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जब भगवान नारायण ने शिव को स्वप्न में देखा – एक अलौकिक कथा

✨ जब भगवान नारायण ने शिव को स्वप्न में देखा – एक अलौकिक कथा

📜 प्रस्तावना

धर्मग्रंथों और पुराणों में शिव और विष्णु का संबंध केवल दो देवताओं का नहीं, बल्कि अद्वैत के भाव का प्रतीक है। एक बार भगवान नारायण ने ऐसा ही एक अलौकिक स्वप्न देखा जिसने उन्हें महादेव के दर्शन को प्रेरित किया। इस कथा में न केवल भक्ति है, बल्कि उस एकत्व की झलक है जिसे केवल प्रेम और आत्मज्ञान ही समझा सकता है।


🌙 स्वप्न की शुरुआत

एक रात भगवान श्रीहरि नारायण दिव्यलोक में विश्राम कर रहे थे। तभी उन्होंने एक अलौकिक स्वप्न देखा —
त्रिशूल और डमरू धारण किए हुए, स्वर्णाभूषणों से सजे, अनिमादि सिद्धियों से सेवित, करोड़ों चंद्रमाओं की आभा से दीप्त भगवान शिव स्वयं उनके सामने नृत्य कर रहे थे। शिव की भक्ति, आनंद और प्रेम से भरी यह छवि भगवान नारायण को भीतर तक हिला गई।

वे स्वप्न से जागे और तुरंत ध्यानमग्न हो गए।


🙏 श्रीलक्ष्मी का प्रश्न

श्रीलक्ष्मीजी ने जब यह देखा तो उन्होंने आश्चर्य से पूछा,
“प्रभु! अचानक आप ध्यान में क्यों चले गए?”
भगवान ने कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन कुछ देर ध्यान में रहने के बाद उन्होंने मुस्कराते हुए कहा —
“देवि! मैंने महादेव के दिव्य दर्शन किए हैं। वे मुझे स्मरण कर रहे हैं। हमें कैलाश चलना चाहिए।”


🌸 अद्भुत मिलन

दोनों कैलाश की ओर चल पड़े। लेकिन थोड़ी दूर चलते ही सामने से भगवती उमा के साथ स्वयं महादेव आते दिखे। वह मिलन दृश्य अवर्णनीय था — प्रेम और आनंद की गंगा बह चली। दोनों प्रभु एक-दूसरे से लिपट गए, पुलकित हो उठे, नेत्रों से अश्रु बहने लगे।

चर्चा से ज्ञात हुआ कि महादेव ने भी वही स्वप्न देखा था और वे भी श्रीहरि से मिलने निकल पड़े थे।


🤔 कौन कहाँ चले?

अब दोनों एक-दूसरे को अपने-अपने लोक में ले जाने का आग्रह करने लगे —
भगवान विष्णु बोले, “कैलाश से वैकुण्ठ चलिए।”
भगवान शंकर बोले, “वैकुण्ठ से कैलाश चलिए।”

अब निर्णय करना कठिन हो गया।


🪕 नारद जी की उपस्थिति

उसी समय वहाँ नारद मुनि वीणा बजाते और हरिगुण गाते पहुंचे। दोनों ने उनसे निर्णय करने को कहा, लेकिन नारदजी प्रेममग्न होकर केवल स्तुति करते रहे।

आख़िरकार निर्णय का दायित्व भगवती उमा को सौंपा गया।


👑 भगवती उमा का निर्णय

उमा जी ने जो कहा, वह अद्वैत भाव का सार है:

“हे केशव! आपके प्रेम को देखकर लगता है कि कैलाश और वैकुण्ठ भिन्न नहीं, एक ही हैं।
आप दोनों आत्मा से एक हैं, केवल शरीर भिन्न हैं।
मैं और श्रीलक्ष्मी भी भिन्न नहीं, एक ही हैं।
जो एक से द्वेष करता है, वह दूसरे से भी करता है।
जो एक की पूजा करता है, वह दूसरे की भी करता है।
इसलिए आप दोनों अपने-अपने लोक लौटें, लेकिन यह जानकर कि आप दोनों में कोई भेद नहीं है।”


🌈 अद्वैत का संदेश

इस निर्णय से दोनों देवता परम प्रसन्न हुए और एक-दूसरे को गले लगाकर अपने-अपने लोक को लौट गए। वैकुण्ठ पहुँचकर श्रीहरि ने श्रीलक्ष्मीजी से कहा:

“मैं ही महादेव हूँ और महादेव ही मैं हूँ, जैसे दो घटों में रखा जल वास्तव में एक ही होता है।”


🕉 सारांश – शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं

यह कथा हमें सिखाती है कि जब प्रेम और भक्ति की दृष्टि से देखा जाए तो शिव और विष्णु में कोई भिन्नता नहीं रह जाती। यह अद्वैत का भाव, आत्मिक एकता का प्रतीक है।

🙏 “शिवोऽहम् विष्णुरहम्” — मैं ही शिव हूँ, मैं ही विष्णु हूँ।

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