रावण और गोकर्ण महाबलेश्वर आत्मलिंग की अद्भुत कथा
🔱 रावण और गोकर्ण महाबलेश्वर आत्मलिंग की अद्भुत कथा 🔱
गोकर्ण महाबलेश्वर शिवलिंग की कथा त्रेतायुग से जुड़ी है और यह भगवान शिव के महान भक्त रावण की भक्ति और मातृभक्ति का प्रतीक है। इस कथा में भगवान शिव के आत्मलिंग की स्थापना और गोकर्ण महाबलेश्वर मंदिर का इतिहास छिपा है।
🌟 कथा की शुरुआत
रावण की माता कैकसी प्रतिदिन समुद्र तट पर मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा करती थीं। उनका मानना था कि इस पूजा से मृत्यु के बाद कैलाश में स्थान मिलेगा। मातृभक्त रावण ने ठान लिया कि वो अपनी माँ के लिए स्वयं कैलाश पर्वत ही लंका ले आएगा।
रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। अपनी तपस्या की शक्ति से उसने पूरा कैलाश पर्वत हिलाया। भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत दबाकर रावण के हाथ फंसा दिए। तब रावण ने शिव तांडव स्तोत्र गाकर शिवजी को प्रसन्न किया।
🌟 श्री हरि की माया
रावण ने माता पार्वती को भी माँग लिया, परन्तु श्री हरि विष्णु और नारद मुनि की लीला से पार्वती गोकर्ण में भद्रकाली रूप में स्थापित हो गईं, और रावण ने मंदोदरी से विवाह कर लिया।
🌟 आत्मलिंग प्राप्ति
रावण ने फिर घोर तपस्या की। उसने अपने सिर काटकर शिव को अर्पण किए। प्रसन्न होकर शिवजी ने रावण को अपना आत्मलिंग दिया, जो स्वयं शिव के समान शक्तिशाली था। शर्त थी कि रावण लंका पहुँचने से पहले उसे कहीं न रखे।
🌟 गणेशजी की लीला
देवताओं ने श्री गणेशजी को भेजा। गणेशजी ने गोकर्ण में बालक रूप में रावण से आत्मलिंग पकड़ लिया और जल्दी-जल्दी उसे पुकार कर भूमि पर रख दिया। रावण लाख कोशिश के बाद भी उसे उठा न सका। क्रोध में उसने आत्मलिंग को उखाड़ने की कोशिश की जिससे वह गाय के कान (गोकर्ण) के आकार का हो गया।
🌟 पंच क्षेत्र की उत्पत्ति
रावण के क्रोध में फेंके गए आत्मलिंग के हिस्सों से पांच पवित्र स्थल बने:
1️⃣ गोकर्ण महाबलेश्वर – मुख्य आत्मलिंग
2️⃣ सज्जेश्वर – जहाँ लिंग की डिबिया गिरी
3️⃣ धारेश्वर – जहाँ धागा गिरा
4️⃣ गुनावंतेश्वर – जहाँ लिंग का ढक्कन गिरा
5️⃣ मुरुडेश्वर – जहाँ लिंग का आवरण कपड़ा गिरा
इन पाँच पवित्र स्थलों को पञ्च क्षेत्र कहा जाता है।
🔱 गोकर्ण महाबलेश्वर का महत्व
आज भी गोकर्ण महाबलेश्वर में वही आत्मलिंग स्थापित है, जिसकी महिमा अपार है। यह स्थान रावण की भक्ति, उसकी मातृसेवा और भगवान शिव की कृपा का जीवंत उदाहरण है।