#परमात्मा
एक स्त्री को पीलिया हो गया। वैद्य जी ने पंद्रह दिन तक पूरा आराम करने को कहा। वह स्त्री यह सुन कर सोच में पड़ गई।
घर का बाकी काम तो जैसे तैसे हो जाता, पर उसकी चिंता का मूल कारण यह था कि उसे अपने बगीचे से बहुत प्यार था। जून का गर्म महीना था, “पंद्रह दिन कौन मेरे बगीचे में पानी देगा?” यह सोच उसे परेशान कर रही थी। उसके बारह साल के बेटे ने कहा- माँ! तूं चिंता ना कर। बगीचा मैं संभाल लूंगा। पंद्रह दिन तक उस बेटे ने सुबह दोपहर शाम बगीचे में बिता दिए। माँ जब भी आवाज लगाती कि बेटे तूं कहाँ है? बाहर से बेटे की आवाज आती- बगीचे में हूँ माँ!
आखिर पंद्रह दिन बीते। तब तक उसका पीलिया भी ठीक हो गया था। इतने दिनों बाद आज वह अपने बगीचे में आई। बगीचा देखते ही उसकी चीख निकल गई। पूरा बगीचा सूख चुका था। उसने अपने बेटे से पूछा- आखिर तूने इतने दिन इस बगीचे में किया क्या? बेटा रोने लगा, बोला- माँ! मालूम नहीं ऐसा कैसे हुआ? मैंने तो हर एक टहनी को पानी दिया, हर पत्ते पर पानी छिड़का। फिर भी एक एक दिन बीतता गया और बगीचा सूखता गया। माँ ने पूछा- मूर्ख! तूने इन पौधों की जड़ों को पानी दिया या नहीं?
बेटा बोला- जड़? वो क्या चीज होती है? कहाँ होती है? मैंने तो कभी नहीं देखी। मुझे तो इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम। हमें उस बच्चे की नादानी पर हैरान नहीं होना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि वह बच्चा मूर्ख था, जो इतना भी नहीं जानता था कि जड़ क्या होती है? और पानी पत्तों को नहीं, जड़ को दिया जाता है। हम भी उतने ही मूर्ख हैं। बल्कि हम तो महामूर्ख हैं। कारण कि वह तो बच्चा था। हम तो पचपन में हैं, तब भी बचपन में ही हैं।
जगत वृक्ष है, परमात्मा इस वृक्ष की जड़ है। हम भी जगत ही संभालते हैं, परमात्मा नहीं संभालते। हमें भी इतनी तक जानकारी नहीं है की जगत रूपी वृक्ष, परमात्मा रूपी जड़ को सींचने से ही लहलहाता है। तब हमारे भी जीवन का बगीचा सूख जाए तो इसमें हैरानी की कौन सी बात है?