नेगेटिविटी के बीच तुम्हें एक पॉजिटिव चीज
चलो इतनी सारी नेगेटिविटी के बीच तुम्हें एक पॉजिटिव चीज आज बताते हैं…
हमारे पड़ोस में एक भईया रहते हैं… आज से लगभग पंद्रह साल पहले उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी… बस किसी तरह गुजर बसर चल रहा था… हमारे पिता जी एवं मोहल्ले के अन्य लोगो के सहयोग से उनका विवाह करवाया गया…
उस समय भईया साइकिल से कपड़े की फेरी कर रहे थे… दिन रात गली मोहल्लों में साइकिल चलाते… कभी रेडीमेड कपड़े बेचते तो कभी आइसक्रीम तो कभी मेले ठेले में मूंगफली बेच लिया… किसी एक चीज पर टिके नहीं, मतलब जो काम मिल गया उसे कर लिया…
हालांकि मेहनत बहुत करते थे… लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए काफी नहीं था… उनकी धर्मपत्नी जी भी बहुत ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी… लेकिन व्यवहार से बहुत ही सुशील एवं सज्जन थी… विवाह के समय वो बारंहवी पास थी और भैया दसवी फेल… फिर भी उनका विवाह हो गया…
इस बीच भईया के दिमाग में पता नहीं कहां से आया उन्होंने भाभी को आगे की शिक्षा पूरी करने के लिए प्रेरित किया… पैसा जेब में फूटी कौड़ी नहीं था… फिर भी कर्जा उधार ले के बीए में एडमिशन कराया… लोगो ने ताने भी मारे दो रोटी सुकून से खाओ कहां पढ़ाई लिखाई के चक्कर में पड़े हो…
लेकिन उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया और नहीं मायके वाले को अपने यहां बुलाया और सुशीला भी ना तो अपनी मां को अपने यहां रख करके दाई का काम करवाई न ही कपड़े साफ करवाती। आजकल तो अपने ही बेटी को बिगड़ने में उसके मायके वाले कहीं हाथ बहुत बड़ा होता है जो कि गलत है। बेटी की ससुराल में उसकी मां आकर के जब रहने लगती है तो आप खुद ही सोच सकते हैं कि उसका ससुराल कैसा होगा? उसकी इज्जत क्या होगी? उसका घर सुधरेगा या उजड़ेगा आप खुद कल्पना करें। खैर….भैया ने लोगो की न सुनते हुई पढ़ाई कराई… और भाभी ने भी मन लगाकर पढ़ाई की… बीए के बाद एम.ए फिर बी.एड फिर कोई तो और शिक्षिका बनने का कोर्स किया… कोचिंग आदि किया… और फिर एक दिन मेहनत यश लेकर आई… और बिहार के किसी स्कूल में उनकी नियुक्ति हो गई… पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटी…
भईया आज परचून की दुकान चलाते हैं… और भाभी इंटरकॉलेज में शिक्षिका हैं… साइकिल की जगह अब स्कूटी आ गई है… झोपड़ी से 2 मंजिला मकान हो गया है… लेकिन शिक्षिका होने के बावजूद उनका स्टेटस आड़े नहीं आया… गर्मी की छुट्टियों में दुकान पर भी बैठती.. हाथ बंटाती है…
और भईया.. अपनी मेहरारू और दुई ठो छोटे छोटे बच्चो के पीछे बैठाकर बाजार घुमाने ले जाते है..!
डॉ वेद प्रकाश
नवादा, बिहार