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पुत्रदा एकादशी आज

पुत्रदा एकादशी आज

एकादशी हिंदू धर्म का प्रमुख व्रत है, जिसे हर महीने की ग्यारहवीं तिथि पर रखा जाता है। इस दिन सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। इसके प्रभाव से साधक की सभी इच्छाएं पूरी और जीवन में सुख-समृद्धि वास करती हैं। यह तिथि महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। दरअसल, एकादशी पर तुलसी पूजन का विधान है। इसके प्रभाव से वैवाहिक जीवन सुखमय और रिश्ते मजबूत होते हैं। इस दौरान पुत्रदा एकादशी पर तुलसी पूजन करना और भी लाभकारी माना जाता है। बता दें, तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, इसलिए इस दिन उनके पास दीप जलाने और आरती करने से संतान सुख के योग बनते हैं। यही नहीं संतान प्राप्ति का आशीर्वाद भी महिलाओं को मिलता है। इस बार 5 अगस्त को पुत्रदा एकादशी है। इस तिथि पर ज्येष्ठा नक्षत्र और ऐन्द्र योग बना रहेगा।

पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त
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वैदिक पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 04 अगस्त को सुबह 11 बजकर 41 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 05 अगस्त को दोपहर 01 बजकर 12 मिनट पर होगा। ऐसे में पुत्रदा एकादशी व्रत 05 अगस्त को किया जाएगा और व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाएगा।

पुत्रदा एकादशी व्रत पारण का समय
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पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 06 अगस्त को किया जाएगा। इस दिन व्रत का पारण करने का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट तक है।

पुत्रदा एकादशी व्रत पारण की विधि
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इस दिन स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद मंदिर की सफाई करने के बाद पूजा-अर्चना करें। देसी घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती करें। मंत्रों का जप और विष्णु चालीसा का पाठ करें। इसके बाद सात्विक चीजों का भोग लगाएं। गरीब लोगों या मंदिर में दान करें।

पुत्रदा एकादशी शुभ योग
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सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इनमें इंद्र योग का संयोग सुबह 07 बजकर 25 मिनट तक है। वहीं, रवि योग का संयोग सुबह 05 बजकर 18 मिनट से सुबह 11 बजकर 23 मिनट तक है। इसके साथ ही शिववास योग का संयोग दोपहर 01 बजकर 13 मिनट से है। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से साधक की हर एक मनोकामना पूरी होगी।

पद्म पुराण के अनुसार इस व्रत का महत्व
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पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भूतपूर्व काल में माहिष्मती नगरी के राजा महीजित के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने ऋषि-मुनियों से परामर्श लिया और अंततः महर्षि लोमश ने उन्हें श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने विधिपूर्वक इस व्रत का पालन किया, जिससे उन्हें शीघ्र ही संतान की प्राप्ति हुई। इस प्रसंग के आधार पर यह एकादशी ‘पुत्रदा’के नाम से विख्यात हुई। इस दिन का व्रत सभी पापों का नाश करता है और संतान सुख के साथ-साथ समस्त इच्छाओं की पूर्ति करता है।

पूजा विधि
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पवित्रा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर या पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। उन्हें पीले वस्त्र पहनाकर पीले पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद श्रद्धापूर्वक ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें और व्रत के नियमों का पालन करें। रात्रि में भगवान विष्णु का कीर्तन, भजन और जागरण करना अत्यंत पुण्यदायक होता है।

व्रत के लाभ और किन्हें यह व्रत करना चाहिए
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यह व्रत उन दंपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं। या फिर संतान की किसी भी समस्या से जूझ रहे हों। पद्म पुराण में कहा गया है कि जो श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत विद्यार्थियों, गृहस्थों और मोक्ष की अभिलाषा रखने वालों के लिए भी अत्यंत कल्याणकारी है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

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