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समर्पण और सफर का साथी

समर्पण और सफर का साथी

राजकुमार गुप्ता जी, जो एक गैस एजेंसी के मैनेजर हैं, अपने अनुशासन और कर्मठता के लिए पूरे क्षेत्र में जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी नौकरी की शुरुआत करीब 35 साल पहले की थी। उस समय वह एक छोटे से गांव में रहते थे और रोज़ ट्रेन से सफर करके अपने कार्यस्थल तक पहुंचते थे।

हर दिन सुबह जल्दी उठकर स्टेशन पहुंचना, ट्रेन में सफर करना, और समय पर अपने दफ्तर पहुंचना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। सफर के दौरान उन्होंने अपने सहयात्रियों के साथ गहरी दोस्ती बनाई। उनके जीवन के कई किस्से ट्रेन के डिब्बों में ही पले-बढ़े।

उनके सहयात्री अक्सर कहते, “गुप्ता जी, आपका यह समर्पण देखकर हम भी प्रेरित होते हैं।” वह हमेशा मुस्कुराते हुए जवाब देते, “काम चाहे छोटा हो या बड़ा, उसे ईमानदारी और मेहनत से करना ही जीवन का असली मतलब है।”

गुप्ता जी ने न केवल अपने काम में उत्कृष्टता हासिल की, बल्कि अपनी यात्रा के दौरान दूसरों को भी जीवन में अनुशासन और सकारात्मकता का महत्व समझाया। ट्रेन में सफर करते हुए उन्होंने कई बार अनजान यात्रियों की मदद की, चाहे वह किसी को सीट दिलाने का मामला हो या किसी को गंतव्य तक पहुंचने का रास्ता समझाना।

आज, 35 साल बाद भी, गुप्ता जी का सफर जारी है। उनके सहयात्री उन्हें “रेलगाड़ी के मार्गदर्शक” कहते हैं। उनकी सरलता और सादगी ने उन्हें हर किसी का प्रिय बना दिया है।

गुप्ता जी की कहानी हमें सिखाती है कि समर्पण और अनुशासन से न केवल हमारा काम सफल होता है, बल्कि हम दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन सकते हैं। उनका जीवन वास्तव में एक चलती-फिरती प्रेरणा है

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