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गिलोय का शर्बत

गिलोय का शर्बत

गिलोय, एक अमृत तुल्य जड़ी बूटी है | गिलोय के औषधीय गुणों के कारण, आयुर्वेद में इसे दैवीय औषधि के नाम से जाना जाता है। इसका शर्बत, किसी भी प्रकार का ज्वर, मूत्र विकार, रक्त पित्त एवं दाह रोग में बहुत गुणकारी होता है।

1- घटक द्रव्य और निर्माण ——–
(1) ताजी गिलोय का रस 1 किलो को , इतना उबालें कि 500 ग्राम शेष रह जाएं। उसके बाद, उसमें 1 किलो पानी और 3 किलो चीनी मिलाकर, शरबत निर्माण विधि से, शरबत बना लें।
(2) 500 ग्राम गिलोय को कूट लें और आठ गुना ( 4 लीटर ) पानी में उबाल लें। 1 किलो पानी शेष रहने पर, उतार कर छान लें। अथवा 1 किलो गिलोय अर्क में, एक 1 किलो पानी में , 2 किलो चीनी मिलाकर, शरबत निर्माण विधि से शरबत बना लें।

2- गुणकारी और उपयोगी ———
* यह शरबत, सभी प्रकार के बुखार को नष्ट कर देता है और बुखार की तेजी को कम कर देता है।
* पित्त विकार, मूत्र की जलन, ह्रदय और सीने की जलन व आंखों की जलन तथा लालपन में लाभ देता है।
* कम मात्रा में मूत्र का आना और वात रक्त ( गठिया का तेज दर्द, लालिमा और जोडो़ के दर्द ) में आराम देता है।
* हलीमक ( यकृत की सूजन और पीलीया ) , रक्त पित्त ( मूत्र में रक्त का आना ), जीर्ण ज्वर पुराना बुखार ) आदि रोगों में , इसका सेवन

लाभदायक है।
* धातुगत ज्वर ( जो बुखार किसी न किसी ऊतक के अंदर जिद्दी रूप से गहरे तक बैठे रहते हैं, उन्हें धातुगत ज्वर कहते हैं ) को नष्ट कर देता है।
* प्यास की अधिकता व पसीने में दुर्गंध आना रोग में भी , इसका सेवन करना चाहिए ।
* पूयमेह ( एक प्रकार गुप्त रोग, सुजाक ) को नष्ट कर देता है।
* प्रमेह रोग ( एक यौन संचारित जीवाणु संक्रमण है, जो उपचार न किए जाने पर, बांझपन का कारण बन सकता है) में भी, इसका सेवन करने से लाभ होता है।

3- मात्रा और अनुपान ——–
20 से 40 ग्राम तक में , चार गुना पानी मिलाकर , सुबह – शाम सेवन करना चाहिए।

विशेष ——
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