दौड़ते रहोगे तो संसार मिलेगा, ठहरोगे तो परमात्मा – एक यहूदी कथा का गहरा संदेश
दौड़ने से संसार मिलेगा, रुकने पर मिलेगा परमात्मा ✨
जीवन की भागदौड़ में हर कोई सफलता और समृद्धि की तलाश करता है। लेकिन एक यहूदी कथा हमें यह सिखाती है कि असली सुख कहाँ है—दौड़ते रहने में या रुककर भीतर झाँकने में।
यहूदी मित्रों की कहानी
दो यहूदी मित्रों ने एक साथ व्यापार शुरू किया।
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एक मित्र धीरे-धीरे गरीब होता गया।
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दूसरा मित्र बहुत अमीर हो गया।
अमीर मित्र ने कहा—“मेरी सफलता का राज यह है कि मैंने परमात्मा को अपना साझीदार बनाया है। साल में एक दिन उपवास करता हूँ और हर महीने दस रुपये दान करता हूँ। सब ईश्वर की कृपा है।”
गरीब मित्र भी भगवान को याद करता था, दान करता था, उपवास करता था, लेकिन उसने परमात्मा को अपना “साझीदार” नहीं माना। वह सोचता था कि भगवान को इस कीचड़ (दुनिया के धंधों) में क्यों खींचे?
लेकिन अगले ही दिन अमीर मित्र का सब कुछ जलकर राख हो गया। तब उसका विश्वास भी टूट गया और उसने कहा—“कोई भगवान नहीं है, सब धोखा है।”
वहीं गरीब मित्र ने उसे पत्र लिखा—“मेरे पास थोड़ा है, लेकिन उसका आधा तुम्हें दे रहा हूँ। भगवान तुम्हारे साथ हैं, सब फिर से ठीक होगा।”
शिक्षा
इस कहानी का सार यही है कि:
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जो केवल लाभ-हानि के लिए परमात्मा को याद करता है, उसका विश्वास असफलता में टूट जाता है।
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सच्चा भक्त वही है, जो हर हाल में धन्यवाद देता है—चाहे सुख मिले या दुःख।
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दौड़ते रहने से केवल संसार मिलता है। लेकिन जब मन शांत होता है, जब हम ध्यान और संतोष में रुकते हैं, तभी परमात्मा का अनुभव होता है।
ध्यान का महत्व 🕉️
ध्यान का अर्थ है—एक क्षण के लिए भीतर की दौड़-धूप रोक देना।
उस पल न कोई वासना होती है, न कोई चाह।
और तभी, हवा के झोंके की तरह, परमात्मा भीतर प्रवेश करता है—
धूल को हटाकर, जीवन को कंचन बना देता है।
भाग-दौड़ हमें दुनिया के भटकाव में उलझाती है,
लेकिन रुककर, चुप होकर, ध्यान में उतरकर ही
परमात्मा का सच्चा अनुभव मिलता है।
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