एक अनोखी ट्रेन यात्रा की कहानी
एक अनोखी ट्रेन यात्रा की कहानी
रोज़ की तरह, हम सभी प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा हुए। ट्रेन का इंतज़ार करते हुए, हमारी बातचीत संदीप पर आकर रुक गई। संदीप, जो कभी हमारा दोस्त हुआ करता था, आज हमारी चर्चा का विषय बन गया। हम सभी ने उसके धोखे और झूठ की कहानियों को याद किया।
संदीप ने हमें बताया था कि उसकी पत्नी बीमार है और उसे ब्रेन हैमरेज हो गया है। उसने कहा था कि इलाज के लिए लाखों रुपये की ज़रूरत है और इसी बहाने उसने हम सभी से पैसे उधार लिए। हम में से किसी ने भी उसकी बात पर शक नहीं किया। हर किसी ने उसकी मदद करने की कोशिश की। लेकिन बाद में पता चला कि यह सब एक झूठ था। संदीप ने हम सभी को बेवकूफ बनाया था। वह एक धोखेबाज़ था, जो लोगों की भावनाओं से खेलता था।
फौजी भाई राधाकांत ने कहा, “मैंने उसे 1.25 लाख रुपये दिए थे, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैंने गलती की।” ठाकुर आर.के. सिंह साहब ने भी सिर हिलाते हुए कहा, “मैंने भी उसे 85,000 रुपये दिए, लेकिन अब मुझे एहसास हो रहा है कि मैं भी उसके जाल में फंस गया।”
हम सभी यही बात कर रहे थे कि ऐसे लोगों की वजह से जिन्हें सच में मदद की ज़रूरत होती है, उन्हें मदद नहीं मिल पाती। राधाकांत जी ने बताया कि वे संदीप के घर भी गए थे। उन्होंने उसकी पत्नी से मुलाकात की, लेकिन उसने कहा कि संदीप घर पर नहीं है। उसने घर का ताला लगाकर दूसरे के घर चली गई। साथ ही, उसने यह भी कहा, “क्या आपने पैसे मुझसे पूछकर दिए थे?”
यह सुनकर हम सभी हैरान रह गए। हमें एहसास हुआ कि संदीप ने न सिर्फ हमें धोखा दिया, बल्कि अपने परिवार को भी झूठ के जाल में फंसाया।
ट्रेन आने का समय हो गया था। हम सभी चुपचाप ट्रेन में बैठ गए। इस यात्रा में हमारे मन में कई सवाल थे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या हम फिर कभी किसी पर विश्वास कर पाएंगे?
यह यात्रा सिर्फ एक शहर से दूसरे शहर तक की नहीं थी, बल्कि यह हमारे विश्वास और इंसानियत की यात्रा थी। और शायद, इस यात्रा ने हमें यह सबक दिया कि दूसरों की मदद करना ज़रूरी है, लेकिन साथ ही सतर्क रहना भी उतना ही ज़रूरी है।