जानें हस्तरेखा से भविष्य… 23
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तीन प्रकार के होते हैं अंगूठे
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अंगूठे के हथेली से दूर होने की वृत्ति को ध्यान में रखते हुए समस्त मानव जाति के अंगूठे विशेष रूप से तीन भागों में विभक्त किये गए हैं। हथेली से बिलकुल चिपके रहने वाले अंगूठे न्यूनकोण कहलाते हैं। हथेली व तर्जनी के साथ इसका विस्तार क्षेत्र 40° डिग्री से 80° डिग्री तक रहता है। दूसरी श्रेणी में समकोण अंगूठे आते हैं जो कि हथेली पर तर्जनी के साथ 90° डिग्री से 95° डिग्री तक का विस्तार क्षेत्र रखते हैं। तीसरी श्रेणी में वे अंगूठे आते हैं जो कि 95° से 180° तक झुक या मुड़ सकने के कारण तर्जनी के साथ अधिक कोण बनाते हैं।
1. न्यूनकोण अंगूठा-
ऐसे अंगूठे मिट्टी के ढेले के समान हथेली से जुड़े होते हैं। इनकी लम्बाई बहुत ही कम होती है जो कि कठिनता से तर्जनी के निचले पोर की प्रथम सन्धि रेखा तक ही पहुंचते हैं। ऐसे व्यक्तियों का शारीरिक गठन, छोटा, मोटा, ठिगना व गठीला होता है। ऐसे जातक अधिकतर मध्यम व निम्नवर्गीय होते हैं। शिक्षा के अभाव से ये लोग धर्म – कर्म में विश्वास नहीं करते हैं तथा आर्थिक अभावों से ग्रस्त रहते हैं। ऐसे लोग भूत, प्रेत, कब्र, सन्त, समाधि, पितर, इत्यादि की पूजा करते हैं।
2. समकोण अंगूठा-
हथेली से जुड़ते समय तर्जनी से समकोण 90° से 95° डिग्री के मध्य सीधे दिखाई देने वाले इन अंगूठे के स्वामी सुन्दर, सुदृढ़, सुडौल व सभ्य होते हैं। ऐसे जातक व्यावहारिक व समझदार होते हैं। ऐसे जातक दूसरों की अपेक्षा अधिक परिश्रम करते हैं। ऐसे व्यक्ति या कर्मचारी अपनी धुन के धुनी व बात के पक्के होते हैं। प्रतिशोध तथा बदले की भावना इनमें प्रबल होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में टूट सकते हैं परन्तु झुकना इनके बस की बात नहीं होती है।
3. अधिक कोण अंगूठा-
ऐसे जातक के अंगूठे मुलायम, शीघ्र मुड़ने वाले व अधिक कोण बनाने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति अत्यधिक भावुक व कुछ लम्बे कद के होते हैं। ये विपरीत परिस्थितियों में भी विद्याध्ययन करते हैं। कला, संगीत, विज्ञान, मन्त्र, औषध व आध्यात्मिक विद्याओं के प्रति इनकी सहज प्रवृत्ति होती है। ऐसे जातक सतोगुणी होते हैं तथा फिजूलखर्ची, दानी, त्यागी व साहसी होते हैं।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076