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लाल वस्त्र से सावधान: महर्षि वागभट्ट और चरक की चेतावनी बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए

महर्षि वागभट्ट जी कहते हैं कि बालकों को लाल कपड़े नहीं पहनना चाहिए, अन्यथा उन्हें ग्रहजन्य (सूक्ष्म जीवाणु जन्य) रोग हो सकते हैं।
वहीं महर्षि चरक जी इस विषय में एक कदम आगे बढ़ते हुए स्पष्ट करते हैं कि गर्भवती महिलाओं को भी लाल वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।

यह विचार केवल एक परंपरागत मान्यता नहीं है — इसके पीछे गंभीर आयुर्वेदिक और ऊर्जात्मक तत्त्व छिपे हैं, जो आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं।


🧠 विमर्श: लाल रंग और शरीर-मन पर उसका प्रभाव

🔴 1. लाल रंग की ऊष्मा और ऊर्जा:

  • आयुर्वेद में लाल रंग को ‘पित्तवर्धक’ और अत्यधिक ऊर्जात्मक माना गया है।

  • यह रंग शरीर की तपोष्ण ऊर्जा (heat) को बढ़ाता है, जिससे बच्चों और गर्भवती महिलाओं में शारीरिक असंतुलन और रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आ सकती है।

🦠 2. ग्रहजन्य (सूक्ष्म जीवाणु जन्य) रोगों से संबंध:

  • बच्चों का शरीर अभी विकसित हो रहा होता है, उनका प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) नाजुक होता है।

  • लाल वस्त्र से उत्पन्न अतिरिक्त ऊष्मा शरीर में अज्ञात रोगजनकों को सक्रिय कर सकती है।

  • गर्भवती महिलाओं में यह असंतुलन भ्रूण विकास पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है।

🧘‍♀️ 3. ऊर्जात्मक और मानसिक दृष्टिकोण से:

  • लाल रंग ‘रक्त’ और ‘क्रोध’ का भी प्रतीक है।

  • यह रंग मन में उत्तेजना, बेचैनी और तनाव पैदा कर सकता है, जो छोटे बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक होता है।

  • आयुर्वेद शांति, शीतलता और संतुलन को प्राथमिकता देता है — इसलिए हल्के व शांत रंगों की सिफारिश की जाती है।


👶 किसे लाल वस्त्र से बचना चाहिए?

व्यक्ति कारण
👦 बालक (कुमार) ऊष्मा व रोगजनक ऊर्जाओं के प्रति संवेदनशीलता
🤰 गर्भवती महिलाएं भ्रूण की ऊष्मा-संवेदनशीलता और hormonal असंतुलन की संभावना
🤕 बुखार, त्वचा रोग या सूजन से ग्रस्त व्यक्ति लाल रंग पित्त दोष बढ़ा सकता है

✅ क्या पहनना चाहिए?

  • हल्के, शांत और प्राकृतिक रंग: सफेद, हल्का नीला, गुलाबी, हरा, पीला

  • सूती वस्त्र जो शरीर को शीतल रखें

  • प्राकृतिक रंगों से रंगे कपड़े

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