मां छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ: रजरप्पा का चमत्कारी तांत्रिक स्थल
🌺 मां छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ: रजरप्पा का चमत्कारी तांत्रिक स्थल
✨ शक्तिपीठों में दूसरा सबसे बड़ा: झारखंड की पावन धरोहर
झारखंड के रजरप्पा में स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर भारत के शक्तिपीठों में दूसरा सबसे बड़ा और विशेष रूप से तांत्रिक साधना का महत्त्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यह मंदिर रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर, दामोदर और भैरवी नदियों के संगम पर स्थित है — जहां आस्था और रहस्य दोनों का अद्भुत संगम होता है।
📍 मंदिर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
मंदिर का इतिहास हज़ारों वर्ष पुराना माना जाता है। कुछ इसे महाभारत काल का बताते हैं, तो कुछ इसके निर्माण को 6000 वर्ष पहले का मानते हैं। मंदिर में मां छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप शिलाखंड पर दक्षिणमुखी अंकित है — जिनकी तीन आंखें हैं, बायां पांव कमल पुष्प पर और नीचे रति-कामदेव शयनावस्था में विराजमान हैं।
मां के दाएं हाथ में तलवार, बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक, और गले से बहती तीन रक्त धाराएं — तंत्र साधना के रहस्यमयी स्वरूप को दर्शाती हैं। साथ में डाकिनी और शाकिनी को रक्तपान कराते हुए माता स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं।
🌊 संगम और तीर्थ स्थल की विशेषता
दामोदर (पुरुष) और भैरवी (स्त्री) नदियों का यह संगम स्थल बहुत ही मनोहारी है। मान्यता है कि भैरवी नदी ऊपर से गिरती है और दामोदर में विलीन होती है। संगम स्थल की गहराई आज तक मापी नहीं जा सकी है।
मंदिर के पास अनेक पवित्र कुंड जैसे — मुंडन कुंड, पापनाशिनी कुंड, यज्ञ कुंड आदि हैं, जिन्हें रोगनाशक और नवजीवन देने वाला माना जाता है।
🔱 मंदिर परिसर के अन्य दर्शन
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🧘♀️ बलि और पूजा की परंपरा
मंदिर के सामने स्थित बलि स्थान पर प्रतिदिन 100 से अधिक बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। सुबह 4 बजे से ही भक्तों की लंबी कतारें लग जाती हैं, विशेष रूप से शादी, मुंडन, उपनयन और दशहरा जैसे अवसरों पर। दर्शन को व्यवस्थित करने के लिए टूरिस्ट गाइड भी नियुक्त किए गए हैं।
📖 मां छिन्नमस्तिका से जुड़ी पौराणिक कथाएं
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राजा रज और रानी रूपमा की कथा: देवी के आशीर्वाद से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई और इस स्थान का नाम रजरूपमा से रजरप्पा पड़ा।
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देवी भवानी की कथा: अपनी सहेलियों की भूख मिटाने के लिए देवी ने स्वयं का सिर काट लिया और उनकी रक्त धाराएं दो सहेलियों को समर्पित की — इसी स्वरूप में वे छिन्नमस्तिका कहलाईं।
🌄 आदिवासी आस्था का केंद्र
यह स्थान केवल हिन्दू भक्तों का ही नहीं, बल्कि आदिवासी समुदायों के लिए भी तीर्थ समान है। मकर संक्रांति के दिन लाखों श्रद्धालु यहां स्नान, चौडाल प्रवाहित करने और चरण स्पर्श के लिए आते हैं।
🛣️ कैसे पहुँचें?
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स्थान: रांची से लगभग 80 किमी दूर रजरप्पा
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आवागमन के साधन: बस, टैक्सी, ट्रैकर सभी उपलब्ध
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ठहरने की व्यवस्था: सीमित सुविधा, दिनभर में दर्शन कर अधिकतर लोग वापस लौट जाते हैं