क्रश और प्यार में अंतर कैसे करे
क्रश
- एक तरह का आकर्षण होता है व्यक्ति की किसी विशेष गुण को लेकर ,लेकिन आप को ये पता होता है कि रिश्ते में नही बदल सकता है
जैसे
किसी फिल्म अभिनेत्री या अभिनेताओं को लेकर विपरीत लिंग के समूहों में उनके किसी विशेष अंदाज को लेकर शशि थरूर की अंग्रेजी को लेकर काफी लड़किया फिदा हो जाती है , ठीक उसी तरह किसी दौर में राजेश खन्ना के मुस्कुराते हुए अंदाज को लेकर हालांकि आज के दौर में ये आकर्षण समान लिंग के लोगो मे भी हो सकता है और सुप्रीम कोर्ट ने इसकी अनुमति दे रखी है क्रश का कोई भविष्य नही हो सकता है ,अगर भविष्य हो तब यह प्यार में बदल जायेगा
- जैसे अभिनेता रजनीकांत का इंटरव्यू लेने रक मैगजीन की पत्रकार साहिबा आयी ,रजनीकांत को उनपे क्रश हो गया और रजनीकांत उनसे शादी करने की बात रख दी फिर वो उनकी पत्नी भी बन गयी ।
रजनीकांत को PR वाली और प्यार वाली में फर्क नही पता था मतलब क्रश प्यार में बदल गया
क्रश और प्यार में अंतर कैसे करे
कोई भविष्य नही रिश्ते का , फिर भी चचा जी काम धाम छोड़कर शादीसुदा महिला को चिठ्ठी लिखते रहते थे ।बाकी क्या क्या करते थे यहां पढ़ें।
नेहरू और एडविना को देखकर माउंटबेटन नजर छिपाते हुए
The great charmer
Nehru won over everyone he met, including and especially women.
https://indianexpress.com/article/opinion/columns/the-great-charmer/
प्यार
इसके लिए अनुपम खेर और उनकी पत्नी उचित है इनकी पत्नी पहले से शादीसुदा थी लेकिन उनकी शादी चली नही और एक बेटा भी था अनुपम खेर ने उनसे शादी की और ये उनके बच्चे को भी दूसरे की औलाद जैसा ना महसूस हो इसके लिए अपना बच्चा पैदा नही किया । ये समर्पण है ,जब आप काफी सारे अंधेरे पहलुओं को भी स्वीकार करके कदम बढाते हो और निभाते भी हो। इस तरह की शादियों में सबसे बड़ी परेशानी पहली शादी से हुए बच्चों का भविष्य ही होता है ।
दूसरी तरफ क्रश किंग थरूर है जिन्होंने अनेक शादियां की और अनेक बच्चे और उनके बच्चे आये दिन किसी एयरपोर्ट पर नशे के साथ पकड़े जाते है । क्रश कोका कोला की बोतल है जिसकी एक्सपायरी डेट होती और प्यार गंगाजल सैकड़ो साल बाद भी वैसा ही
क्रश के मामले में भविष्य दुखदाई होता है और प्यार के मामले में सुखदाई
क्रश हमेशा हैसियत से ऊपर और पहुँच से दूर ही होती है तो हम इसे बला मान सकते हैं।
क्रश किसी अभिनेता/अभिनेत्री, खिलाड़ी, राजनेता, दिवंगत आर्दश व्यक्तित्व किसी पर भी हो सकता है। मेरा अबतक का इकलौता क्रश शहीद भगतसिंह जी (प्रेम नहीं) थे।
क्रश पल में शोला पल में माशा की तरह आज इसपर तो कल उसपर भी हो जाता है।
इसमें हर रोज भावनायें पनपतीं और हर रोज ख़त्म होतीं हैं, शायद इसीलिये इसे क्रश कहते हैं।
प्यार की परिभाषायें सभी के लिये अलग अलग होतीं हैं। कई महान कवि और लेखक इसे परिभाषित करने में नाकाम रहे तो मैं तो फिर भी एक अज्ञानी बालिका हूँ, जो सिर्फ कोशिश कर सकती है। हमारी फिल्मों में दिखाये गये प्रेम( फिल्मी प्रेम को मैं क्रश मानती हूँ ) और मेरे वाले प्रेम में बहुत अंतर है।
हमारी फिल्मों में दिखाते हैं एक नजर देखते ही प्यार हो जाता है। मेरे अनुसार एक नजर में आकर्षण होता है प्रेम होने के लिये एक दूसरे को जानना समझना जरूरी होता है, जो कई सालों के सब्र का परिणाम होता है। फिल्मों में दिखाते हैं, तुम मेरी/मेरे नहीं हो सकती/सकते तो मैं तुम्हें किसी और का भी नहीं होने दूँगा/दूँगी। जबकि असली प्रेम में पाने से ज्यादा सामने वाले की खुशी की परवाह होती है, हमारे साथ या हमारे बिना जहाँ भी रहे बस वो खुश रहे। फिल्मों में दिखाते हैं लड़का-लड़की किसी की परवाह किये बिना घर से भागकर शादी कर लेते हैं और खुशी खुशी जीते हैं। जबकि असल में भागने वाले हमेशा भागते ही रहते हैं (एक दूसरे को धोखा देकर भी)। मेरे अनुसार वही प्रेम सफल होता है जिसमें माता-पिता की भी रजामंदी हो।
फिल्मों में मूवऑन करना बड़ा आसान होता है। पर मेरे अनुसार प्रेम बड़ी strong feeling है।
जीवन में सिर्फ एक बार होता है, फिर सामने वाला हमारा प्रस्ताव स्वीकार करे या ना करे उसके प्रति हमारा प्रेम कभी ख़त्म नहीं होता। फिल्मों में मीठी मीठी बातें होतीं हैं। चाँद-तारे तोड़ने के वादे होते हैं, सपनों की दुनिया और सपनों के राजकुमार/राजकुमारी होते हैं। जबकि असली प्रेम में सपने यथार्थ अधिक मायने रखता है। चाँद-तारे लाने के वादे नहीं बल्कि बुरे से बुरे हालात में भी एक-दूसरे के साथ खड़े होने के इरादे होते हैं।