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बेल (बिल्व ) के औषधीय महत्व

बेल (बिल्व ) के औषधीय महत्व

बिल्व के कुछ प्रमुख औषधीय उपचार भी हैं, जिनका प्रयोग करके रोगो से बचा जा सकता हैं। यहाँ ऐसे ही कुछ विशिष्ट औषधीय उपचारो के बारे में बताया जा रहा हैं।

मधुमेह

15 पत्ते बेलपत्र और 5 कालीमिर्च पीसकर चटनी बनाकर, एक कप पानी में घोलकर पीने से मधुमेह ठीक हो जाता हैं। यह लम्बे समय एक दो साल लेने से स्थायी रूप से मधुमेह ठीक हो जाता हैं। नित्य प्रात: बेलपत्र का रस 30 ग्राम पीने से भी लाभ होता हैं।

बगल दुर्गन्ध दूर करने हेतु

बिल्व की पत्तियों का रस कुछ दिनों तक बगल में लगाने से दुर्गन्ध दूर होती हैं .इस हेतु कुछ पत्तियों को चटनी की भांति पीसकर इसका रस प्राप्त करे।

अतिसार में

पके बेल के गूदे को सुखाकर उसका चूर्ण बना ले। इस चूर्ण की एक एक चम्मच मात्रा सुबह शाम लेने से अतिसार ठीक हो जाता हैं। प्रयोग 5-7 दिन करे। गूदे को सूर्य की कड़क धुप में सुखाया जाना चाहिए।

मुंह के छाले दूर करने हेतु

पके हुए बेल के गूदे को थोड़े से जल में उबालकर उस जल को ठंडा कर उससे कुल्ले करे। छाले ठीक हो जाते हैं।

भूख नहीं लगना

बेल का चूर्ण, बंसलोचन, छोटी पीपली २-२ ग्राम, मिश्री १० ग्राम लेकर एक साथ मिला ले। इसमें १० ग्राम अदरक डाल कर साड़ी सामग्रियों को एक बर्तन में डालकर धीमी आंच पर पकाये। कुछ देर में यह गाढ़ा हो जायेगा। इसे दिन में चार बार चटायें। इस से जल्दी ही भूख खुलकर लगने लगेगी।

पेट दर्द में

पेट में दर्द की समस्या हो तो बिल्व के पत्ते १० ग्राम, कालीमिर्च १० ले कर पीस ले। इस मिश्रण को गिलास में डालकर स्वाद अनुसार मिश्री मिलाये। यह शरबत तैयार हो जायेगा। इस तरह शरबत बना कर दिन में ३ बार पिए, पेट दर्द में आराम मिलेगा।

पेट में गैस हटाने हेतु

बेल का शरबत सुबह लेने से २ – 4 दिनों में ही पेट के समस्त रोग लुप्त हो जाते हैं .यही शरबत लू लग जाने पर भी लेना हितकर हैं। इस शरबत को कुल्ला करने के पश्चात खाली पेट ले तथा इसको लेने के बाद 15 मिनट बाद तक कुछ खाना पीना नहीं हैं।

फोड़े फुंसी ठीक करने हेतु

बिल्व की ताज़ी पत्तियों को भली प्रकार पीस ले। इस प्रकार प्राप्त पेस्ट को फोड़े पर बाँधने से वे ठीक हो जाते हैं।

खुनी बवासीर में

बेल की जड़ का गूदा मिश्री मिलकर लिया जाता हैं इस हेतु एक चम्मच बेल का गूदा ले तथा उसमे आधा चम्मच या उससे भी कम मिश्री मिलाये और इसको छाछ या गुनगुने पानी के साथ लीजिये। इसको दिन में तीन समय लीजिये। और इसको लेने के बाद और पहले एक घंटे तक कुछ भी खाए पिए नहीं।

बवासीर अजीर्ण आदि रोगो में

पके हुए बेल के गूदे का शरबत पीना इन रोगो में हितकर हैं। शरबत में आवश्यक मात्रा में शक्कर भी मिलायी जा सकती हैं।

दस्त रोकने हेतु

दस्त लग जाने की स्थिति में बेल का मुरब्बा लेना हितकारी हैं। इस हेतु बच्चो को १५ ग्राम तथा बड़ो को ३० ग्राम तक यह मुरब्बा नियमित लेना चाहिए।

पेचिश

1. सूखा बील, धनिया समान मात्रा में पीसकर इनकी दुगनी मात्रा में पिसी हुयी मिश्री मिला ले। इसकी एक एक चम्मच सुबह शाम ठन्डे पानी के साथ फंकी ले। दस्त में रक्त आना बंद हो जायेगा।
2. बील का सूखा हुआ गूदा और सौंफ प्रत्येक १५-१५ ग्राम तथा सौंठ आठ ग्राम सबको पीसकर एक गिलास पानी में उबालकर आधा पानी रहने पर छानकर पियें। ऐसी दो खुराक रोज़ाना सुबह शाम लें।

कब्ज

15 ग्राम बील का गूदा और 15 ग्राम इमली दोनों को आधा गिलास पानी में मसलकर एक कप दही और स्वादानुसार बुरा मिलाकर लस्सी बनाकर पियें। कब्ज दूर होकर पेट साफ हो जायेगा। बील का शरबत आंतड़ियों में ज़रा भी मल नहीं रहने देता।

आंव बंद करने में

बेल के गूदे का चूर्ण चावल की मांड के साथ ले। चूँकि यह गूदा गीला होता हैं, अत : इसे सूखाकर सहेज कर पहले ही रखा जा सकता हैं। बाज़ारो में बेल के गूदे का चूर्ण आसानी से उपलब्ध हो जाता हैं। ज़्यादा पुराने चूर्ण में कीड़े पड़ जाते हैं। ताज़े बेल के फल को बीच में काटकर धुप में सुखाकर चूर्ण कर सकते हैं।

अम्लपित्त

एक चम्मच सूखे या ताज़ा बेल के गूदे में चौथाई चम्मच हरड़ का चूर्ण तथा एक चुटकी सेंधा नमक मिलाकर खाने से अम्लपित्त में आराम मिलता हैं।

कानों के लिए

कानो की सभी प्रकार की समस्या के लिए बिल्व तेल बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये बना बनाया आयुर्वेदिक दवा स्टोर पर उपलब्ध हैं।

बिच्छू दंश अथवा कुत्ते के काटने पर

बेल के ताज़े पत्तो को को चटनी की भाँती पीसकर दंशित स्थान पर बांधे। ऐसा करने से ज़हर उतर जाता हैं। प्रयोग लगातार ३ रोज़ करे।

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