आषाढ़ अमावस्या कब?
आषाढ़ अमावस्या कब?
आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को आषाढ़ अमावस्या मनाते हैं। अमावस्या तिथि पर नाराज पितरों को मनाया जाता है, जिससे पितृ दोष खत्म होता है। उनकी नाराजगी दूर करके आशीर्वाद लेते हैं ताकि परिवार की तरक्की हो।
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को आषाढ़ अमावस्या मनाई जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा और दान करने का विधान है। अमावस्या तिथि को क्रोधित पितरों को मनाया जाता है। उनकी नाराजगी दूर करें और आशीर्वाद लें ताकि परिवार आगे बढ़ सके। जब पितर नाराज होते हैं तो उस घर में पितृ दोष होता है। इससे पूरे परिवार की तरक्की रुक जाती है।
आषाढ़ अमावस्या की तिथि मुहूर्त
पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 17 जून शनिवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट से शुरू हो रही है। आषाढ़ अमावस्या तिथि अगले दिन रविवार 18 जून को सुबह 10:06 बजे मान्य होगी। आषाढ़ अमावस्या 18 जून को उदय तिथि है। उस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ ही किया जाएगा। उससे पहले 17 जून को आषाढ़ की दर्श अमावस्या होगी।
आषाढ़ अमावस्या का स्नान-दान शुभ मुहूर्त
18 जून को आषाढ़ अमावस्या स्नान और दान का शुभ मुहूर्त सुबह 07:08 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक है। इसमें भी सुबह 08 बजकर 53 मिनट से 10 बजकर 37 मिनट तक लाभ-उन्नति मुहूर्त है, जबकि सुबह 10 बजकर 37 मिनट से दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त है।
अमावस्या का महत्व
आषाढ़ अमावस्या के दिन पितरों के देवता अर्यमा की पूजा करनी चाहिए। ये इन्द्र के भाई हैं। अमावस्या के दिन अर्यमा की पूजा करने से भी पितृ दोष शांत होता है। अमावस्या के दिन स्नान के बाद पीपल के पेड़ की पूजा करें और उसकी जड़ में जल चढ़ाएं। इससे देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
आषाढ़ अमावस्या पर करें ये काम
आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष का दर्शन करना एवं उसका पूजन करना भी बहुत शुभ माना गया है। पीपल पेड़ के सामने दीपक जलाना एवं मंत्र जाप करने से सभी कष्ट दूर होते हैं।
इस अमावस पर नदियों, सरोवरों और धर्मस्थानों पर स्नान, दान और शांति-कर्म किए जैसे कार्यों को करना भी अत्यंत ही प्रभावशाली माना गया है।
गरुण पुराण में अमावस्या के विषय में बताया गया है। जिसमें इस दिन किए जाने वाले पूजा एवं दान किस प्रकार से अत्यंत ही आवश्यक होते हैं ओर जिन्हें करने से दोषों की समाप्ति होती है।
शिव पूजन, पीपल की पूजा करने के साथ शनि की शांति के लिए भी पूजा आदि काम किए जाते हैं।
आषाढ़ अमावस्या पर नहीं करें ये काम
अमावस्या के दिन चंद्रमा दिखाई नही देता है। ऎसे में अंधकार और भी अधिक गहरा होता है। इसलिए इस दिन को काली रात्रि के नाम से भी पुकारा जाता है। अमावस्या के समय पर तंत्र संबंधित अनुष्ठान का प्रभाव जल्द ही फल देने वाला होता है। इसी कारण से अमावस्या के दिन तांत्रिक कर्म अधिक होते हैं। इस तिथि के समय पर कुछ विशेष बातों का ख्याल अवश्य रखना चाहिये।
इस दिन से जुड़ी कुछ खास बातें इस प्रकार हैं –
सिद्धियों से विभिन्न शक्ति को पाने के लिए इस दिन कार्य किए जाते हैं। तो ऎसे में इस दिन किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव से बचने के लिए भी प्रयास किए जाते हैं।
इस दिन ग्रह नक्षत्रों के अनुसार अलग-अलग राशियों के लोगों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है। इस लिए अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान और भगवान व अपने ईष्ट देव का पूजन करना चाहिए।
अमावस्या के दिन व्यक्ति को तामसिक भोजन जैसे मांस व शराब जैसी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
क्या है खास आषाढ़ अमावस्या में
आषाढ़ अमावस्या एक ऎसे समय को भी दर्शाती है जब मौसम में एक प्रकार का बदलाव भी होता है। इस समय के दौरान गरम मौसम से अलग बरसात का आगमन होता है तो ऎसे समय में इस संक्रमण काल में जो भी कार्य किया जाता है उसका लम्बे समय तक असर भी होता है। इस कारण से इस दिन में सात्विकता और शुद्धता का बहुत ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।