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कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है, चाहे वे स्वर्गीय देवता ही क्यों न हों।

*कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है, चाहे वे स्वर्गीय देवता ही क्यों न हों।*
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महाभारत के आदिपर्व में यह कथा विस्तार से वर्णित है। यह कहानी बताती है कि कैसे आठ वसु (स्वर्गीय देवता) महर्षि वशिष्ठ के श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए मजबूर हुए और देवी गंगा ने उन्हें मोक्ष दिलाने का कार्य किया।वसु स्वर्ग के आठ दिव्य देवता हैं, जो विशेष शक्तियों से संपन्न हैं और इंद्रलोक में निवास करते हैं। हलांकि आठ वसुओं के नामों के बारे में अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं।

*◆पौराणिक कथाओं में ​वर्णित ‘आठ वसु’ कौन थे?👇*

हिन्दू धर्म के महान ग्रंथ बृहदारण्यकोपनिषद में तैंतीस देवताओं का विस्तार से परिचय मिलता है। इनमें जो हमारी पृथ्वी लोक के देवता कहे गए हैं, उनमें आठ वसु का ही स्मरण किया जाता है। इन्हें ही हमारी इस धरती का देवता भी माना जाता है।

“धरो ध्रुवश्च, सोमश्च, अहश्चैवानिलोअनत:।
प्रत्यूषश्च प्रभासश्च, वसवो अष्टाविति स्मृता:॥”

अर्थात्;अहश, ध्रुव, सोम, धरा, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास हैं आठ वसु, यह वसु ब्रह्मजी के पौत्र माने जाते हैं।

एक दिन वसुओं की पत्नियाँ और परिवार पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे। उसी समय, वसु प्रभास की पत्नी को महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में स्थित एक दिव्य कामधेनु गाय नंदिनी को देखकर उसकी इच्छा हुई कि वह उसे ले जाए। प्रभास ने अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए अन्य वसुओं के साथ मिलकर उस गाय को चोरी कर लिया। जब महर्षि वशिष्ठ को यह पता चला, तो उन्होंने क्रोधित होकर सभी वसुओं को श्राप दे दिया।

उन्होंने कहा तुम सबको पृथ्वी पर मनुष्य योनि में जन्म लेना होगा और वहाँ अपने कर्मों का फल भोगना होगा।यह सुनकर वसुओं को बहुत पछतावा हुआ, और वे वशिष्ठ के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे। महर्षि वशिष्ठ को दया आई, लेकिन वे अपने श्राप को वापस नहीं ले सकते थे। उन्होंने कहा कि सभी वसुओं को पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा, लेकिन सात वसु जल्दी ही मुक्त हो जाएँगे। केवल द्यौ वसु को लंबी आयु तक मनुष्य के रूप में रहना होगा, क्योंकि वही इस अपराध का मुख्य कारण था।

वसुओं ने देवी गंगा से प्रार्थना की कि वह उनकी माता बनें और जन्म लेते ही उन्हें मुक्ति दिला दें। गंगा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और पृथ्वी पर अवतार लेने का निश्चय किया।गंगा ने पृथ्वी पर आने के लिए महाभिषा नामक राजा के साथ विवाह करने का संकल्प लिया, जो अपने पूर्व जन्म में स्वर्ग में इंद्र की सभा में एक देवता थे। एक बार महाभिषा और गंगा दोनों ब्रह्मा जी की सभा में उपस्थित थे।

तभी अचानक वायु के प्रभाव से गंगा के वस्त्र हट गए। महाभिषा उन्हें टकटकी लगाकर देखने लगे। महाभिषा, तुम इतने लोभ में पड़ चुके हो कि अब तुम्हें पृथ्वी पर जन्म लेना होगा। इस प्रकार महाभिषा ने पृथ्वी पर राजा शांतनु के रूप में जन्म लिया। जब गंगा पृथ्वी पर आईं, तो राजा शांतनु ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। गंगा ने कहा मैं तुमसे विवाह करूँगी, लेकिन एक शर्त है तुम कभी भी मेरे किसी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करोगे।

यदि तुमने मुझसे कोई प्रश्न किया या मेरे कार्यों को रोकने की कोशिश की, तो मैं तुरंत तुम्हें छोड़कर चली जाऊँगी।” राजा शांतनु ने प्रेम में पड़कर यह शर्त स्वीकार कर ली।गंगा और शांतनु के विवाह के बाद उनके आठ पुत्र हुए। लेकिन जैसे ही कोई संतान जन्म लेती, गंगा उसे नदी में बहा देतीं। राजा शांतनु यह देखकर बहुत दुखी होते, लेकिन अपनी शर्त के कारण कुछ कह नहीं सकते थे।

जब आठवें पुत्र का जन्म हुआ और गंगा उसे भी नदी में प्रवाहित करने लगीं, तो राजा शांतनु से रहा नहीं गया और उन्होंने गंगा को रोकते हुए पूछा , तुम मेरे पुत्रों को नदी में क्यों बहा रही हो? यह तुम किस कारण कर रही हो? गंगा ने तुरंत उत्तर दिया हे राजन! तुमने मुझे रोककर अपना वचन तोड़ा है। अब मुझे तुम्हें छोड़कर जाना होगा।

गंगा ने जाने से पहले राजा शांतनु को पूरी कथा सुनाई कि वे आठों पुत्र वास्तव में शापित वसु थे। उन्होंने कहा मैंने पहले सात पुत्रों को जल में बहाकर उन्हें उनके दिव्य स्वरूप में लौटा दिया, लेकिन यह आठवाँ पुत्र (द्यौ वसु) अपने कर्मों के कारण पृथ्वी पर रहेगा और एक महान योद्धा बनेगा।

यह कहकर गंगा अपने आठवें पुत्र को लेकर अंतर्ध्यान हो गईं। वर्षों बाद गंगा पुनः प्रकट हुईं और अपने पुत्र को राजा शांतनु को सौंप दिया। यह पुत्र आगे चलकर गंगापुत्र देवव्रत (भीष्म पितामह) बना, जिसने महाभारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कथा का सार वसुओं को महर्षि वशिष्ठ के श्राप के कारण मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। देवी गंगा ने उनकी माता बनकर उन्हें जन्म के तुरंत बाद मुक्ति दिलाई। राजा शांतनु ने गंगा को विवाह के समय जो वचन दिया था, उसे तोड़ने पर गंगा उन्हें छोड़कर चली गईं। आठवें पुत्र, द्यौ वसु (भीष्म पितामह), को अपने कर्मों के कारण ही लंबे समय तक पृथ्वी पर रहना पड़ा था।

जयति जयति जय पुण्य सनातन संस्कृति,

जयति जयति जय पुण्य भारतभूमि,
शुभ दिवस की मङ्गल कामनाओं के साथ,

*जय जय श्रीहरि,🙏*

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