समाज को संदेश छुआछूत की बीमारी नहीं है सफेद दाग
समाज को संदेश छुआछूत की बीमारी नहीं है सफेद दाग
वर्ल्ड विटिलिगो डे पर विटिलिगो सपोर्ट इंडिया ने आयोजित की परिचर्चा
मथुरा। विटिलिगो को संक्रामक रोग, आध्यात्मिक कलंक या कॉस्मेटिक अपूर्णता से जोड़ने वाले मिथकों को दूर करने तथा इससे होने वाले सामाजिक और भावनात्मक नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से बुधवार को वर्ल्ड विटिलिगो डे पर विटिलिगो सपोर्ट इंडिया द्वारा गोविन्द नगर स्थित मनभावन होटल में एक परिचर्चा का आयोजन कर अपनी मेधा से समाज में नया मुकाम हासिल करने वाली शख्सियतों को सम्मानित किया गया।
परिचर्चा शुभारम्भ से पूर्व रविन्द्र जायसवाल फाउण्डर विटिलिगो सपोर्ट इंडिया ने बताया कि हमारे संगठन का उद्देश्य समाज में सफेद दाग को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने के साथ इससे पीड़ित लोगों को समाज की मुख्य धारा में शामिल होने को प्रोत्साहित करना है। श्री जायसवाल ने बताया कि विटिलिगो सपोर्ट इंडिया जमीनी स्तर की कला, खेल प्रतियोगिताओं से लेकर प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में जागरूकता अभियान चलाकर सफेद दाग का दंश झेल रहे लोगों में नया विश्वास पैदा करेगी। श्री जायसवाल ने कहा कि त्वचा पर सफेद दाग से सौंदर्य को प्रभावित करने वाले त्वचा रोग विटिलिगो के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विश्व स्तर पर जहां विटिलिगो की दर 0.5 से 2 प्रतिशत है वहीं भारत में एक से तीन प्रतिशत है। राजस्थान में तो यह लगभग 5 प्रतिशत पाई गई है।
वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश शुक्ला ने विटिलिगो प्रभावित लोगों का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि किसी इंसान की त्वचा से हमें उसके कृतित्व और व्यक्तित्व की पहचान नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सफेद दाग छुआछूत की बीमारी नहीं है, यह ऑटो इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी, मानसिक तनाव, त्वचा पर चोट या जलन से किसी को भी हो सकती है। उन्होंने विटिलिगो प्रभावित लोगों का आह्वान किया कि वे अपने आपको किसी से कम न समझें। श्री शुक्ला ने बताया कि इस साल के वर्ल्ड विटिलिगो डे की थीम हर त्वचा के लिए नवाचार, एआई की शक्ति से, बताती है कि वह दिन दूर नहीं जब सफेद दाग का सटीक उपचार होगा। उन्होंने कहा कि इस थीम के जरिए हमें लोगों को यह संदेश देना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए विटिलिगो की पहचान, ट्रीटमेंट और मरीजों की सही देखभाल के तरीके को आसानी से पहचाना जा सकता है। इस थीम का उद्देश्य यह तय करना है कि इस तकनीक का फायदा सभी मरीजों तक पहुंचे।
मनो चिकित्सा विज्ञानी डॉ. सचिन गुप्ता ने कहा कि विटिलिगो केवल एक सौंदर्यगत विकार नहीं है बल्कि इससे जुड़ी मानसिक, सामाजिक और आत्म-समान से संबंधित समस्याएं भी अत्यंत गम्भीर होती हैं। इस रोग में त्वचा की रंगद्रव्य बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे त्वचा पर सफेद धब्बे उभर आते हैं। डॉ. गुप्ता ने बताया कि विटिलिगो कोई बीमारी नहीं बल्कि यह एक तरह की स्किन कंडीशन है जिसमें स्किन का रंग बदलता है। इसकी वजह से शरीर के किसी हिस्से को नुकसान नहीं पहुंचता है, लेकिन इस बीमारी से जूझ रहे लोगों पर इसका मेंटल प्रेशर पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। डॉ. गुप्ता ने बताया कि यह रोग संक्रामक नहीं होता, लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव बहुत गहरा होता है। इसके उपचार के लिए सर्जरी, ग्राटिंग, कॉस्मेटिक उपचार और दवाइयां उपलब्ध हैं।
विटिलिगो सपोर्ट इंडिया के बैनर तले आयोजित परिचर्चा में चंदना दास, प्रीति गुप्ता तथा गोविन्द राम ने भी अपने सामाजिक अनुभव साझा किए। इन लोगों ने कहा कि स्किन का रंग व्यक्ति की पहचान नहीं होती। हम अपने आपको कभी किसी से कम न समझें। आगे बढ़ें और समाज को अच्छा संदेश दें। परिचर्चा के समापन अवसर पर पत्रकार श्रीप्रकाश शुक्ला के करकमलों से कामयाबी का शिखर छूने वाली शख्सियतों को सम्मानित किया गया। परिचर्चा के समापन अवसर पर विटिलिगो सपोर्ट इंडिया के फाउण्डर रविन्द्र जायसवाल ने सभी वक्ताओं का आभार माना।