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क्या होता है जब ममता समाज के बंधनों में फंस जाती है?

क्या होता है जब ममता समाज के बंधनों में फंस जाती है?

✍️ लेखक – डॉ. वेद प्रकाश


भूमिका – एक सवाल, जो दिल तक उतर जाता है

क्या होता है जब ममता समाज के बंधनों में कैद हो जाती है?
क्या होता है जब परिवार का सबसे करीबी सदस्य भी मजबूरी, डर और परिस्थितियों के कारण दूर होता चला जाता है?

आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ,
जो हर दिल को छू जाएगी…
एक मां, उसके बेटे ऋतुन्जय और परिवार के टूटते-बिखरते रिश्तों की कहानी।

नमस्कार,
मैं डॉ. वेद प्रकाश,
और आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ एक वास्तविक जीवन पर आधारित कथा,
जो भावनाओं के सबसे गहरे तार छू लेगी।

यह कहानी है नवादा नाम के एक छोटे से गाँव की।


अध्याय 1 — प्रेम भरा परिवार और एक अनचाहा मेहमान

एक महिला रीना, अपने दोनों बेटों —
मृत्युंजय और ऋतुन्जय — के साथ नवादा में रहती थी।
जीवन सुंदर था…
घर में न कमी थी, न कलह, न तनाव।
प्यार, विश्वास और सरलता में जीवन बीत रहा था।

लेकिन कभी-कभी जिंदगी का तूफ़ान बिना बताए आ जाता है।

पाठक का आगमन — जिसने सब बदल दिया

रीना के जीवन में एक व्यक्ति आया —
पाठक।
उसने घर की खुशियों को धीरे-धीरे निगलना शुरू किया।

रीना उसकी ओर क्यों आकर्षित होने लगी,
यह कोई समझ नहीं पाया—
न उसका पति,
न उसका बेटा मृत्युंजय।

धीरे-धीरे घर का वातावरण टूटने लगा।
विश्वास बिखरने लगा,
रिश्तों के धागे ढीले पड़ते गए।

आख़िरकार एक दिन—
रीना बड़े बेटे और पति को छोड़कर
छोटे बेटे ऋतुन्जय के साथ किराए के घर में अलग रहने चली गई।


अध्याय 2 — दीपावली का अंधेरा और मृत्युंजय की बीमारी

समय बीता…
और इसी वर्ष दीपावली के समय
धीरे-धीरे मृत्युंजय की तबीयत बिगड़ने लगी—

  • तेज़ बुखार

  • पीलिया

  • उल्टी-दस्त

  • अत्यधिक कमजोरी

उसका शरीर पत्ता-पत्ता झड़ने लगा।

उसके पिता, एक नामी डॉक्टर, बाहर से मजबूत बने रहे,
लेकिन अंदर से टूटते जा रहे थे।

एक दिन मृत्युंजय ने कांपते स्वर में पूछा—

“पापा, मैं ठीक हो जाऊंगा न?”

पापा ने हिम्मत बटोरकर कहा—

“कुछ नहीं होगा बेटा… मैं हूँ ना।”

पर उनके अंदर वही डर, वही आंसू छिपे थे
जो एक पिता कभी दिखा नहीं पाता।


अध्याय 3 — बेटे की पुकार: “पापा, क्या मैं मम्मी को बुला सकता हूँ?”

एक दिन मृत्युंजय ने धीमी आवाज में कहा—

“पापा… क्या मैं मम्मी को बुला लूँ? बहुत याद आ रही है।”

पिता का दिल टूट गया।
उन्होंने भारी मन से कहा—

“बेटा, जो स्त्री वर्षों तक तुम्हारी खबर तक नहीं ली…
उस पर भरोसा मत करना।
मैं हूँ ना तेरे साथ।”

पर बेटे की आंखों में मां की भूख थी,
जो पिता पूरी नहीं कर सकता था।


अध्याय 4 — रिपोर्ट आने पर पिता का दर्द

ब्लड रिपोर्ट देखकर
पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

पर एक डॉक्टर होने के नाते
उन्होंने खुद को संभाला,
दोस्तों शशिकांत और चंदन को बुलाया,
और इलाज शुरू हुआ।

मृत्युंजय को 200 किमी दूर
अपने बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया।

लेकिन रात के अंधेरे में,
एक कमजोर उंगलियों वाला हाथ
अपनी मां को फोन कर रहा था—

“मां… मैं बहुत बीमार हूँ…
मुझमें बोलने की भी ताकत नहीं…”

रीना ने सब छोड़ दिया था
लेकिन समाज का डर उसकी ममता पर पहरा दे रहा था।


अध्याय 5 — मां की ममता और समाज की जंजीरें

फोन पर:

“मां… मुझे तुम्हारी जरूरत है।”
“मैं तेरे बिना अधूरी हूँ बेटा…”

पर जब बेटे ने कहा—

“मां, शायद मैं ठीक न हो पाऊं…”

मां के भीतर का डर,
ममता से ज्यादा बड़ा हो गया था।

उसने कहा—

“तो क्या मुझे आना पड़ेगा?”

यह सुनकर मृत्युंजय की आत्मा तक रो पड़ी।


अध्याय 6 — अंततः मां अस्पताल पहुंची

काफी बहस, दुविधा और समाज के दबाव से लड़ने के बाद
रीना अस्पताल पहुंची।

उसके हाथ में न फल था,
न बिस्किट का छोटा पैकेट।
वह निहत्थी थी—
बस मां की पहचान लेकर आई थी।

लेकिन बेटे को देख ही न सकी—
क्योंकि वह अल्ट्रासाउंड के लिए बाहर गया था।

उसने रिश्तेदारों को संदेश भेज दिया—

“मुझे धोखे से बुलाया गया है। यहां कोई है ही नहीं।”

आधे घंटे बाद जब पिता बेटे को सहारा देकर लाए,
मृत्युंजय लड़खड़ा रहा था…
बेड पर गिर गया।

रीना चौंकी,
रुकी,
और फिर बेटे को देखकर रो पड़ी।

उसने उसे बाहों में भर लिया।
उस पल में बेटे के लिए
हर दवा से ज्यादा असर
मां की ममता में था।


अध्याय 7 — विश्वास की लौ जलती है

धीरे-धीरे
मां की मौजूदगी से
मृत्युंजय में सुधार होने लगा।

उसने पापा से कहा—

“पापा… मां के साथ रहने से
जिंदगी फिर से खूबसूरत लगने लगी है।”

समाज के ताने बाहर रह गए।
अंदर सिर्फ—

  • एक बेटे का भरोसा

  • एक मां की ममता

  • और एक पिता का त्याग

तीनों ने मिलकर
एक टूटते जीवन को संभाल लिया।


समापन — ममता का संदेश

रीना खुद से कहती रही—

“जब तक बेटा सांस ले रहा है…
मां कभी मरती नहीं।
चाहे समाज कितना भी चिल्लाए।”

और यह कहानी…
ममता की जीत की कहानी है,
संघर्ष की नहीं —
विश्वास की कहानी है।


✍️ क्रमशः… अगला भाग लेखक पर शेष है।

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