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एकादशी व्रत का नियम/पूजा विधि…

आओ अब जानते हैं कि किस माह में आती है कौन-सी एकादशी?

-चैत्र माह में कामदा और पापमोचिनी एकादशी आती है। कामदा से राक्षस आदि की योनि से छुटकारा मिलता है और यह सर्वकार्य सिद्धि करती है तो पापमोचिनी एकादशी व्रत से पाप का नाश होता है और संकटों से मुक्ति मिलती है।

-वैशाख में वरुथिनी और मोहिनी एकादशी आती है। वरुथिनी सौभाग्य देने, सब पापों को नष्ट करने तथा मोक्ष देने वाली है तो मोहिनी एकादशी विवाह, सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती है, साथ ही मोह-माया के बंधनों से मुक्त करती है।

-ज्येष्ठ माह में अपरा और निर्जला एकादशी आती है। अपरा एकादशी व्रत से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और निर्जला का अर्थ निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना है। इसके करने से हर प्रकार की मनोरथ सिद्धि होती है।

-आषाढ़ माह में योगिनी और देवशयनी एकादशी आती है। योगिनी एकादशी से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति पारिवारिक सुख पाता है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है।

*श्रावण माह में कामिका और पुत्रदा एकादशी आती है। कामिका एकादशी का व्रत सभी पापों से मुक्त कर जीव को कुयोनि को प्राप्त नहीं होने देता है। पुत्रदा एकादशी करने से संतान सुख प्राप्त होता है।

-भाद्रपद में अजा और परिवर्तिनी एकादशी आती है। अजा एकादशी से पुत्र पर कोई संकट नहीं आता, दरिद्रता दूर हो जाती है, खोया हुआ सबकुछ पुन: प्राप्त हो जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दु:ख दूर होकर मुक्ति मिलती है।

-आश्‍विन माह में इंदिरा एवं पापांकुशा एकादशी आती है। पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली इंदिरा एकादशी के व्रत से स्वर्ग की प्राप्ति होती है जबकि पापांकुशा एकादशी सभी पापों से मुक्त कर अपार धन, समृद्धि और सुख देती है।

*कार्तिक में रमा और प्रबोधिनी एकादशी आती है। रमा एकादशी व्रत करने से सभी सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है। इस दिन तुलसी पूजा होती है।

-मार्गशीर्ष में उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी आती है। उत्पन्ना एकादशी व्रत करने से हजार वाजपेय और अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इससे देवता और पितर तृप्त होते हैं। मोक्षदा एकादशी मोक्ष देने वाली होती है।

-पौष में सफला एवं पुत्रदा एकादशी आती है। सफला एकादशी सफल करने वाली होती है। सफला व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए।

-माघ में षटतिला और जया एकादशी आती है। षटतिला एकादशी व्रत रखने से दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। जया एकादशी व्रत रखने से ब्रह्महत्यादि पापों से छुट व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है तथा भूत-पिशाच आदि योनियों में नहीं जाता है।
-फाल्गुन में विजया और आमलकी एकादशी आती है। विजया एकादशी से भयंकर परेशानी से व्यक्ति छुटकारा पाता है और इससे श‍त्रुओं का नाश होता है। आमलकी एकादशी में आंवले का महत्व है। इसे करने से व्यक्ति सभी तरह के रोगों से मुक्त हो जाता है, साथ ही वह हर कार्य में सफल होता है।

-अधिकमास माह में पद्मिनी (कमला) एवं परमा एकादशी आती है। पद्मिनी एकादशी का व्रत सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, साथ ही यह पुत्र, कीर्ति और मोक्ष देने वाला है। परमा एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है।

एकादशी व्रत का नियम क्या है?

एकादशी व्रत करने वाले लोगों को दशमी यानी एकादशी से एक दिन पहले के दिन से कुछ जरूरी नियमों को मानना पड़ता है. दशमी के दिन से ही श्रद्धालुओं को मांस-मछली, प्याज, मसूर की दाल और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. दशमी और एकादशी दोनों दिन लोगों को भोग-विलास से दूर पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

एकादशी पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें
भगवान की आरती करें
भगवान को भोग लगाएं
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.

 

पूजन सामग्री

श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति चाहिए, पुष्प,पुष्पमाला,नारियल, सुपारी, अनार,आंवला, बेर, अन्य ऋतुफल, धूप
घी, पंचामृत बनाने के लिए कच्चा दूध,दही,घी,शहद और शक्कर चाहिए, चावल, तुलसी,गोबर,केले का पेड़, मिठाई भी चाहिए.

 

एकादशी व्रत उद्यापन

एकादशी व्रत के दिन और उद्यापन पर ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए. पूजन कितना भी बड़ा या छोटा हो सभी व्रतियों को श्रद्धा के साथ इसे करना चाहिए. एकादशी व्रत का उद्यापन किसी योग्य आचार्य के मार्गदर्शन में करना चाहिए. उद्यापन में 12 माह की एकादशियों के निमित्त 12 ब्राह्मणों को पत्नी सहित निमंत्रित किया जाता है. उद्यापन पूजा में तांबे के कलश में चावल भरकर रखें. अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है. पूजन के बाद हवन होता है और सभी ब्राह्मणों को फलाहारी भोजन करवाकर वस्त्र,दान आदि दिया जाता है

 

क्यों करना जरूरी है उद्यापन

किसी भी व्रत की पूर्णता तभी मानी जाती है जब विधि-विधान से उसका उद्यापन किया जाए, उद्यापन करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि हम जो व्रत करते हैं उसके साक्षी तमाम देवी-देवता, यक्ष, नाग आदि होते हैं, ऐसे में उद्यापन के दौरान की जाने वाली पूजा और हवन से उन सभी देवी-देवताओं को उनका भाग प्राप्त होता है, इस दौरान किए जाने वाले दान-दक्षिणा से व्रत की पूर्णता होती है और मन इच्छा का फल मिलता है.

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