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मेरी मदर सिर्फ ५वी कक्षा तक पढ़ी थी

मेरी मदर सिर्फ ५वी कक्षा तक पढ़ी थी और बाद में विद्याविशारद के माध्यम से १० वि उत्तीर्ण करी। मगर मैंने हिंदी भाषा में इतनी महारथ बहुत कम लोगो में देखी है , उनकी हिंदी बहुत समृद्ध थी । तुलसी रामायण के दोहे और चौपाइयां में वे अंताकक्षरी खेल सकती थी , उन्होंने ही हमारा परिचय सुर और रसखान से करवाया । नित नए मुहावरे , कहावत और लोकोक्ति उन्ही से सुनने का अवसर मिला । मेरी नानी तो स्कूल भी नहीं गई थी मगर आल्हा-उदल उन्हें के मुख से पहली बार सुना था , फिर भूषण के साथ साथ कई अन्य कवियों कि रचनाए उन्होंने ही हमें सुनाई ।

फिर मेरे गाँव में महिला दुकानदार और छोटे-छोटे व्यापारी शायद ही स्कूल की चौखट भी चढ़े हो मगर आप गणित में उनसे लोहा नहीं ले सकते , हज़ारो का हिसाब तुरत फुरत ! कोई कैलकुलेटर नहीं, कोई कंप्यूटर नहीं। मुझे जिन्होंने बचपन में गणित सिखाया था वे तो सिर्फ ८वी पास थे , उन्होंने ही हमें ४० तक के पहाड़े और अद्धा (१/२) , पोना(३/४) , सवाया (१ १/४) ढेडा (१ १/२) और ढईया (२ १/२) सिखाया , तब में पांच संख्याओं का गुणा और सही-बटे का हिसाब मिनटों में कर लेता था।

तब शिक्षित होने का मतलब होता था आपका भाषा और गणित पर कितना अधिकार है , तब भाषा की सरसता, विविधता और गणित में महारत ही आपके ज्ञान की पहचान थी। आधुनिक परिभाषा के हिसाब से तो ये लोग अशिक्षित ही हुए और शायद हम उन हज़ारो -लाखो कारीगरों को भी अशिक्षित मानेंगे जो अपने अपने क्षेत्र में पारंगत है मगर फॉर्मल एजुकेशन से वंचित रहे?

अब इस प्रश्न की बात करने से पहले यह स्पष्ट कर दू की न तो मै वेदो का ज्ञाता हू और न ही इतिहास का जानकार, जो भी जानकारी उस समय की है वह कही से कॉपी की हुई है।

उपलब्ध जानकारी के हिसाब से ईस्वी सन् के आरम्भ तक लड़कियों का उपनयन संस्कार होता था और उन्हें वेदों का अध्ययन करने की भी लड़कों के समान ही अनुमति होती थी।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।-अथर्ववेद

जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

प्राचीन वैदिककाल में लोपामुद्रा, विश्ववारा, सिक्ता निवावारी और घोषा आदि कुछ ऋषिकाएँ हैं, जिन्होंने ऋग्वेद के सूक्तों की रचना की है। इनमें से कुछ ऋषिकाओं और उनके द्वारा रचित ऋग्वेद के सूक्तों का वर्णन निम्नवत् है-

लोपामुद्रा- प्रथम मण्डल का 179वां सूक्त।
विश्ववारा आत्रेयी- पंचम मण्डल का 28वां सूक्त।
अपाला आत्रेयी- अष्टम मण्डल का 91वां सूक्त।
घोषा काक्षीवती- दशम मण्डल का 39वां तथा 40 वां सूक्त।
शची पौलोमी- दशम मण्डल का 149वां सूक्त (आत्मस्तुति)।
सूर्या सावित्री- दशम मण्डल का 85वां सूक्त।

उपनिषदों में भी अनेक विदुषी स्त्रियों का नाम आया है, जिनमें सुलभा मैत्रेयी, वडवा पार्थियेयी और गार्गी वाचक्नवी प्रसिद्ध हैं।

उपनिषद् काल में महिला छात्राओं के दो प्रकार उल्लेखनीय हैं- (1.) सद्योद्वाहा तथा (2.) ब्रह्मवादिनी । ‘सद्योद्वाहा’ स्त्रियाँ वे होती थीं, जो ब्रह्मचर्य आश्रम के अनन्तर गृहस्थ आश्रम में प्रविष्ट होती थीं

‘ब्रह्मवादिनी’ स्त्रियाँ उपनिषद् युग की विशिष्टता मानी जा सकती हैं। ये स्त्रियाँ ब्रह्म-चिंतन में तथा ब्रह्म-विषयक व्याख्यान में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देती थीं। वे ब्रह्मतत्व के व्याख्यान तथा परिष्कार में उस युग के महान् दार्शनिकों से भी वाद-विवाद एवं शास्त्रार्थ करती थीं। बृहदारण्यकोपनिषद् ऐसी दो ब्रह्मवादिनी नारियों की विद्वता का परिचय बड़े विशद् शब्दों में देता है। इनमें से एक है- उस युग के महनीय तत्त्वज्ञानी याज्ञवल्क्य ऋषि की धर्मपत्नी मैत्रेयी और दूसरी हैं- उसी याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने वाली वाचक्नवी गार्गी।

ईसापूर्व चौथी शताब्दी में जब भारत में दार्शनिक विषयों का अध्ययन-मनन प्रमुखता से होने लगा, तब अनेक स्त्रियों ने अपना जीवन अध्ययन और ज्ञानार्जन को समर्पित कर दिया। अल्टेकर ने ‘कात्सकृत्स्ना’ का उल्लेख किया है, जिसके द्वारा रचित मीमांसा के एक ग्रन्थ को ‘कात्सकृत्सिनी’ कहा जाता है। यदि स्त्रियाँ इतने विशिष्ट विषयों में पारंगत हो सकती थीं, तो इसका अर्थ है कि सामान्य रूप से उनकी शिक्षा-दीक्षा पर बहुत ध्यान दिया जाता रहा होगा।

उस युग में स्त्रियाँ वैदिक और दर्शन आदि की शिक्षा के अतिरिक्त गणित, वैद्यक, संगीत, नृत्य और शिल्प आदि का भी अध्ययन करती थीं। क्षत्रिय स्त्रियाँ धनुर्वेद अर्थात् युद्धविद्या की भी शिक्षा ग्रहण करती थीं तथा युद्ध में भाग भी लेती थीं। ऋग्वेद के दशम मण्डल के 102वें सूक्त में राजा मुद्गल एवं मुद्गालानी की कथा वर्णित है और उसे युद्ध में विजय दिलाती है। इसी प्रकार ‘शशीयसी’ का तथा वृत्तासुर की माता ‘दनु’ का वर्णन है, जिसने युद्ध में भाग लिया और इंद्र के हाथों वीरगति को प्राप्त हुयी। महाकाव्य काल में भी स्त्रियों के युद्ध में भाग लेने के सन्दर्भ प्राप्त होते हैं। कैकयी ने देवासुर-संग्राम में मृतप्राय हुए राजा दशरथ की सारथी बनकर प्राणरक्षा की थी और उसके फलस्वरूप दो वर प्राप्त किये थे। (वैदिक एवं आर्ष महाकाव्य युग में स्त्रियों की शिक्षा )

वैदिक काल की कुछ प्रसिद्ध भारतीय विदुषियाँ

कुछ विदुषियों के नामों और उनसे जुड़ी कथाओं के रूप में नीचे प्रस्तुत हैं –

गार्गी
गार्गी जनक की सभा में उपस्थित विद्वानों में से एक थीं। उनको वेदों का अच्छा ज्ञान था। उनके और महर्षि याज्ञवल्क्य के बीच हुए शास्त्रार्थ (बृहदारण्यक उपनिषद – 3.6) के प्रसंग से सिद्ध होता है कि वह एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं। गार्गी के प्रश्न ‘आसमान से ऊँचा और पृथ्वी से नीचे क्या है’ ने सभा में उपस्थित सभी लोगों को सोच में डाल दिया था।

मैत्रेयी
मैत्रेयी को भारतीय विदुषियों का प्रतीक माना जाता है। वह एक वैदिक दार्शनिक थीं और उनको अद्वैत दर्शन में निपुणता प्राप्त थी। बृहदारण्यक उपनिषद (2.4.2–4 और 2.4.5b) में उनके और ऋषि याज्ञवल्क्य के बीच हुआ एक संवाद लिखित है, जिसमे वह आत्मन और ब्राह्मण के अंतर पर चर्चा करती हैं। माना जाता है कि मैत्रेयी ने तत्वमीमांसा जैसे विषयों पर गहन अध्ययन किया था। उस समय धर्म और शिक्षा, दोनों ही क्षेत्रों में मैत्रेयी को विशेष स्थान प्राप्त था।

लोपामुद्रा
लोपामुद्रा वैदिक काल की एक दार्शनिक थीं और महर्षि अगस्त्य की पत्नी थीं। ऋग्वेद की 179वीं सूक्त उनके और उनके पति के बीच हुए एक संवाद को दर्शाता है। पंचदशी के मन्त्रों से ले कर यज्ञ संपन कराने तक लोपामुद्रा, पारिवारिक जीवन का महत्त्व समझाने से लेकर ललित सहस्त्रनाम के प्रचार-प्रसार और महाभारत में लोपामुद्रा का नाम आता है।

पॉलोमी / शचि / इंद्राणी
राजा पॉलोम की पुत्री और इंद्र की पत्नी, शचि इंद्र के दरबार में मौजूद 7 मन्त्रिकाओं में से एक थीं। बुद्धिमान और शक्ति से संपन्न होने के कारण शचि को विशेषाधिकार प्राप्त थे। कुछ ग्रंथों में इंद्र को शचिपति कहकर सम्बोधित किया जाना यह दर्शाता है कि वह उस समय एक महत्वपूर्ण शख्सियत थीं। ऋग्वेद (ऋचा, 10-159) में एक सूक्त में शचि ने अपनी शक्तियों का वर्णन किया है ।

घोषा
मंत्रदिका, यानी मन्त्रों में निपुण, होने के साथ ही घोषा को आध्यात्म और दर्शन का भी अच्छा ज्ञान था। ऋग्वेद के दसवें मंडल के दो सूक्त (39 और 40), जिनमें कुल चौदह-चौदह पद्य (verses) हैं, घोषा द्वारा कहे गये हैं। घोषा को वैदिक विज्ञान, जैसे मधु विद्या, का भी ज्ञान था। यह उसने अश्विनी पुत्रों से सीखी थी, जो उस समय के त्वचा विशेषज्ञ थे।

अपाला
अपाला अत्रि मुनि की बेटी थीं। ऋग्वेद में लिखे हुए आठवें मंडल के साथ 7 सूक्त (8.91) उनके द्वारा इंद्र से कही गयी प्रार्थना और वार्तालाप की हैं। प्रचलित कथाओं के अनुसार, अपाला अपनी बुद्धिमत्ता के कारण पूरे राज्य में प्रसिद्ध थीं।

इनके अतिरिक्त, पौराणिक काल की प्रसिद्ध विद्वान् महिलाओं में रावण की पत्नी मंदोदरी का नाम भी जोड़ा जा सकता है, जिन्होंनेरावण के युद्ध के प्रति लगाव को देखते हुए शतरंज का खेल बनाया। द्रौपदी के संवादों और विज्ञपुरुषों के द्वारा उसकी सहायता ना करने पर कसे गये तंजों की गूढ़ता को देखकर यह समझा जा सकता है कि उनको भी वेदों और पुराणों का अच्छा ज्ञान था।

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