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वैश्विक माता पिता दिवस

आज “वैश्विक माता पिता दिवस” के शुभ अवसर पर मेरे मोबाइल पर किसी बहन ने जो मैसेज भेजा वह वाकई पढ़ने लायक है और उस पर मनन करने लायक है और इसे शेयर करने में मैं जरा भी संकोच नहीं कर रहा हूं।

माँ कैसी हो? यह हमारे चाहने से परे होता है। यह नियम तो प्रकृति ने ही हमारे लिए तय किया है।

मेरी माँ अपने ज़माने की होनहार और तीक्ष्ण बुद्धि वाली महिला रहीं।

मैं अपने घर में माँ-पापा की पहली संतान हूँ। हमारा बचपन माँ के सानिध्य, माँ के दुलार में बीता।

मैंने अपनी माँ को एक ऐसी इंसान के रूप में देखा, जिसकी बातों में, व्यवहार में एक जादू सा था।

घर आए मेहमानों का जिस तरह स्वागत करती, उसे देखकर यही लगता था कि माँ कैसे सब कुछ करती है?

साथ ही मेरी छोटी उम्र से ही हमें हमारे होम वर्क करवाने के साथ ही यह भी सिखाती जाती कि दुनियादारी किसे कहते हैं?

हर तरह का घरेलू खेल हमारे साथ बैठकर खेलती, चाहे ताश हो, कैरम हो या अन्य गेम हो।

हम दोनों बहनों को घर के काम सिखाने या खाना बनाना सिखाने में सदा से माँ का योगदान रहा है।

हम उस जमाने ( 1985) के यूनीवर्सिटी से पास ऑउट हैं, जिस समय लड़कियों को घर से अकेले बाहर जाने की छूट देना छोटे शहरों में अनुशासन रहित काम समझा जाता था।

घर में हमेशा से हर काम सा एक अनुशासन था, जो माँ ने कभी तोड़ने नहीं दिया।

हमारे पापा जहाँ बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाने में हमेशा आगे रहे, वहीँ मेरी माँ हमें घर संसार चलाने के हर गुर सिखाती रही।

उनका सदा से कहना था कि – “लड़कियों के विवाह के बाद ससुराल में कोई डिग्री नहीं देखेगा ; तुम्हारी माँ ने क्या और कितना सिखाया है, वही देखा जाएगा।”

माँ ने मुझे व्यवहारिक और अच्छी बातें सिखाई।

परिवर को जोड़कर कैसे रखते हैं; वो सिखाए।

खाना बनाकर किसी को भी कैसे खुश किया जाता है, वो सिखाया।

अपनी पढ़ाई के बल पर तुम जीवन में किसी चीज को समझने में पीछे नहीं रहेगी, यह सिखाया।

ससुराल में सब बातें तुम्हारे मन की नहीं हो सकती लेकिन लोगों के दिल में जगह कैसे बनाते हैं;वो सिखाया।

मेरी सफल गृहस्थी, ससुराल के लोगों के बीच प्रिय बनकर रहना .. जिंदगी को कैसे सुचारू रूप से चलाना है .. इन सब बातों का श्रेय शत प्रतिशत मेरी माँ को जाता है।

मेरी माँ आज 81 साल की है, लेकिन जीवन जीने की एक मिसाल हैं।

आज भले ही वो मोबाइल चलाना नहीं जानती है, लेकिन आज भी मायके जाने पर मेरे सर में तेल लगाने के लिए तैयार रहती है।

आज भी मेरे साथ तथा पोतों के साथ कैरम खेलकर खुश हो जाती है।

आज भी मायके से वापस आते समय प्यार से दो चार हिदायत जरूर देती है।

मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे ऐसी माँ मिली। मेरा जीवन और जिन्दगी उनकी ही देन है।

तो इस धरती पर दोबारा जब भी आऊँ, मुझे सिर्फ मेरी माँ जैसी ही माँ चाहिए।

निश्छल, बनावटी पन से कोसों दूर, एक सीधी सादी बुद्धिमान माँ !! मजाल है कि कोई उसे वेवकूफ बना ले!

जब मेरी गृहस्थी शुरू हुई तो उसके बाद मेरी माँ ने मेरी गृहस्थी और ससुराल में फोन करके मुझे कुछ भी सिखाने की कोशिश कभी नहीं की।

उन्होंने मेरी शादी शुदा ज़िन्दगी और ससुराल में कभी दखल नहीं दिया।

इससे समझदार और व्यवहारिक माँ का रूप और क्या हो सकता है?

जहाँ आए दिन माँए बेटियों को हर समय शादी के बाद भी सीख देती रहती हैं । मैंने कई घरों में तो ऐसा भी देखा है कि बेटी के ससुराल में ही मां कुछ दिन ,कुछ हफ्तों ,कुछ महीनों रह करके उस बेटी को उजाड़ करके फेंक दिया। कहने का मतलब है कि उसे विधवा बना करके दूसरा विवाह करने पर मजबूर कर दिया। हमेशा बेटी के परिवार को तोड़ने की साजिश रचते हुए बेटी को उनके मम्मी और पापा दोनों समझाने के लिए तत्पर रहते हैं। परंतु मेरी माँ ने साफ कह दिया .. अब सास ही तुम्हारी माँ हैं।

आज जब इतने साल बीत गए तो ये बात तो साफ हो जाती है कि जिनकी माँएं बेटी की गृहस्थी में दखलअंदाजी नहीं करती, उनकी बेटियाँ अपनी गृहस्थी में खुश रहती हैं । मैंने तो कई जगहों पर यह भी देखा है कि अपनी सुखमय गृहस्थी के बीच 22 साल गुजारने पर भी माता-पिता को शांति नहीं मिलती और वह बेटी के घर में जाकर साफ तौर पर कहते हैं कि “मैं ही इस घर का मालिक हूं और मैं ही इस घर को 20- 22 साल से देखते आ रहा हूं।” तुम्हारी (दामाद) औकात ही क्या है। जरा आप भी ठंडे दिमाग से इस पर मनन करें कि क्या ऐसा करना उचित है?

ये बात हर ज़माने की सच्चाई है।

अपनी माँ से सीखी कई बातों को मैंने अपनी बेटी को सिखाया।

हाँ ये बात अलग है कि ज़माने के साथ बदलाव आता ही है।

मैंने और मेरे पति ने अपने दोनों बच्चों को बारह साल की उम्र से ही बैंक का काम, एटीएम से पैसे निकालना, समय पर अकेले घर में रहकर सब कुछ मैनेज करना सिखाना शुरू कर दिया था।

हालांकि मेरे पति अपनी बेटी प्रेम में इस बात के बिल्कुल खिलाफ थे कि बेटी पढ़ाई के साथ घर का कोई भी काम करे।

पर यहाँ पर मैंने अपनी बेटी को थोड़ा समझा बुझा कर अपना कमरा साफ रखना, छुट्टियों में खाना बनाना सिखाना शुरू कर दिया था।

मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उसे एक साल पुणे में कॉलेज के पास ही घर लेकर रहना पड़ा था क्योंकि हम मुंबई शिफ्ट हो चुके थे, तो वो अपना ध्यान रखकर खुद ही खाना बनाती थी और अक्सर मुझे कहती कि मम्मा अच्छा हुआ तुम हमको इतना कुछ सिखा दी कि आज हम अकेले रहकर भी सब कुछ मैनेज कर पा रहे हैं।

सोने से पहले बच्चों के साथ बैठकर घंटे भर बातें करना ये हमारे घर का नियम था और यह नियम मेरे पति ने बनाया था ताकि बच्चे अपने पापा से दूरी बनाकर न रखें।

उनके पापा और हम बड़े प्यार से बच्चों को उनकी पढ़ाई, उनकी सोच, करियर के बारे में, क्या कठिनाई है, उन्होंने क्या सोच रखा है, उस बारे में, हर तरह की बातें करते।

कुछ परेशानी तो नहीं है? कभी पढ़ाई में असफल भी हुए तो कोई बात नहीं ! हमलोग हमेशा साथ हैं, डरने की जरुरत नहीं लेकिन गलत चीज मत करना, सारी बातों की चर्चा करते।

इससे बच्चे हमसे कभी भी किसी बात को कहने से हिचकते नहीं थे। आज भी जब सब इकट्ठा होते हैं तो सब मिलकर बातें जरूर करते हैं।

मैं भी खुशकिस्मत माँ हूँ कि मेरे दोनों बच्चे आज अपने जीवन में खुश हैं।

मेरी बेटी अपनी गृहस्थी बड़े आराम से चला रही है और अपने बेटे को पढ़ाने के अलावा, दुनियादारी की बातों से लेकर अपनी किताब, खिलौने उठाकर रखना, कोई आए तो पानी लाकर देना, सभी बातें सिखा रही है। अभी तो ग्यारह साल का है। दो तीन सालों में उसे कुकिंग भी सिखाने वाली है।

हमारा बेटा हमारे साथ नहीं बल्कि अमेरिका में रहता है। जितना उसने मुझसे सीखा, आज उससे ज्यादा चीजें वो हमें सिखा रहा है, बहुत ही प्यार से।

माँ के बारे में जितना लिखा जाए कम ही होगा।

माँ से ही किसी का अस्तित्व है

और अस्तित्व को भूला नहीं जा सकता।

किसी की भी माँ हो, माँ तो माँ होती है। और सब अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा ही देना चाहती है। परंतु कुछ माताएं अपने बेटी के घर में आग लगा करके बैठ जाती है और बाद में पछताने के अलावा कुछ भी नहीं रहता।

इसलिए एक माँ कैसी होना चाहिए ..?

इस बात पर मैं अपने अनुभव से जरूर कहना चाहूँगी कि जब तक बच्चे छोटे होते हैं वो आपकी बात मानते हैं, लेकिन जब वो अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ, उनकी अपनी गृहस्थी हो जाए तो:-

एक माँ को अपने बच्चों को आजादी से जीने देना चाहिए। हर समय अपना अधिकार जताने रहना कि अरे हम तो माँ हैं कुछ भी बोल सकते हैं.. कहीं न कहीं उन्हें आपसे दूर कर सकता है।
एक माँ इस बात को समझे कि बच्चों की अपनी दुनिया है, जो माँ के जमाने की दुनिया से अलग है, तो हर वो बात जो माँ को सही लगता है, वही सही नहीं होगा। बदलाव को स्वीकार करना सीखें।
आने वाली बहू पर‌ अपना वर्चस्व न समझकर उसे दोस्त की तरह व्यवहार करे तो रिश्तों में खटास आने की नौबत नहीं आएगी।
हमारे जमाने में ऐसा होता था .. तो आज भी वही होना चाहिए . इस विचार को त्याग दे।
बच्चों के बड़े होने पर आप उनकी बातों का सम्मान करें तो आप भी सम्मान और अपनापन पाएँगी.. यह बात तय है।
किसी भी को जज करने से पहले एक बार जरूर सोचे कि जब आप उनकी जगह होती तो क्या करती?

माँ का चुनाव करना किसी के लिए संभव नहीं लेकिन एक माँ के व्यवहार से बच्चे दुखी न हों इतना तो हर माँ कर ही सकती है।

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