केरल में ओणम पर्व आज से शुरू
केरल में ओणम पर्व आज से शुरू
ओणम का त्यौहार दक्षिण भारत के सर्वाधिक प्रमुख त्यौहारों में से एक है जो बेहद ख़ास माना जाता है। ओणम के पर्व को मुख्य रूप से केरल में मनाया जाता हैं, लेकिन इसकी रौनक समूचे दक्षिण भारत में दिखाई देती है। ओणम को मलयालम भाषा में थिरुवोणम भी कहा जाता हैं। यह प्रीतिभोज,नाच-गान और खुशियां मनाने का पर्व है।
ओणम का महत्व
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हिन्दू पंचांग के अनुसार, दस दिनों तक निरंतर चलने वाले ओणम के प्रत्येक दिन का विशेष महत्व माना गया है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार, चिंगम महीने में श्रावण या थिरुवोणम नक्षत्र के प्रबल होने की स्थिति पर थिरु ओणम का पूजन किया जाता है। मलयालम में श्रावन नक्षत्र को थिरु ओनम कहते है।
ओणम दक्षिण भारत में मुख्यतः केरल का सबसे प्राचीन और पारंपरिक उत्सव है। देशभर में जिस प्रकार दशहरा, दुर्गापूजा और गणेशोत्सव दस दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता हैं उसी प्रकार केरल में दस दिवसीय ओणम पर्व को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दस दिन तक निरंतर चलने वाले ओणम का दसवाँ और अंतिम दिन बेहद ख़ास माना जाता है जिसे थिरुवोणम कहा जाता हैं।
मलयालम कलैंडर के अनुसार, ओणम को प्रतिवर्ष चिंगम के महीने में मनाया जाता है। मलयालम लोगों द्वारा चिंगम को साल का पहला महीना माना जाता है। इसी प्रकार, हिन्दू कलैंडर के अनुसार, चिंगम का महीना अगस्त या सितंबर का होता है। दस दिवसीय ओणम के हर दिन का अपना अलग महत्व होता हैं। ओणम के पर्व के दौरान लोग अपने घरों को 12 दिनों तक फूलों से सजाते हैं, साथ ही इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु एवं महाबली की पूजा-अर्चना करने का विधान हैं। ओणम का पर्व नयी फसल की खुशी में भी मनाया जाता है।
थिरुवोणम और इसका महत्व
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थिरुवोणम शब्द की उत्पति ‘थिरु और ओणम’ दो शब्दों से मिलकर हुई है, अर्थात “थिरु” का अर्थ है ‘पवित्र’, यह संस्कृत भाषा के ‘श्री’ शब्द के तुल्य माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्रत्येक वर्ष राजा महाबलि पाताल लोक से धरती पर अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने के लिए आते हैं। इसके अतिरिक्त थिरुवोणम के साथ अनेक आस्थाएँ जुड़ी हुई हैं, इन्ही में से एक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था।
इस त्यौहार के लिए केरल में चार दिवसीय अवकाश रहता है जिसका आरम्भ थिरुवोणम से एक दिन पूर्व होता है और उसके दो दिन बाद यह पर्व समाप्त होता है। इन चार दिनों को प्रथम ओणम, द्वितीय ओणम, तृतीय ओणम और चथुर्थ ओणम के रुप में जाना जाता हैं। द्वितीय ओणम का दिन मुख्य रुप से थिरुवोणम के नाम से विख्यात है।
दस दिवसीय पर्व ओणम
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प्रथम दिन:एथम या अथम: ओणम के प्रथम दिन सभी लोग प्रातःकाल जल्दी उठकर मंदिर में ईश्वर की उपासना करते हैं। इस दिन सुबह के नाश्ते में केला और पापड़ का सेवन करते हैं। इस नाश्ते को अधिकांश लोगों द्वारा पूरे ओणम के दौरान ग्रहण किया जाता हैं, उसके बाद लोग ओणम पुष्पकालीन या पूकलम बनाते हैं।
दूसरा दिन-चिथिरा: ओणम के दूसरा दिन का आरम्भ भी पूजा के साथ होता है। उसके बाद महिलाओं द्वारा पुष्प का लीन में नए पुष्पों को जोड़ा जाता हैं और यह सभी फूल पुरुषों द्वारा लाएं जाते हैं।
तीसरा दिन-चोधी: इस पर्व का तीसरा दिन बेहद ख़ास होता है, क्योंकि इस दिन थिरुवोणम की तैयारियां करने के लिए लोग ख़रीदारी करते हैं।
चौथा दिन-विसाकम: ओणम के चौथे दिन कई स्थानों पर फूलों का कालीन बनाने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। इस दिन महिलाओं द्वारा ओणम के अंतिम दिन के लिए अचार, आलू की चिप्स आदि तैयार किये जाते हैं।
पाँचवां दिन-अनिज़ाम: ओणम पर्व के पांचवे दिन का मुख्य आकर्षण नौका दौड़ प्रतियोगिता होती है जो वल्लमकली के नाम से जानी जाती हैं।
छठा दिन-थ्रिकेता: इस दिन अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है जिसमे सभी उम्र के लोग हिस्सा लेते हैं, साथ ही लोग इस दिन अपने प्रियजनों को बधाई देने के लिए भी जाते हैं।
सातवां दिन- मूलम: इस दिन लोगों का जोश एवं उत्साह चरम पर होता है। बाज़ार अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थों से सजे होते हैं। सभी लोग घूमने के अलावा पकवानों एवं व्यंजनों की कई किस्मों का लुत्फ़ उठाते हैं।
आठवां दिन-पूरादम: ओणम के आठवें दिन लोगों द्वारा मिट्टी के पिरामिड के आकार की मूर्तियों का निर्माण किया जाता हैं। इस मूर्तियों को ‘माँ’ कहकर पुकारा जाता हैं और पुष्प अर्पित किये जाते हैं।
नौवां दिन-उथिरादम: इस दिन को प्रथम ओणम भी कहा जाता है। यह दिन लोगों के लिए अत्यंत विशेष होता है, क्योंकि इस दिन लोग अपने राजा महाबलि का इंतज़ार करते है।
दसवाँ दिन-थिरुवोणम: ओणम त्यौहार का सर्वाधित महत्वपूर्ण दिन होता है थिरुवोणम। जैसे ही इस दिन राजा का धरती पर आगमन होता है सभी लोग एक-दूसरे को बधाई देने लगते हैं। इस दिन कई तरह की ख़ूबसूरत पुष्प कालीन बनाई जाती है। ओणम के लिए तैयार किये गए पकवानों को थालियों में सजाया जाता है और साध्या तैयार किया जाता है। यह दिन दूसरा ओणम के नाम से भी प्रसिद्ध है।
ओणम का पर्व थिरुवोणम के उपरांत भी दो दिनों तक मनाया जाता है अर्थात यह त्यौहार कुल 12 दिनों तक मनाया जाता है, हालाँकि ओणम में पहले के 10 दिन ही मुख्य होते हैं।
ओणम का सांस्कृतिक महत्व
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ओणम के दौरान केरल की संस्कृति और परंपराओं को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भाईचारे, समृद्धि, और एकता का प्रतीक है. विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग इसे मिलजुल कर मनाते हैं, जिससे समाज में एकता और सांस्कृतिक विविधता की भावना बढ़ती है।ओणम के इस समय, केरल के लोग अपने पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं, और पूरे उत्सव के दौरान आनंद और उत्साह का माहौल रहता है। यह त्योहार जीवन की खुशियों और समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
ओणम की कथा
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धर्म शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में महाबलि नामक एक शक्तिशाली राजा थे जिनका तीनों लोकों भू, देव और पाताल पर राज था। राक्षस योनि में जन्म लेने के बावजूद भी उदार एवं दयालु होने के कारण उनकी प्रजा उन्हें बहुत प्यार करती थी, लेकिन देवता उनसे नाख़ुश थे, इसका कारण था महाबलि ने देवताओं को युद्ध में परास्त करने के बाद देवलोक पर शासन किया था। युद्ध में पराजित होने के बाद सभी देवता सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उनसे देवलोक वापस दिलाने की प्रार्थना की।
देवताओं की सहायता के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया, जिसमें वे एक बौने ब्राह्मण बने। वामन का रुप धारण कर भगवान विष्णु राजा महाबलि के दरबार में पहुँचे। राजा बलि ने जैसे ही ब्राह्मण से उनकी इच्छा के बारे में पूछा, तो भगवान विष्णु ने उनसे तीन क़दम ज़मीन मांगी। राजा महाबलि ने यह सुनते ही हाँ कह दिया और तभी भगवान विष्णु अपने असली रूप में प्रकट हुए।
उन्होंने अपने पहले कदम देवलोक में रखा जबकि दूसरा कदम भू-लोक में, इस प्रकार तीसरे क़दम के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो राजा ने अपना सिर उनके आगे कर दिया। विष्णुजी ने उनके सिर पर अपना पैर रखा और इस तरह राजा महाबलि पाताल लोक पहुँच गए। राजा ने यह सब बेहद विनम्र भाव से किया। राजा की विनम्रता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा, तब महाबलि ने कहा कि, हे प्रभु! मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि मुझे वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने का अवसर दिया जाए। भगवान ने उनकी इच्छा को स्वीकार कर लिया, इसी के फलस्वरूप थिरुवोणम के दिन राजा महाबलि धरती पर अपनी प्रजा से मिलने आते हैं।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175