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10 रुपया का बिंदी पत्ता

2 दिन पहले जब मैं पटना के नए अस्पताल “रिफॉर्म हेल्थ केयर”* *से लौट रहा था तो रास्ते में मैंने कुछ लिख बैठा । शुरू से ही मुझे लिखने का बड़ा शौक है।एक बार अवश्य पढ़ें–

बाहर फेरीवाला आया हुआ था कई तरह का सामान लेकर। बिंदिया, कांच की चूड़ियां, रबर बैंड, हेयर बैंड, कंघी, काँच और भी बहुत सारे सामान थे। आस पड़ोस की औरतें उसे घेर कर खड़ी हुई थी।

काफी देर तक बाबा गेट पर अपनी लाठी टेककर खड़े रहे, जैसे ही औरतों की भीड़ छठी बाबा अपनी लाडली टेकते हुए फेरी वाले के पास पहुंच गए और फेरी पर सामान देखने लगे। शायद कुछ ढूंढ रहे थे। कभी सिर ऊंचा करके देखते तो कभी नीचा। जो देखना चाह रहे थे, वह दिख नहीं रही था।

हैरान परेशान बाबा को फेरी वाले ने देखा तो पूछा,

” कुछ चाहिए था बाबा आपको?”

पर बाबा ने सुनकर अनसुना कर दिया। धीरे-धीरे लाठी टेकते हुए फेरी के ही चक्कर लगाने लग गए। कही तो दिखे वो जो देखना चाहते हैं। फेरी वाले ने दोबारा पूछा,

” बाबा कुछ चाहिए था क्या?”अबकी बार बाबा ने फेरीवाले से कहा,

” हां बेटा”” क्या चाहिए था? बताओ मुझे, मैं ढूंढ देता हूं”

“मुझे है ना वो बिंदिया चाहिए थी”

“बिंदिया क्यों चाहिए बाबा?”

बाबा ने अम्मा की तरफ इशारा करते हुए बताया,

“अरे! मेरी पत्नी के लिए चाहिए समझदार”

बाबा का जवाब सुनकर फेरीवाला हँस दिया। “किस तरह की बिंदिया चाहिए”

” बड़ी-बड़ी गोल बिंदिया चाहिए। बिल्कुल लाल रंग की”

फेरीवाले ने बिंदिया का पैकेट निकाल कर दिया,

” यह देखो बाबा, ये वाली?”

” अरे नहीं नहीं, ये वाली नहीं। बिल्कुल लाल सी”

फेरीवाले ने वो पैकेट रखा और दूसरा पैकेट निकाल कर दिया,

” बाबा ये वाली?”

” अरे तुझे समझ में नहीं आता क्या? बिल्कुल लाल लाल बिंदिया चाहिए”

फेरी वाले ने सारे पैकेट निकालें और फेरी के एक तरफ फैला कर के रख दिए

” आप खुद ही देख लो बाबा कौन सी बिंदिया चाहिए”

बाबा ने अपने कांपते हाथों से बिंदियों के पैकेट को इधर-उधर किया और उसमें से एक पैकेट निकाला,

” हां हां, ये वाली”

बाबा के हाथ में बिंदी का पैकेट देखकर फेरीवाला मुस्कुरा दिया। बाबा ने तो मेहरून रंग की बिंदी उठाई थी।

” कितने की है?”

” 10 रुपये की है बाबा”

” अच्छा?”

कीमत सुनकर बाबा का दिल बैठ गया, पर फिर बोले,

” ठीक है, अभी लेकर आता हूं”

बाबा लाठी टेकते हुए पलट कर जाने लगे कि घर में से बहू आती दिखी। उसे देखकर बाबा बोले,

” अरे बहू, जरा 10 रुपये तो देना। फेरी वाले को देने हैं”

” अब क्या खर्चा करा दिया आप लोगों ने?” बहू ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

“अम्मा के लिए बिंदिया खरीदी थी। उसकी बिंदिया खत्म हो गई थी। कई बार बोल चुकी है” बाबा ने धीरे से कहा।

” बस आप लोगों को और कोई काम नहीं है। बेवजह का खर्चा कराते रहते हैं। सत्तर साल की हो चुकी है अम्मा, अभी भी क्या बिंदिया लगाएगी? इस उम्र में भी ना जाने क्या-क्या शौक है?”

” बेटा, बात शौक की नहीं है। अम्मा भी सुहागन है इसलिए उसका मन नहीं मानता। सिर्फ 10 रुपये ही तो मांग रहा हूं। अंदर जाकर दे दूंगा”

” कहां से दे दोगे? वो जो पैसे दोगे, वो भी तो मेरे पति की कमाई है। मेरे पास कोई पैसे नहीं है”

इतना कहकर बहु बढ़बढ़ाती हुई अंदर आ गई। अम्मा ने अपनी खाट पर लेटे लेटे ही बाबा को इशारा किया। बाबा ने पलटकर बिंदी फेरी में वापस रख दी और लाठी टेकते हुए अम्मा के पास आकर बैठ गए। बाबा ने देखा अम्मा की आंखों में आंसू थे।

” माफ करना पार्वती। मैं तेरी छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर पाया”

” रहने दो जी, बेचारी बहू भी परेशान हो जाती होगी। काहे दिल पर ले कर बैठे हो। बिंदी ही तो थी”

” हां बिंदी ही तो थी। कौन सी हजारों रुपए की आ रही थी” बाबा ने व्यंग से हंसते हुए कहा।

” बिंदी ही तो लगानी है जी। एक काम करो पूजा घर में से हिंगलू ले आओ। उसी से लगा देना। पर आज अपने हाथों से ही बिंदी लगा दो”

बाबा ने अम्मा की बात सुनी और फिर लाठी टेकते हुए पूजा घर में गये। थोड़ी देर बाद बाबा हाथ में हिंगलू लिए अम्मा के पास पहुंचे,

” लो पार्वती उठो, मैं तुम्हें बिंदी लगा देता हूं”

पर अम्मा ने कोई हलचल ना दिखाई। बाबा ने दोबारा कहा,

” पार्वती, ओ पार्वती। सो गई क्या? तेरी बड़ी इच्छा थी ना बड़ी सी लाल बिंदी लगाने की। ले देख मैं हिंगलू ले आया हूं। अब बड़ी सी लाल बिंदी लगा दूंगा। पर तू बैठ तो सही”

पर अम्मा बिल्कुल शिथिल पड़ी हुई थी। शरीर में कोई हलचल ना थी। बाबा का दिल बैठ गया। हाथ में हिंगलू लिए अम्मा के पास ही बैठ गए। आंखों में से झर झर आंसू बह रहे थे, पर एक भी बोल ना फुटा। अम्मा जा चुकी थी हमेशा के लिए।

थोड़ी देर में रोना-धोना मच गया। आस पड़ोस के लोग आ गए। बेटे को बुलाया गया और अम्मा को अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया गया। अम्मा को नहला धुला कर, सुहागन की तरह तैयार कर, अर्थी पर लेटा कर बाहर लाया गया।

बाबा ने देखा अम्मा के माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगी थी। बाबा उठे और घर में गए। थोड़ी देर बाद बाहर आए और धीरे-धीरे अम्मा की अर्थी के पास गये। और अम्मा के माथे पर से बिंदी हटा दी,

” बाबा क्या कर रहे हो? अम्मा सुहागन थी। आप बिंदी क्यों हटा रहे हो?” बेटे ने कहा।

” बेटा! उसका पति बिंदी खरीदने की औकात नहीं रखता था। इसलिए हटा रहा हूं”

सुनकर सब लोग अवाक रह गए। बहू शर्मसार हो गई। सब ने देखा बाबा अपने हाथ में लाए हिंगलू से एक बड़ी सी लाल बिंदिया अम्मा के माथे पर लगा रहे हैं।

थोड़ी देर बाद बहू की चित्कार छूट गई। बाबा भी अम्मा के साथ हमेशा हमेशा के लिए लंबी यात्रा पर रवाना हो गए थे।

 

 

Dr Ved Prakash

Nawada Bihar

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