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राजदान खिरनी: एक गुणों से भरपूर औषधीय वृक्ष

वानस्पतिक नाम: Manilkara hexandra (Roxb.) Dubard
परिवार: Sapotaceae
अन्य नाम: राजादन, खिरनी, क्षीरिका, Six Stamens Balata

🌿 परिचय

राजदान खिरनी एक औषधीय महत्व वाला वृक्ष है जो भारत के विभिन्न प्रांतों—विशेषकर गुजरात, दक्कन, उत्तर-पूर्वी भारत, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश—में पाया जाता है। इसके फल जैतून जैसे होते हैं—कच्चे हरे और पकने पर पीले। इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्राचीन काल से किया जाता रहा है।

चरक संहिता में इसे पित्तजप्रदर और सुश्रुत संहिता में झाईं रोग के उपचार में वर्णित किया गया है।


🌱 आयुर्वेदिक गुणधर्म

राजदान खिरनी के विभिन्न अंगों—फल, बीज, छाल, पत्ते, मूल और आक्षीर (दुग्ध)—में औषधीय गुण समाहित होते हैं।

मुख्य गुण:

  • त्रिदोषशामक (वात, पित्त, कफ को संतुलित करने वाला)

  • रुचिकारक, बलवर्धक, वृष्य (शुक्रवर्धक)

  • हृदय को बल देने वाला, तृष्णाशामक, व्रणरोपक

  • अतिसार, प्रमेह, पीलिया, योनिरोग, और व्रण रोगों में लाभकारी

फल: मधुर, कषाय, स्निग्ध, हृदय के लिए हितकारी, तृप्तिदायक
बीज: वेदनाशामक, व्रणशोधक
छाल: ज्वरघ्न, दन्तरोग निवारक, त्वचाविकारहर
दुग्ध (आक्षीर): व्रण व शोथ नाशक


🩺 चिकित्सकीय प्रयोग व लाभ

रोग प्रयोग विधि
सिरदर्द (शिरशूल) खिरनी मूल का लेप मस्तक पर
नेत्र रोग बीज पीसकर बाहरी नेत्र क्षेत्र में लेप
मुख रोग धूम्र विधि द्वारा उपयोग
दन्त रोग छाल चूर्ण से दांतों की सफाई
तृष्णा (प्यास) रात्रि में भिगोया गया राजादन जल, शर्करा व मुनक्का के साथ सेवन
अतिसार (डायरिया) छाल का क्वाथ + शहद
कामला (पीलिया) काण्डत्वक् का क्वाथ
प्रमेह लेह, आसव आदि के रूप में उपयोग
व्रण व शोथ बीज या आक्षीर का लेप
त्वचा के दाग कपित्थ + खिरनी लेप

⚠️ सावधानी

  • गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे गर्भपात की आशंका हो सकती है।

  • सभी प्रयोग चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही करें।


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