द्वापर युग मे बने वही दुर्लभ योग बन रहे है इस जन्मष्टमी 2024 को
द्वापर युग मे बने वही दुर्लभ योग बन रहे है इस जन्मष्टमी 2024 को
“इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी पर वही दुर्लभ योग-संयोग बन रहे हैं जो 5251 वर्ष पूर्व द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म के समय बने थे। 26 अगस्त 2024, सोमवार को, इस विशेष पर्व के अवसर पर जयंती योग, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि में चंद्र और सोमवार का संयोग एक साथ आ रहा है। इस बार की जन्माष्टमी इन अद्वितीय योगों के साथ मनाई जाएगी, जिसमें पूजा और व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा।
श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग के 28वें मन्वंतर में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में, जयंती योग और रोहिणी नक्षत्र के संयोग के साथ हुआ था। इस बार भी यही योग संयोग दोहराए जा रहे हैं। रोहिणी नक्षत्र 26 अगस्त को दोपहर 03:55 से प्रारंभ होकर 27 अगस्त को सुबह 03:38 पर समाप्त होगा, जबकि अष्टमी तिथि 26 अगस्त को तड़के 03:39 बजे प्रारंभ होकर 27 अगस्त को 02:19 बजे समाप्त होगी।
इसके अतिरिक्त, इस दिन वृषभ राशि में चंद्रमा और गुरु की युति से गज-केसरी योग बनेगा, मंगल का गोचर मिथुन में होगा, और बुध का उदय कर्क में होगा। शनि के अपनी राशि में केंद्र में होने से शश राजयोग भी बन रहा है। सर्वार्थसिद्धि योग 26 अगस्त की दोपहर 03:55 से 27 अगस्त की सुबह 05:57 तक रहेगा, जो इस पर्व को और भी विशेष बना देगा।”
जन्माष्टमी पूजा विधि का पालन करके श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का विशेष महत्व है। यहां एक सरल और प्रभावी पूजा विधि दी गई है:
1. पूजा की तैयारी:
- स्नान और साफ-सफाई: सबसे पहले, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें और वहां गंगाजल का छिड़काव करें।
- पूजा सामग्री: भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी), तुलसी के पत्ते, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई (माखन-मिश्री), फल, जल का कलश, और एक लकड़ी का आसन।
2. कलश स्थापना:
- पूजा स्थल पर एक स्वच्छ स्थान पर जल से भरा कलश स्थापित करें। इसके पास धूप-दीप जलाकर वातावरण को पवित्र करें।
3. श्रीकृष्ण की मूर्ति की स्थापना:
- श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें। मूर्ति को पीले या सफेद वस्त्र में लपेटकर रखें।
4. भगवान का अभिषेक:
- पंचामृत से भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। अभिषेक के बाद उन्हें स्वच्छ जल से स्नान कराएं। इसके बाद मूर्ति को सूखे वस्त्र से पोंछकर उन्हें वस्त्र और आभूषण पहनाएं।
5. पूजन और आरती:
- भगवान श्रीकृष्ण को पुष्प, चंदन, तुलसी पत्र, और माखन-मिश्री का भोग अर्पित करें। भगवान के सामने धूप-दीप जलाएं और श्रीकृष्ण मंत्रों का जाप करें।
- श्रीकृष्ण की आरती करें, “ओम जय जगदीश हरे” या “नंदलाल आरती” गाकर भगवान की आरती करें।
6. कथा और भजन:
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की कथा सुनें या सुनाएं। भगवान श्रीकृष्ण के भजन गाएं और मृदंग या झांझ बजाएं।
7. मध्यरात्रि पूजा:
- रात 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के समय विशेष पूजा करें। भगवान को झूला झुलाएं और उनका जन्म उत्सव मनाएं।
8. प्रसाद वितरण:
- पूजा के बाद, पंचामृत, माखन-मिश्री, और अन्य प्रसाद सभी भक्तों में बांटें।
9. व्रत का पारण:
- व्रत रखने वाले भक्त अगले दिन सुबह स्नान कर भगवान को भोग अर्पित कर व्रत खोलें।
इस प्रकार विधिपूर्वक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
आरती कुंजबिहारी की
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुंडल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली, भृकुटी बिलासि रही लिलाली
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
ललित छवि त्रिभुवन मोहे, मनमोहक मुरली मनमोहे
सुर नर मुनि जन मन लोहे, कंठ भुज बंधन छवि सोहे
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
कन्हैया श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की,
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली, भृकुटी बिलासि रही लिलाली
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
Jai Shri Krishna!