाई की शादी भी धूमधाम से हो गई, दुल्हन बहुत सुंदर, व्यवहार कुशल अच्छे घर में शादी हुई थी। शादी के बाद पहली रक्षाबंधन में, खुशी खुशी मायके गई। मजा आ गया, बातचीत में तीन की जगह चार हो गये। सब कुछ बदल गया था, घर, फर्नीचर, रहने का स्तर, नहीं बदला तो माँ-पिताजी का सौम्य व्यवहार और ईश्वर के प्रति भक्ति। एक चीज और बदल गया था, वो था पीला चावल !
खाना खाकर बेटी धीरे से बोली, माँ आज चावल सफेद था, भाभी को चावल शुभ करने के लिए नहीं बोली? शुभ चावल! माँ कुछ याद करते हुए बोली, मतलब क्या कहना चाहती हो? बेटी याद दिलाती हुई बोली, हमलोग पीला चावल खाते थे, शुभ होता है। तुमने कहा था। माँ की मुखमंडल पर खुशी हँसी की लहर दौड़ गई, खिलखिला कर हँसते हुए बोली कि बेटी हमारे पास तब एक कुकर था,उन्होंने पूरी बात बताई। ठहाके से कमरा गूंज गया। सब शांत हुए तब बेटी बोली कि मैं छ: महीने से ससुराल में सबको शुभ चावल खिला रही हूँ।
एक बार फिर सब हँसने लगे।