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Dr Sunil Maurya

प्रसिद्व व्यक्तित्व विशेष परिचय
राजवैद्य डॉ0 सुनील मौय, भदोही, उ.प्र.

राजवैद्य डॉ सुनील मौर्य जी पुत्र स्व. वैध रामचन्द्र मौर्य जिनका जन्म ग्राम-औसानपुर, पोस्ट-भीटी, जिला प्रयागराज पिन 221502 इलाहाबाद मे हुआ है डा. मौर्य जी अपना एक अस्पताल जीवन दान हास्पिटल, वहिदा मोढ़, भदोही, उ0प्र0 में समाज के सेवा के लिए खोल रखा है। जिनकी षिक्षा-शास्त्री, वैद्यवाचस्पति, आयुर्वेदाचार्य बी.ए.एम.एस. है। डॉ सुनील मौर्य जी के प्रेरक उनके पिता स्व. वैध रामचन्द्र मौर्य जी है। डा. मौर्य जी का मोबाइल नम्बर-08853141099, वाट्सअप नंबर 9793530099 हैं । डा. मौर्य जी से मुलाकात हापुड़ जिले के गढ़मुक्तेश्वर नगर में हुई थी । संवाद के क्रम से पता चला कि सुनील मौर्य जी आयुर्वेद के निष्णात विद्वान् हैं । वार्ता के दरम्यान राजवैद्य जी से आयुर्वेद के संबंध में जिज्ञासावश पूछे गए प्रश्नों का बहुत ही सारगर्भित उत्तर दिया उसी के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं:-

 

डा. आर टी राजपूत: आयुर्वेद क्या है। और इसकी उत्पत्ति क्या है?
डा. सुनील मौर्य: आयु के ज्ञान को या आयु के नियम को आयुर्वेद कहते है। जिसके द्वारा-आयु, रोग का ज्ञान और चिकित्सा, धर्म, सम्पत्ति, सुख को प्राप्त किया जाता है, यह आयुर्वेद का हितोपदेष है। जिसे पूरे आदर के साथ ग्रहण करना चाहिए।

 

डा. राजपूत: शरीर की संरचना और कार्याें का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण में क्या है?
डा. मौर्य: आयुर्वेद के दृष्टिकोण से शरीर की रचना में त्रिदोश वात, पित्त, कफ अग्नि, पाँच प्रकार की अग्नि धातु, रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और मल, आत्मा, इन्द्रियाँ, पाँचों कर्म इन्द्रियाँ और पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ व मन, इन सब के मिलने और सुचारू रूप से व्यवस्थित कार्मिक रूप का नाम शरीर है। जिसे ऋषियों ने ऐसा कहा है।

समः दोशः समाग्नि च समधातुसममलक्रिया।

प्रसन्नात्माइंद्रियाणांमनः स्वस्थस्यइत्यभिधियते।।

 

डा. राजपूत: आयुर्वेद में स्वास्थ्य रोग और उपचार के मूल दर्शन क्या है?
डा. मौर्य: आयुर्वेद ही एक ऐसी सबसे वरिष्ठ चिकित्सा पद्धति है। जो अपने मूल में आत्मा, इंद्रिय और मन के चिकित्सा की व्याख्या करता है। बाकी संपूर्ण विश्व में ऐसी कोई चिकित्सा नहीं जो इनकी बात करता हो यही कारण है कि आयुर्वेद का पार नहीं है। न ही कोई वैद्य पूरे आयुर्वेद में निपुण ही हो सकता है। ‘‘नास्तिआयुर्वेदस्यपारम् न किं वैद्यस्तुइतिपारंगतम्’’ स्वास्थ्य रोग और उपचार का मूल आपको अष्टांगायुर्वेद के व्यापक अध्ययन में मिलता है जिसके भाग निम्न है।

  • काय चिकित्सा
  • बाल चिकित्सा
  • गूंगा चिकित्सा
  • ग्रह चिकित्सा
  • भूत प्रेत चिकित्सा
  • ऊर्ध्वांग चिकित्सा
  • गले के ऊपर की चिकित्सा
  • शल्य चिकित्सा
  • सर्जरी
  • जरा चिकित्सा
  • बुढ़ापा या कमजोरी
  • वृष्य चिकित्सा
  • नपंुसकता या नार्मदी चिकित्सा

डा. राजपूतः आयुर्वेदिक उपचार के तरीके क्या है। और निदान कैसे किया जाता है।
डा. मौर्य: आयुर्वेदिक के मूल भूत सिद्धांत वात पित्त और कफ ये तीन प्रधान तीन दोष है। और सातधातुएँ है। यथाः- रस, रक्त, माँस, मेद, मज्जा, अस्थि, शुक्र वीर्य-रज आयुर्वेदिक निदान मुख्य रूप से इन आठ बातों पर निर्भर करती है।

रोगाःक्रान्तौश्शरीरश्य स्थानेनाश्टौपरीक्षयेत्।

नाड़ीमूत्रंश्शब्दस्पर्शं जीहवामलदृगाकृतिं।।

अर्थात् वैद्य को नाड़ी देखने और समझने में मूत्र को देखकर, मल को देखकर, रोगी की आवाज को सुनकर, रोगी का स्पर्ष करके, रोगी की जीहवा देखकर, रोगी की आँख देखकर, रोगी का बनावट देखकर, इन आठ बातों का ध्यान रखकर जो वैद्य रोग निदान करते हुये चिकित्सा करता है वह सदा यष को प्राप्त करता है।

 

डा. राजपूतः आयुर्वेद की मुख्य शास्त्रीय संदर्भ पुस्तके क्या है?
डा. मौर्य: देखिये-पुस्तक कोई भी हो कभी संदर्भहीन नहीं होती है परन्तु मुख्य पुस्तकों की बात करेंगे तो-चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अस्टांगहृदयम् टांगसंग्रहम्, रसहृदयतन्त्रम्, रसेन्द्रसारसंग्रहम्, माधवनिदानम्, निघंटु आदि मुख्य है।

 

डा. राजपूतः आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण के लिए कच्चे माल कहा से आते है?
डा. मौर्य: आयुर्वेदिक औषधि निर्माण हेतु सभी कच्चे माल, जंगलों से पर्वतों से, समुद्रों से, भूखनिजों से मिलता है। जिनको व्यापारी वर्गाें की सहायता से बाजार से प्राप्त किया जाता है।

 

डा राजपूतः क्या आज इस परिवेष में आयुर्वेद के लिए गंुजाइष है?
डा. मौर्य: इस पृथ्वी पर ऐसी कोई विधा नहीं जिसका उपयोग अनावश्यक हो आषुकारी चिकित्सा ईमरजेन्सी में आयुर्वेद को छोड़कर बाकी समस्त जीर्ण रोग क्रोनिक डिजीज में आयुर्वेद से अच्छा हानिरहित अन्य कोई विकल्प नहीं-आयुर्वेद एक कल्प चिकित्सा है और कल्प का विकल्प नहीं होता।

 

डा. राजपूतः क्या आयुर्वेद और पष्चिमी चिकित्सा को एकीकृत करने का कोई तर्क है?
डा. मौर्य: हाँजी, बिल्कुल है-हलॉकी पहले यह नहीं था लेकिन अब इमरजेन्सी की पष्चिमी चिकित्सा से तत्काल राहत देने के बाद रोग समूल नाष्ट के लिए आयुर्वेद का सदुपयोग करके रोगी को अन्य परेषानियों से बचाया जा सकता है। जो कि कई जगह पर विद्वान चिकित्सों द्वारा किया जा रहा है।

 

डा. राजपूतः क्या आयुर्वेद डब्लूएचओ द्वारा मान्यता प्राप्त है?
डा. मौर्य: हाँ

 

डा. राजपूतः क्या आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से अधिक अंक है?
डा. मौर्य: हाँ जी-यह बिल्कुल सही है। ‘‘नास्तिआयुर्वेदस्यपारम् न किं वैद्यस्तु इति पारंगतम् के सिद्धांत से पारंपरिक होने से बहुत से अनुभव परंपरा से जल्द प्राप्त हो जाते है जिससे कम समय में अधिक ज्ञानार्जन हो जाता है।

 

डा. राजपूतः मुझे अयुर्वेद दवाओं तक कैसे पहुँचना चाहिए और सक्षम आयुर्वेद व्यवसायी कैसे पता करूँ?
डा. मौर्य: आयुर्वेद के दवाओं तक पहुँचने के लिए उत्तम वैद्य के पास पहुँचने का प्रयास करे, वैद्य जी लोग आपको उत्तम स्थान को मार्ग दर्षन अवष्य करते हैं। सक्षम आयुर्वेदिक व्यवसायी के पास आयुर्वेदिक औषधियाँ सर्वदा होती है।

 

डा. राजपूतः काउंटर पर आयुर्वेदिक दवायें खरीदना कितना सुरक्षित है?
डा. मौर्य: मैं उस दवा को अधिक महत्व देने को कहूँगा जो दवा वैद्य स्वयं निर्माण करता है अन्यथा व्यक्ति बाजारीकरण में फस कर स्वयं का समय नष्ट कर देता है। इसलिए दवा वैद्यों से ही ले।

 

डा राजपूतः क्या कोई आधुनिक दवाओं के साथ आयुर्वेदिक चिकित्सा ले सकता है?
डा. मौर्य: अगर आयुर्वेदिक दवायें केवल जड़ी, बूटी, के साथ बनी है तो मैं यह कहूँगा कि एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक दवायें साथ में ली जा सकती है। परन्तु यदि आयुर्वदिक दवा पारद, स्वर्ण, आदि धातुओं से निर्मित है तो चिकित्सक को सोच समझ कर स्वविवेक से देना चाहिए।

 

डा. राजपूतः आम आयुर्वेदिक दवायें क्या है जो डॉक्टरों के परामर्ष के बिना इस्तेमाल की जा सकती है?
डा. मौर्य: हमारे रसोई घर में दैनिक उपयोग के जितने भी खाद्य पदार्थ है वो सब आयुर्वेदिक दवा ही है जिसको बिना डॉक्टरों के सलाह के भी लिया जा सकता है। इसी संदर्भ मंे हम अपनी धर्म पत्नी के द्वारा रसोई घर मेरा औषधालय नामक पुस्तक लिखवा रहा हूँ जो डॉक्टरों के बिना सलाह के हर व्यक्ति मजबूत जानकारी रखते हुए सेवन कर सके।

 

डा राजपूतः आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथिक के विभिन्न रूपों में प्रयुक्त औशधीय पौधों की लुप्त प्रायः भारतीय प्रजातियो के लिए सरकार क्या कर रही है?
डा. मौर्य: इन समस्त चिकित्सा पद्धतियों में इस्तेमाल होने वाली जितने औषधीय पौधें जो धीरे-धीरे लुप्त हो रहे है उनके लिए भारत कुछ कदम उठाया जरूर है-आयुषमंत्रालय ने इसके लिए लुप्त वनौषधियों के संवर्धन हेतु कई योजनाएँ भी बना चुकी है। जिस पर सरकार का कार्य जारी है।

 

डा राजपूतः क्या आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण के लिए कोई नियमन है?
डा. मौर्य: नियमन अर्थात् त्महनसंजपवद.तो शास्त्रीय विधि और विधान से बनी दवा सदैव उत्तम फल प्रदर्षित करती है जैसे जिस दवा को 16 घंटे घोटना है तो जब हम खरल में 16 घंटे घोटते है तो मर्दनम् गुणवर्धनम् के सिद्धांत से औषधीय में शक्ति का उदभव स्वतः होता है जो रोग नाष हेतु परम आवष्यक है।

डा राजपूतः आयुर्वेदिक फार्मास्युटिकल में अच्छे विनिर्माण आचरण के लिए कोई आचार संहिता है।
डा. मौर्य: हाँ जी फार्मास्युटिकल में औषधि निर्माण के लिए जीएमपी आदि बहुत से सर्टिफिकेषन का नियम है।

 

डा राजपूतः हर्वल चाय क्या है?
डा. मौर्य: हर्वल चाय का मूल अर्थ है जो सुबह का पेय आपको नवऊर्जा से भर दे, तथा समस्त रोगों में ष्शमनकारी और लाभकारी गुण प्रदर्षित करें मार्डन भाषा में एन्टीआक्सीडेन्ट कहा सकते है है यथाः- तुलसी, दालचीनी, तेजपत्र, अर्जुन छाल आदि। साथ में जो अग्नि को मजबूत करते हुए अजीर्ण को खत्म करें।

 

डा राजपूतः आज के जीवन शैली में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रोग से पीड़ित है तो क्या हम आयुर्वेद के माध्यम से उन रोगों को जड़ से समाप्त कर सकते हैं?
डा. मौर्य: निः संदेह-इसमें लेष मात्र का षक नहीं, आयुर्वेद ही एक ऐसी विधा है जो रोग के जड़ पर कार्य करती है क्योंकि

रोगाःसर्वेपिमंदाग्नौ सूतरामुदराणिच!

अजीर्णानमलनिस्चात्र जीयंतेमलसंचयात्!!

शरीर के समस्त रोग मंदाग्नि से उत्पन्न होते है और मुझे आयुर्वेद से अच्छा मंदाग्नि की चिकित्सा संसार के किसी भी पैथी में नहीं मिली और जीवन षैली को सही ढंग से चलाने की संपूर्ण व्याख्या आयुर्वेदिक षास्त्रों को छोड़ अन्य कहीं नहीं है।

 

डा राजपूतः अवसद या डिप्रेषन से पीड़ित व्यक्ति किस प्रकार से आयुर्वेद के माध्यम से वह प्रसन्न रह सकता है?
डा. मौर्य: हमारे देष में आज के समय में दो प्रकार की मानसिकता पाई जाती है 1- संवेदनषील मन 2- असंवेदनषील मन जो संवेदनषील मन के व्यक्ति होते है सदैव ये ही लोग अवसाद से ग्रस्त होते है आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान का एक मनोवैज्ञानिक ग्रंथ है। गीता जिसमें डिप्रेषन से बाहर होने की सरल सागर्भित विधि है। और औशधि में एक दवा तैयार की जाती है अवसादांतक योग स्वर्ण मोती अभ्रक ब्राम्ही अस्वगंधा आदि से बहुमूल्य द्रव्यों से मैं स्वयं तैयार कराता हूँ जिसके मदद से मैंने 20-20 वर्षाें से पिडप्रेषन में पड़े रोगियों को 3-5 माह में बाहर निकाल पाने सफलता पाया हूँ।

 

डा राजपूतः आयुर्वेदिक के अनुसार अपने घर में व्यक्ति को कौन सा पौधा लगाना चाहिए जिससे इन पौधों का फायदा उठा सके?
डा. मौर्य: तुलसी, घृतकुमारी, वनतुलसी, हरजोड़, गिलोय, पथरचटा आदि घर में लगाना चाहिए इन पौधों का फायदा परेषानी के अनुसार हर व्यक्ति घर बैठे ले सकता है काढ़ फान्ट आदि। अथातःस्वरसःकल्कः क्वाथस्यहिमफांटकौ! गेयःपंचैतेकशायः सरलास्युः लघोत्तरम्!!

 

डा राजपूतः आयुर्वेद में कैंसर का इलाज कैसे सम्भव है?
डा. मौर्य: आयुर्वेद में कैंसर का उपचार है और यदि मरीज कुषल वैद्य के बताये रास्ते का पूर्ण पालन करते हुए चिकित्सा ले तो कैंसर ठीक होने की प्रबल सम्भावना होती है कफ विकार और आमदोश के सिद्धांत को ध्यान में रखकर चिकित्सा करने पर कैंसर पर सफलता पाया जा सकता है।

 

डा राजपूतः कैंसर का रोग कितने प्रकार क होता है। और क्या सभी का इलाज आयुर्वेद में है?
डा. मौर्य: कैंसर अर्बुद आयुर्वेद के अनुसार मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है। इन चारों के अनेक भेद है और आयुर्वेद में सभी कैंसर का इलाज है।

डा राजपूतः स्तनकैंसर क्या महिलाओं को ही होता है। क्या इसका इलाज सम्भव है?
डा. मौर्य: नहीं स्तन कैंसर केवल महिलाओं को ही नहीं होता यह रोग पुरूषों में भी पाया जाता है हाँ जी इसका इलाज आयुर्वेद में पूर्ण रूप से है।

डा राजपूतः आयुर्वेद मंे भी क्या अलग-अलग रोगों के लिए विषेज्ञ होते है?
डा. मौर्य: जी होते तो नहीं क्योंकि आयुर्वेद रोग का नहीं बल्कि रोगी का इलाज करता है इसलिए इसके अलग-अलग चिकित्सक जल्दी देखे नहीं जाते।

 

डा राजपूतः आप किस आयुर्वेदाचार्य को सर्वश्रेष्ठ समझते है और क्यों?
डा. मौर्य: अभी तक मुझे मेरे परम्श्रद्धेय, परमादरणी, आराध्य गुरूदेव राजवैद्य पं0 ब्रम्हदत्त त्रिपाठी, शास्त्री, वैद्यवाचस्पति इनसे श्रेष्ठ अन्य कोई वैद्य नहीं मिला, इनकी कुषलता और आयुर्वेद के प्रति समर्पण शास्त्रों पर अटूटविष्वास के साथ सिद्धहस्त वैद्य थे।

 

डा राजपूतः आप किस आयुर्वदाचार्य के साथ चाय पीना पसन्द करेंगे?
डा. मौर्य: मैं वैद्य आर0टी0 राजपूत, हरदोई के साथ प्रभात पेय पीना पसन्द करूँगा।

 

डा राजपूतः आयुर्वेद के लिए सबसे अच्छा देष कौन-सा है?
डा. मौर्य: भारतवर्ष।

 

डा राजपूतः आप कहाँ रहना पसंद करते है?
डा. मौर्य: पूर्ण रूप से भारत वर्ष के ग्रामीण क्षेत्र में।

 

डा राजपूतः ऐसी कोई घटना जिसे आप साझा करना चाहेंगे तथा उससे प्रेरित हुए है?
डा. मौर्य: हाँ जी बिल्कुल-बात उन दिनांे की है। जब मेरी उम्र 15 वर्ष की थी और मुझे पिता श्री ने गुरूदेव के पास भेजा था मैं गुरूदेव के पास जब पहुँचा तो उन्होंने कहा क्यों आये हो मैंने कहा आयुर्वेद पढ़ने के लिए तो बोले लौट जाओ तुम्हारे बस की बात नहीं मैं 5 दिन तक बाहर पड़ा रहा, मुझे जिद थी कि इनका षिष्य वन के ही वापस होऊँगा 5 दिन बाद उन्होंने कहा तुमको गुस्सा नहीं आया मुझ पर कि तुम इतना दूर आये और मेरे पास और मैंने सीधे मुहं कमरे के अंदर भी नहीं आने दिया, मैंने बोला आपकी आज्ञा थी तो मैं पालन किया गुरू से क्रोध करने का अधिकार शिष्य का नहीं हो सकता गुरूदेव उन्हें मेरा उत्तर बहुत अच्छा लगा, फिर उन्होंने मुझे दीक्षा देकर अपनी षिष्यता प्रदान की और सम्पूर्ण अध्ययन औषधि निर्माण कर्म आदि सब में प्रवीण किया। मुझे गुरूदेव से एक सबसे अहम् प्रेरणा ये मिली कि आयुर्वेद का ज्ञान योग्य पात्र को ही देना चाहिए इसके पहले उसे अपने कसौटी पर खरा पाना चाहिए कि वह इस महाज्ञान को धारण करने योग्य
है भी या नहीं।

जय श्री धनवन्तरी, जय श्री आयुर्वेद

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