पानी के पैसा पानी में नाक कटल, बेईमानी में
पानी के पैसा पानी में, नाक कटल, बेईमानी में: एक गाँव की सच्ची सीख
कहानी की शुरुआत एक छोटे से गाँव से होती है, जहाँ सावित्री नाम की एक महिला रहती थी। सावित्री का जीवन सादा था, और वह अपनी भैंस का दूध बेचकर अपने घर का खर्च चलाती थी। वह ईमानदारी से दूध बेचकर जो कमाई करती थी, उससे उसका गुजारा आराम से हो रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उसके मन में लालच जन्म लेने लगा।
बेईमानी की शुरुआत
एक दिन जब सावित्री ने देखा कि कुछ और दूध बेचने वाले लोग ज्यादा पैसे कमा रहे हैं, तो उसके मन में भी अधिक धन कमाने की इच्छा जागी। उसने सोचा कि अगर वह अपने दूध में थोड़ा पानी मिला देगी, तो उसे ज्यादा दूध मिलेगा और वह अधिक पैसे कमा सकेगी। उसने यही किया—दूध में पानी मिलाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उससे ज्यादा पैसे कमाने लगी।
सावित्री की कमाई बढ़ गई, और उसकी लालच भी। कुछ ही महीनों में उसने इतना पैसा जमा कर लिया कि उसने सोने की एक कील (नाक की बाली) बनवाई। यह सोने की कील उसके लिए उसकी समृद्धि का प्रतीक बन गई। वह गर्व से उसे अपनी नाक में पहनती और सोचती कि उसकी बेईमानी का कोई पता नहीं चला।
चोर ने सिखाया सबक
एक दिन सावित्री गंगा नदी में स्नान करने गई। गंगा के घाट पर बहुत भीड़ थी, और सावित्री अपने सोने की कील पहनकर गर्व से स्नान करने के लिए जल में उतरी। जब वह पानी में डूबी हुई थी, तभी अचानक एक चोर ने उसकी नाक की कील खींच ली और भीड़ में गायब हो गया। सावित्री को कुछ समझ में नहीं आया कि क्या हुआ, पर जब उसने महसूस किया कि उसकी सोने की कील गायब है, तो वह जोर-जोर से रोने लगी।
लोगों ने उसकी मदद करने की कोशिश की, लेकिन चोर बहुत चालाक था और किसी ने उसे देखा भी नहीं। सावित्री के पास अब रोने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। उसकी मेहनत से कमाई गई ईमानदारी के पैसे तो उससे दूर हो गए थे, और जो कुछ भी उसने बेईमानी से कमाया था, वह भी अब पानी में बह गया।
पानी में बहा लालच और इज्जत
गाँव में इस घटना की चर्चा होने लगी। लोग कहने लगे, “पानी के पैसा पानी में, नाक कटल, बेईमानी में।” सावित्री की नाक की कील उसके बेईमानी के पैसों का प्रतीक थी, जो पानी में मिला दिए गए दूध के जरिए कमाई गई थी। लेकिन अंत में उसकी बेईमानी ने उसकी इज्जत और संपत्ति दोनों ही छीन ली। सोने की कील के रूप में उसका लालच पानी में बह गया, और गाँव के लोग अब उसकी ईमानदारी पर शक करने लगे थे।
सीख
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि बेईमानी से कमाया गया धन कभी भी स्थायी नहीं होता। भले ही शुरुआत में उससे लाभ मिलता हो, परंतु अंत में वह हमेशा नुकसान ही देता है। सावित्री की बेईमानी ने उसकी नाक कटवा दी, और गाँव में उसका नाम बदनाम हो गया। सच और ईमानदारी ही वे गुण हैं, जो व्यक्ति को सच्चे सम्मान और खुशी की ओर ले जाते हैं।