Search for:
  • Home/
  • Dr Ved Prakash/
  • जीतिया व्रत के पीछे की कहानी:

जीतिया व्रत के पीछे की कहानी:

*जीतिया व्रत का मुख्य उद्देश्य निर्जला उपवास करना नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र त्योहार है जो माताओं द्वारा अपने पुत्रों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है।*

*जीतिया व्रत के पीछे की कहानी:*

*जीतिया व्रत की उत्पत्ति प्राचीन काल में हुई थी, जब माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती थीं। इस व्रत के पीछे की कथा यह है कि माता पार्वती ने अपने पुत्र भगवान गणेश की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए उपवास किया था।*

*जीतिया व्रत के मुख्य उद्देश्य:*

1. पुत्र की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करना।
2. माता-पुत्र के बीच के पवित्र संबंध को मजबूत करना।
3. माताओं की भावनाओं और प्रेम को व्यक्त करना।
4. परिवार के लिए सुख और समृद्धि की कामना करना.

निर्जला उपवास जीतिया व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह इसका मुख्य उद्देश्य नहीं है। उपवास करने से माताएं अपने पुत्रों के लिए अपनी भावनाओं और प्रेम को व्यक्त करती हैं और उनकी लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं।
*यदि मां और बेटा एक दूसरे से दूर रहते हैं, तो मां को जितिया का व्रत करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए:*

*व्रत की तैयारी*

1. व्रत की तिथि को निर्धारित करें।
2. स्वच्छ वस्त्र पहनें।
3. घर को स्वच्छ और सजा लें।
4. भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।

*व्रत के दौरान*

1. फलाहार या जलाहार करें, निर्जला उपवास न करें यदि इससे तबीयत खराब हो सकती है।
2. व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
3. अपने बेटे की तस्वीर के सामने पूजा करें और उनकी लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करें।
4. अपने बेटे के साथ फोन या वीडियो कॉल पर बात करें और उनका आशीर्वाद लें।

*निर्जला उपवास*

यदि मां की तबीयत खराब हो सकती है तो निर्जला उपवास नहीं करना चाहिए। जितिया व्रत में निर्जला उपवास अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्तिगत पसंद है।

*व्रत की समाप्ति*

1. रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें।
2. व्रत के बाद भोजन करें।
3. अपने बेटे को आशीर्वाद दें और उनकी लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करें।

*महत्वपूर्ण बातें*

1. व्रत के दौरान अपनी तबीयत का ध्यान रखें।
2. यदि तबीयत खराब हो तो व्रत तोड़ दें।
3. व्रत के दौरान अपने बेटे के साथ संपर्क में रहने का प्रयास करें तथा अपने बेटे की मनोकामना पूरी करने की कोशिश करें।
4. व्रत के दौरान अपने परिवार के साथ मिलकर पूजा करें।

*मेरे विचार से व्रत का सही अर्थ 🌷*
व्रत के विषय में लोगों में बड़ी भ्रान्ति है।कोई एकादशी व्रत रखता है,कोई त्रयोदशी का,कोई चौथ का, कोई चीज करती है तो कोई कर्मा तो कोई जितिया।*
पहली बात यह है कि भूखा रहने का नाम व्रत नहीं है।भोजन करने में क्या आपत्ति है।व्रत मानसिक है और भोजन शारीरिक।बिना भोजन के शरीर नहीं रह सकता।अतः जब तक शरीर को भोजन की आवश्यकता है भोजन अवश्य करना चाहिए।
व्रत मानसिक कर्म है अतः भोजन करने से कोई फर्क नहीं पड़ता।मानसिक इसलिए है -व्रत का अर्थ है सत्य और धर्म पर चलने के लिए मन में पक्का इरादा करना।यदि आज मैं अपने मन में ठान लूं कि आज से कभी झूठ नहीं बोलूंगा या कोई बुरा काम न करुंगा तो इसका नाम है व्रत।यदि ऐसा व्रत करके कोई झूठ बोले तो उसका व्रत खण्डित हो जाता है।खाना खा लेने से व्रत खण्डित नहीं होता।देखो वेद में क्या लिखा है?-
अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि।तच्छकेयं तन्मे राध्यताम् ।
इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि।।-(यजुर्वेद 1-5)
अर्थ:-हे परमात्मन् ! मैं आज व्रत करता हूँ (या करती हूँ) कि झूठ को त्यागकर सत्य का आचरण करुँगा।आप व्रतों के पालक हैं।मुझे शक्ति दें कि मैं इस व्रत को निभा सकूँ।
यह है व्रत का अर्थ।स्वार्थी लोगों ने व्रत के झूठे किस्से गढ़ कर नर-नारियों को भ्रम में डाल रक्खा है।एकादशी के दिन भूखा रहने से कोई स्वर्ग को नहीं जा सकता,न खा लेने से नरक को जाता है।
‘उपवास’ वस्तुतः संस्कृत का शब्द ‘उपवास’ है।उपवास कहते हैं ‘पास बैठने को’।जब तुम्हारे घर कोई विद्वान या महात्मा आवे तो तुम उसका आदर करो।उसके पास बैठकर उससे उपदेश लो।यदि हम वैदिक सत्संग में जाते हैं वही उपवास है।यदि आप लोग ध्यानपूर्वक वेदों की शिक्षा सुनेंगे और उसके अनुकूल आचरण करने का निश्चय करें तो यही ‘व्रत’ होगा।यही ‘उपवास’ होगा।
हाँ !इतना अवश्य है कि जब कोई साधु या अतिथि तुम्हारे घर आवे तो उसको बिना खिलाये स्वयं खाना नहीं चाहिये।

*🌷एक और भ्रम :-*
‘जितिया के दिन जो स्त्री भोजन करती है वह अपने बेटे का अनिष्ट करती है।
यह भी कपोल कल्पना है।हर स्त्री को मां बेटे धर्म का पालन करना चाहिये।परन्तु भोजन कर लेने से बेटे को कोई हानि नहीं होती।बुरी बात का चिन्तन करने में दोष है। बेटे की सेवा करना हर स्त्री का धर्म है।

*🌷प्रश्न :-धृतराष्ट्र राजा की रानी गान्धारी ने आयु भर आँखों पर पट्टी बाँधी क्योंकि उसके पति अन्धे थे।जब पति ने आँख का सुख नहीं भोगा तो पत्नि ने भी उस सुख को त्याग दिया।क्या ये ठीक था?
उत्तर:-गान्धारी की त्याग की भावना तो अच्छी है परन्तु यह कार्य बुद्धिपूर्वक नहीं हुआ।आँख केवल सुख भोगने का साधन नहीं है।कर्त्तव्यपालन का भी साधन है।आँख पर पट्टी बाँधकर कोई स्त्री अपने पति की सेवा नहीं कर सकती,न सन्तान को पाल सकती है।यही कारण है कि गान्धारी की सन्तान अधर्मी और अत्याचारी हुई।बाप अन्धे थे।माँ अन्धी बन गई।दुर्योधन और उसके भाईयों को कौन समझाता? *क्या पति को ज्वर आ जाये तो पत्नि को चादर ओढ़कर पलंग पर लेट जाना चाहिये?*

*क्या पति की टाँग में फोड़ा निकल आये तो पत्नि को लंगड़ी बन जाना चाहिये?*
ऐसा पतिव्रत बुद्धि के विपरित है और मूर्खता के चिन्ह हैं।किसी स्त्री को ऐसा करना नहीं चाहिये।अपने सदाचार को ठीक रखना ही वास्तविक पतिव्रत धर्म है। ठीक इसी तरह जितिया में भी अपने संतानों के प्रति स्नेह पूर्वक वाता रखें और यह केवल एक दिन नहीं बल्कि पूरी आयु शुभ व्यवहार दोनों के बीच में बना रहे।तभी यह जितिया का पर्व आपका सार्थक होगा।

 

Credit &  Source : Social Media

Loading

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required