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पिताजी का धन

पिताजी का धन

आप लोगों के दिल में मेरे प्रति कितनी इज्जत है यह आज एक बार फिर देखने को मिला।

आप सभी महानुभाव को मैं तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं और साथ ही साथ ईश्वर से कामना करता हूं कि आप तन मन धन से समृद्धि रहे हैं और सद्मार्ग पर चलते हुए दूसरों को भी मदद कर करें। आइए मैं आज आपको एक अनमोल चीज बताने जा रहा हूं और उसके लिए आप नीचे दिए गए काल्पनिक लेख को एक बार ध्यानपूर्वक पढ़ें और *इस कहानी में अगर इसी का नाम ,स्थान अथवा कर्म अगर मैच करता है तो इसे मात्र एक संयोग माने।*

सफल व्यक्ति किन बातों को हमेशा गुप्त ही रखते हैं?
संयोग से आज की घटना जो मैं बताने जा रहा हूँ वो सम्भवतः इस प्रश्न के लिए सटीक उदाहरण है।

हुआ ये की आज खेत की व्यवस्था देखने मैं गाँव गया था, सारे निरीक्षण परीक्षण पूरा करते करते दोपहर हो आयी और भूख भी जोरो की लगने लगी। खेत से बाहर निकलकर मैं गाँव की ओर जा रहा था जहाँ वाहन में टिफ़िन रखा था कि इतने में पीछे से एक आवाज़ आयी:

“राम राम वेद प्रकाश भैया!”

पलट कर देखा तो पाटीदार जी थे जो दोनो हाथ जोड़े मुस्कुराते हुए अभिवादन कर रहे थे।

अच्छा ये पाटीदार जी कौन है ये परिचय कराता चलूँ आपको।

लगभग 100–150 वर्षो पहले से करीब 500 एकड़ उपजाऊ भूमि पर खेती करने का सौभाग्य पाटीदार जी के पुरखो के समय से इनके परिवार को मिलता आया है। आज इस समृद्ध संयुक्त परिवार के पास लगभग 600 से 800 एकड़ भूमि नालंदा और नवादा जिले में है जिसमे से पाटीदार जी अकेले के ही हिस्से में 250 एकड़ जमीन है।

इतनी बड़ी जमीन पर ये साल की मात्र दो फसल लेते है, सर्दी में गेहूँ और बरसात में सोयबीन।

एक एकड़ पर 25 क्विन्टल गेहूँ और 15 क्विन्टल सोयाबीन का मोटा मोटा अंदाज़ा लगावे तो सोचिए बस इन दो फसलों से ही कितनी आय पाटीदार जी को साल भर में प्राप्त होती होगी।

इसके अलावा 30–35 गाय-भैंस अलग है जिनके दूध और दूध से बने पदार्थ इंदौर की डेयरी फर्मों में रोज बिकते है।

करोड़ो में नॉन टैक्सेबल इनकम करने वाले ये समृद्ध कृषक वही साधारण से एक जैसे सफेद कमीज़-पायजामे और रबर के जूतों में इतनी सहजता से रहते है कि देख कर कोई भूले से भी इनकी आर्थिक स्थिति का सही सही अंदाज़ा नही लगा पाए।

वापस घटना पर आता हूँ..

तो पाटीदार जी को मैंने देखा और तुरंत उनकी ओर बढ़ चला। परस्पर अभिवादन और कुशल क्षेम के बाद बहुत आग्रहपूर्वक उन्होंने अपने साथ मे ही भोजन करने बैठा लिया।

हम पाटीदार जी के घर के आंगन में खुले में भोजन कर रहे थे, प्रासंगिक नही है किंतु मैं कहना चाहूँगा की चूल्हे पर बनी दाल और कद्दू के पराँठे इतने उम्दा बने थे कि देख कर ही भूख त्रिगुणित हो गयी थी मेरी।

(ऊपर जो मैंने फोटो सेंड किया है।फ़ोटो मैंने ऐसे ही खींच लिया था सुबह, पर देखिए यहाँ काम आ गया!)

तो मैं और पाटीदार जी भोजन कर रहे थे बाहर बैठकर जहाँ से गाँव की सड़क का दृश्य आराम से देखा जा सकता था और मैंने देखा कि एक नई नवेली टाटा हैरियर गाड़ी में से मेरा स्कूल समय का मित्र बाहर निकला।

शायद वो मित्र कृषि भूमि खरीदने आया था और प्रॉपर्टी ब्रोकर के साथ मे घूम घूम कर सारे गाँव की जमीनों को देख रहा था।

इतने सब में मैं भोजन करके बस पाटीदार जी के साथ बैठकर कुछ महत्वपूर्ण बात कर ही रहा था की वापसी में जाते समय मित्र की निगाह मेरे ऊपर पड़ गयी, उसने वही गाड़ी रुकवाई और बड़े रौबीले अंदाज़ में बाहर निकला।

उसके ब्रान्डेड कपड़ो में से परफ़्यूम का भीषण भभका आ रहा था और रोलेक्स की घड़ी और उसी हाथ ने पड़ी दो अंगूठियाँ वो ऐसे प्रदर्शित करता हुआ आ रहा था दूर से मानो हथेली पर प्लास्टर चढ़ गया है।

वो आया, वजन और बढ़ाने को टेबल पर आईफोन डेढ़ लखटकिया रख दिया और मेरे पास बैठकर कांधे पर हाथ जमाते हुए बोला:

“और पार्टी! सब बढ़िया?”

“बस बढ़िया यार भाई भगवान की दया। तू बता यहाँ कैसे भटक रहा?”

मैंने मित्र होने के नाते इशारों इशारों में भोजन करने का आग्रह किया ये कहते हुए।

“बस यार पिताजी ने दुकान बेची है तो पूरे एक करोड़ रुपये हाथ लगे अपने। बाइक-गाड़ी-घड़ी तो ले ली पर अब बापू पीछे पड़ गया है कि सारे के सारे पैसे उड़ाने के बजाए जमीन ले ले थोड़ी बहुत। वही करने आये है बस यार!”

यूँ बोलकर उसने मेरे पास बैठे पाटीदार जी को सर से पैर तक देखा फिर थोड़ी दूर चूल्हे पर गर्म हो रही दाल और तवे ओर सिंक रहे पराठों को देखा, इसके बाद हिकारत भरा मुँह बनाता हुआ वो मेरे कान में फुसफुसाया:

“सुन गाड़ी तक आ, तेरे से वहाँ बात करनी है।”

दोस्त है भई और बचपन का दोस्त है, तो थक हार के उसके साथ उसकी गाड़ी तक जाना पड़ा मुझे।

जैसे ही उसकी गाड़ी के पास पहुँचे वैसे ही वो तो ताव में आ गया और तमतमाता हुआ बोला:

“अरे यार तुम इज्जत की बैंड बजवा दोगे किसी दिन! मेरे को भी वो धूल मिट्टी खाने की बोल रहा है और तू खुद भी उस गरीब दो कौड़ी के मजदूर के साथ बैठकर गप्पे हाँक रहा है। अपना सर्कल देख भाई एक बार अपना सर्कल, अपन जैसे सक्सेसफुल लोग कहाँ और ये गँवार कहाँ! खुद की नही तो मेरी इज्जत की खातिर चला चल भाई यहाँ से, इनके पास से गोबर की बदबू के सिवा कुछ नही मिलना।”

ये सब और भी बहुत कुछ मेरा मदान्ध मित्र बोले जा रहा था और मुझे उसकी छोटी सोच पर बहुत ज़्यादा तरस आ रहा था।

“अपन जैसे सक्सेसफुल लोग!”

पिताजी के धन पर सक्सेस का जश्न मनाते मेरे मित्र के दिखावटी शब्द कानो में गूंज रहे है अभी भी जब मैं ये लेख लिख रहा हूँ।

वो व्यक्ति अपनी अरबों की जमीन का ज़िक्र समाज मे एक बार भी नही करता है।
वो व्यक्ति अपनी करोड़ो की सालाना आय के ढिंढोरे जगत भर में कभी भी नहीं पीटता है।
वो व्यक्ति रॉलेक्स-आईफोन-हैरियर का जग दिखावा करके सम्मान छीनने की बजाय व्यवहारों-स्नेह की मजबूती दिखाकर दिल जीतता है।
वो एक सफल व्यक्ति है जिसने अपनी उत्तम भूमि-सुस्वादु भोजन-सुंदरतम भार्या को पर्दे में रख रखा है और संसार की बुरी नज़र से बचकर निरंतर प्रगति पर प्रगति किये जा रहा है।

*पाटीदार जी जैसे सफल व्यक्ति सदैव अपनी समृद्धि को गुप्त ही रखते है और मेरे मित्र जैसे दिखावटी लोगो के एक करोड़ रुपए पंद्रह दिन में पूरे होते देर नही लगती।*

सफल बनिए दिखावटी नही मेरे दोस्त।

जय राम जी की🙏

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