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Dr Krishna Kant Akshar

प्रसिद्व व्यक्तित्व विषेष परिचय

आचार्य डॉ कृष्ण कान्त अक्षर, फर्रूखाबाद

आज हम आपको अपनी द्वारिकाधीश डिवाईनमार्ट मासिक ई-पत्रिका के चतुर्थद संस्करण के माध्यम से वास्तुशास्त्री का साक्षात्कार प्रेषित कर रहे है। डॉ कृष्ण कान्त अक्षर जी को पिछले 4 वर्षो से भली भॉती परिचित हू। डा अक्षर जी अत्यन्त ही ज्ञानी, विद्वान व शान्त प्रिय व्यक्ति है, डा अक्षर जी से हाल ही के दिनों मं हमारी वर्तालाप हुई, उस समय उनसे कई विषयो पर अलग अलग चर्चा हुई, जिसमें ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद व वनौषधी के बारे चर्चा हुई, उस वार्ता में ‘‘वास्तु विज्ञान भारत का अद्भुत विज्ञान के बारे

में काफी विस्तृत जानकारी डा अक्षर जी ने प्रदान की। उन सभी को आपके समाने प्रेषित करना सम्भव नही है परन्तु उसके प्रमुख अंश हम आपके सम्मुख रख रहे है।

 

परिचय

डॉ अक्षर फर्रूखाबाद, उत्तर प्रदेष के रहने वाले है, उन्होने ज्योतिषाचार्य, आयुर्वे दाशास्त्री, व्याकरणशास्त्री एम ए हिन्दी संसकृत बीएड साहित्य रत्न से षिक्षा प्राप्त की। डॉ अक्षर भारतीय पाठशाला इण्टर कॉलेज फर्रूखाबाद उत्तर प्रदेश से संस्कृत प्रवक्ता पद से सेवा निवृत्त है। डॉ अक्षर ऋषियों की प्राचीन विद्याओं एवं विज्ञानों पर सतत शोध एवं प्रचार कार्य पर निरन्तर कार्य करते रहते है।

 

डॉ आर टी राजपूत: वास्तुशास्त्र विद्या किस विषय से सम्बन्धित है।

डॉ कृष्ण कान्त अक्षर: भवन निर्माण, औद्योगिक प्रतिष्ठान कारखाना, दुकान, मन्दिर जलाशय निर्माण विद्या ही वास्तुशास्त्र है।

 

डॉ राजपूत: वास्तु का क्या अर्थ है

डॉ अक्षर: ‘‘वास्तोस्पति’एक वैदिक देवता है। वस्तु अर्थात यर्थाथ सत्य मय दैव्यों के वास्तु विज्ञानी है।

 

डॉ राजपूत: क्या आर्किटेक्चर और वास्तु विज्ञान एक ही है।

डॉ अक्षर: नही आर्किटेक्चर बाहरी सज्जा पर ध्यान देता है किन्तु वास्तु भवन दुकान आदि को शुभता से भी जोडता है।

 

डॉ राजपूत: क्या फेंग संई और वास्तु एक ही है।

डॉ अक्षर: नही फेंग सुई चीन की विद्या है और भारतीय वास्तु से अलग है।

 

डॉ राजपूत: क्या वास्तु शास्त्र के नियमों का प्रयोग भवन निर्माण में जरूरी है।

डॉ अक्षर: जरूरी ही नही अपरिहार्य है। इसके नियमों के प्रयोग से बहुत से अशुभ और नकारात्मक लक्षण समाप्त हो जाते है।

 

डॉ राजपूत: ज्योतिषविज्ञान और वास्तुशास्त्र में क्या सम्बन्ध है।

डॉ अक्षर: वास्तु विज्ञान ज्योतिष विज्ञान का एक अंग है।

 

डॉ राजपूत: वास्तु शास्त्र के विषयों पर प्रकाश डाले

डॉ अक्षर: भवन, कारखाना, मन्दिर जलाशय आदि के लिए भूमि चयन, उसकी शुभता अशुभता की परख, भवन में शयन कक्ष, रसोई घर, पूजा घर, बैठक अतिथिकक्ष, अध्ययन कक्ष, पानी का निकास बिजली के संयत्रों का स्थापन, पेड पौधों का रोपण, द्वारवेध का निराकरण, ब्रहम स्थान का निर्धारण, शौचालय, स्नानघर आदि की दिशा आदि विषय वास्तु शास्त्र के अर्न्तगत आते है।

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