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नारायण-नारायण

नारायण-नारायण

नारद जी बात-बात पर नारायण-नारायण कहा करते और इस प्रकार दिन में कई बार भगवान का नाम लेते थे। एक दिन उनके मन में यह विचार आया कि वह बहुत बार भगवान का नाम लेते हैं। अतः वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं।

यह सोचकर नारद जी विष्णु भगवान के पास पहुंचे और पूछा, भगवान ! आपका सबसे बड़ा भक्त कौन है?’ ‘

विष्णु भगवान ने बताया, ‘अमुक गांव का अमुक किसान मेरा सबसे बड़ा भक्त है।’

नारद जी को बहुत धक्का लगा। उन्होंने भगवान जी के कथन की पुष्टि के लिए, अपने को संभालते हुए, भक्त किसान का नाम व पता नोट किया तथा उस किसान के गांव चल दिए। वहां जाकर देखा कि किसान ने सुबह 4 बजे उठकर दो बार नारायण-नारायण कहा। फिर नांद में भूसा, खली व पानी डालकर बैलों को लगा दिया। दैनिक क्रिया के बाद, सुबह का जलपान कर सूर्योदय के साथ ही हल-बैल लेकर खेतों में जा पहुंचा। पूर्वाह्न 10 बजे पत्नी द्वारा लाया कलेवा खाकर पुनः खेत में काम करने लगा। दोपहर में घर जाकर खाना खाया, सुर्ती खाया। बैलों को नांद पर लगाया। अपराह्न में खेतों में जाकर काम किया। ठीक, सूर्यास्त के पहले घर लौटा। हाथ मुंह धोकर खाना खाया। दो बार नारायण-नारायण कहकर सो गया।

नारद जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि किसान द्वारा पूरे दिन में केवल चार बार नारायण-नारायण कहा गया, जबकि वे स्वयं दिनभर नारायण-नारायण कहते हैं, किन्तु उन्हें भगवान विष्णु अपना सबसे बड़ा भक्त नहीं मानते हैं। नारद जी ने अपनी आशंका व व्यथा विष्णु भगवान को बताई। तब विष्णु भगवान ने नारद को एक पूरा जल भरा कटोरा दिया और कहा, ‘इसको लेकर आप सूर्यास्त तक भ्रमण कीजिए, लेकिन ध्यान रहे, इसमें से एक बूंद पानी भी न गिरे। यदि ऐसा होता है, तो मेरा सुदर्शन चक्र आपके पीछे रहेगा, एक बूंद भी पानी गिरा

तो वह आपकी गर्दन काट लेगा।’ नारद जी ने जल भरा कटोरा लिया और सुबह से शाम तक भ्रमण किया। सुदर्शन चक्र ने पीछा किया। सूर्यास्त हुआ तो उन्होंने राहत की सांस ली। कटोरे से एक बूंद पानी नहीं गिरा। उन्होंने राहत की सांस ली।

नारद जी विष्णु भगवान के पास पहुंचे। विष्णु जी ने पूछा, ‘भ्रमण

कैसा रहा?’ नारद जी ने उत्तर दिया, ‘आपके सुदर्शन चक्र व भरे पानी के कारण भ्रमण में तनाव बना रहा।’

विष्णु जी ने पूछा, ‘भ्रमण में कितनी बार मेरा नाम लिया?’

‘भगवान ! एक तो जल भरा कटोरा लेकर चलना और उस पर आपके सुदर्शन चक्र का पीछे-पीछे चलना- उसमें पूरा ध्यान इन बातों पर था। आपका नाम कहां से लेता।’ नारद जी ने उत्तर दिया।

तब विष्णु जी ने कहा, ‘इसी प्रकार गृहस्थ जीवन की आपाधापी, आजीविका अर्जन की गला काट देने के भय वाली कठिनाइयों के बाद भी, यदि किसान सुबह-शाम मेरा नाम ले लेता है, तो निश्चित रूप से वह सर्वश्रेष्ठ भक्त है।

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