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धूमावती जयंती आज

धूमावती जयंती आज
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हिंदू धर्म में दस महाविद्याओं का विशेष महत्व है और इन्हीं दस महाविद्याओं में से एक हैं देवी धूमावती। धूमावती जयंती देवी धूमावती को को समर्पित है जो त्याग और तत्वज्ञान का प्रतीक माना जाता है। ये ऐसी देवी हैं जिनकी साधना, तंत्र और तपस्या के लिए अक्सर पूजा की जाती है। इनका स्वरूप अन्य देवियों से अलग, गंभीर और रहस्यमय है।
धूमावती जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त
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वर्ष 2025 में धूमावती जयंती 3 जून, मंगलवार को मनाई जाएगी।
यह पर्व विशेष रूप से ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे धूमावती अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन देवी धूमावती की विशेष पूजा की जाती है।
देवी धूमावती का स्वरूप और प्रतीक
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देवी धूमावती का स्वरूप बहुत ही रहस्यमय और गंभीर है।
वे एक बूढ़ी, विधवा और रथ पर सवार देवी के रूप में जानी जाती हैं।
वे अपने हाथों में एक ध्वज और एक कटोरा रखती हैं, और एक कौवे द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार होती हैं। वे धुएँ के रंग की हैं, और सफेद कपड़े पहनती हैं। धूमावती देवी को जीवन के उन पहलुओं का प्रतीक माना जाता है जिन्हें आम तौर पर अप्रिय माना जाता है – अकेलापन, त्याग, दुःख और वैराग्य।
हालाँकि, ये वही तत्व हैं जो आध्यात्मिक प्रगति में मदद करते हैं। वह बताती हैं कि दुख और अस्वीकृति के क्षण भी आत्म-साक्षात्कार का मार्ग बन सकते हैं।
धूमावती जयंती की पूजा विधि
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धूमावती जयंती के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
फिर पूजा स्थल को साफ करके देवी धूमावती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजा में प्रयुक्त सामग्री:
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जल, फूल, सफेद कपड़े
केसर, साबुत चावल, घी
सफेद तिल, धतूरा, जौ
सुपारी, दूर्वा, गंगा जल
शहद, कपूर, चंदन
नारियल, पंचमेवा
ये सभी सामग्री देवी को अर्पित करें।
मंत्र:
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“ॐ धुम धुम धूमावती स्वाहा” – इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
इसके बाद धूमावती माता की कथा सुनें या सुनाएं। साधक इस दिन विशेष रूप से उपवास रखते हैं और एकांत साधना करते हैं।
धूमावती जयंती की पौराणिक कथा
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एक बार देवी पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर यात्रा कर रही थीं। रास्ते में उन्हें बहुत भूख लगी।
उन्होंने भगवान शिव से भोजन मांगा, लेकिन शिव ने उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कहा। समय बीतता गया और देवी की भूख बढ़ती गई।
जब बार-बार आग्रह करने पर भी उन्हें भोजन नहीं मिला, तो देवी पार्वती ने क्रोध में भगवान शिव को निगल लिया।
शिव के गले में विष के प्रभाव के कारण देवी का शरीर धुएं से भर गया और उनका रूप विकृत हो गया।
भगवान शिव अपनी माया से बाहर आते हैं और देवी से कहते हैं, “अब तुम धूम्र युक्त गई हो, इसलिए तुम ‘धूमावती’ कहलाओगी।
जिस क्षण तुमने मुझे निगला, तुम विधवा हो गईं। इसलिए, तुम संसार में विधवा देवी के रूप में पूजी जाओगी।”
धूमावती देवी के उपासक और उनके लिए विशेष नियम
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धूमावती देवी की पूजा आमतौर पर घरों में नहीं की जाती है क्योंकि उनका रूप उग्र और विधवा रूप का प्रतीक है।
उनकी पूजा केवल त्याग और वैराग्य के मार्ग पर चलने वाले लोग ही करते हैं – जैसे तपस्वी, साधु, योगी या तांत्रिक।
देवी के उपासकों को विशेष संयम और नियमों का पालन करना चाहिए। जैसे:
सात्विक जीवनशैली
एकांत ध्यान
ब्रह्मचर्य और मानसिक संयम
रात्रि जागरण और तांत्रिक मंत्रों का जाप
यह देवी साधक को उसके कर्मफल और दुखों से मुक्ति का मार्ग दिखाती हैं।
धूमावती जयंती पर क्या करें और क्या न करें
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क्या करें:
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सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
शुद्ध सफेद वस्त्र पहनें।
मौन व्रत या उपवास रखें।
देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और उनकी विधिवत पूजा करें।
“ॐ धूमा धूमावती स्वाहा” मंत्र का जाप करें।
धूमावती जयंती की कथा सुनें या सुनाएँ।
क्या न करें:
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माँ धूमावती की पूजा बिना उचित जानकारी के न करें।
रात में भारी भोजन या अशुद्ध चीजों का सेवन न करें।
पूजा के बाद ध्वनि प्रदूषण या शोरगुल न मचाएँ।
घर में देवी की मूर्ति स्थायी रूप से स्थापित न करें, खासकर गृहस्थों के लिए।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

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