मनुष्य यौनांग (sex ऑर्गन्स)
मनुष्य यौनांग(sex ऑर्गन्स)
आज की पोस्ट पुरुष के यौनांग पर ही चर्चा होगी ।स्त्री के यौनांग पर कल चर्चा होग तो चलिए शुरू करते है–
पुरुष यौनांग
आचार्य वात्स्यान ने अपने अमर ग्रंथ कामशास्त्र की रचना समाज को लम्पट और कामी बनाने के उद्देश्य से नही की थी , बल्कि उनका उद्देश्य ये था कि जनसाधारण को कामकला के साथ- साथ काम विज्ञान का भी सही जानकारी हो। यही कारण है की उन्होंने स्त्री और पुरुष के (sex orans of man and woman) की भी चर्चा अपने ग्रंथो में की है ।सेक्स में परम आंनद और पूर्ण संतुष्टि के साथ -साथ आपको अपने जीवन साथी के sex ऑर्गन्सके के बारे में भी सही -सही जानकारी हो और आप किसी भ्रम में न रहे ।इसी उद्देश्य से महऋषि वात्सायन ने अपने ग्रंथ कामशास्त्र के द्वितीय अधिकरण में सबसे पहले मनुष्यों की गुप्तांगो(sex organs of man) की ही चर्चा की है। महर्षि वात्सायन ने पुरुष के जननांगों(sex organs of man ) को निम्लिखित प्रकार से विभाजित किया है—
लिंग
शिश्नमुंड
अंडकोष,शुक्राशय,शुक्रवाहिनी व पौरुष ग्रंथि(testicles)
तो अब एक -एक करके सरल शब्दों मे लिंग आदि को न अति संक्षेप और न अति विस्तार से समझाने का प्रयास करते है तो चलिये शुरू करते है
लिंग
पुरुष के शरीर के शरीर मे संभोग का आधार लिंग ही है ।यही कारण है कि अनेक व्यक्ति केवल लिंग को ही पुरुष का कामांग या योनांग समझने की गलती कर जाते है अर्थात (केवल लिंग को ही यौनी में प्रवेश करने को सम्भोग मान लेते है) परंतु ऐसा नही है ,ऋषि वात्सायन का कहना है कि लिंग का औरत की यौनि में प्रवेश ,प्रवेश की संपूर्ण क्रिया और वीर्य गिरने तक निरंतर धक्के लगाना और रति क्रीड़ा के समय चूमने चाटने ,काटने पीटने की मधुर कीड़ा का नाम संभोग है। पुरूष का लिंग सामान्य स्थिति में मूरझाया हुआ सा लटका रहता है और इसकी लंबाई प्रायः 2 से 2.5 इंच तक होती है ।कुछ व्यक्तियों का लिंग इससे बड़ा या छोटा भी हो सकता है ।कामोत्तेजित होते समय और sex करने से पूर्व लिंग कठोर होकर खड़ा हो जाता है ।इसकी लंबाई व मोटाई सामान्य आकार से दो से ढाई गुणा तक बढ़ जाती है। इस प्रकार तना हुआ लिंग लगभग 4 इंच से 6 इंच लंबा हो जाता है।और मोटाई 4 से 7 सेंटीमीटर तक हो जाता है। प्रत्येक पुरुष में लिंग की लंबाई व मोटाई एक जैसी नही होती किसी का बड़ा होता है तो किसी का छोटा। तना हुआ लिंग ही यौनी में प्रवेश कर सकता है। मुरझाया हुआ लिंग नही यही कारण है कि एक बार वीर्य गिरने के बाद लिंग सिकुड़ कर स्वयं यौनी से बाहर आ जाता है ।
लिंग खड़ा होने पर अत्यंत कठोर हो जाता है। इतना कठोर कि न तो उसे हाथ से दबाया जा सकता है और न किसी वस्त्र उसके खड़ा होने को रोक पाते है । यह खड़ा हुए लिंग का ही कमाल होता है कि वह कुमारी कन्या के संकुचित यौनी द्वार व यौनि पथ को अपनी कठोरता से चीरता या फैलाता हुआ अंदर कुमारिछिद्र नामक खाल के पर्दे को फाड़ता हुआ गर्भाशय मुख तक पहुँच जाता है। इसके बावजूद कि लिंग में कोई हड्डी नही होती ।यह मात्र हजार कोशिकाओं का एक सुगठित समूह होता है। ये कोशिकाये स्पंज के समान होती है, और पुरूष में कामभावना उत्पन्न होने पर इन स्पंजनुमा कोशिकाओ में खून भर जाने के कारण ही लिंग खड़ा(टाइट ) हो जाता है ।एक बार काम उतेजना हो जाने के पश्चात इन कोशिकाओ में भरा खून वापस शरीर मे पहुँच जाता है तथा लिंग मुर्झाकर अपनी सामान्य अवस्था मे आ जाता है।
शिश्न मुंड (लिंग का अग्रभाग )
महर्षि वात्स्यान का कहना है कि यद्यपि सम्भोग करते समय सम्पूर्ण लिंग ही स्त्री की यौनी में प्रवेश कर जाता है ,लिंग द्वारा ही नारी की यौनि मार्ग की दीवारों और अंदरुनी भागो तथा यौनि द्वार पर स्थित भंगाकुर या मटर (clitoris) पर की जाने वाली रगड़ ही नारी को संभोग का चरम आंनद प्रदान करती है। पुरूष का संपूर्ण लिंग समान रूप से संवेदनशील (sensitive) नही होता ।महर्षि वात्सयान का कहना है कि पुरुषों के लिंग का अग्रभाग जिसे शिश्नमुंड कहा जाता है वो सबसे अधिक संवेदनशील (sensitive)होता है। शिश्नमुंड का आकार सुपारी के समान आगे अर्धगोलाकार और बीच मे उठा हुआ होता है ।अपने इसी विशेष आकार के कारण संभोग के समय नारी के यौनिपथ को फैलाकर रास्ता बनाता हुआ सम्पूर्ण लिंग स्त्री की यौनी में प्रवेश कर जाता है ।जैसे आगे से नुकीली होने के कारण नाव जल को चीरती हुई पानी मे आगे बढ़ती है। यह शिश्नमुंड ढीली ढीली त्वचा से एक टोपी की तरह ढका होता है। जब लिंग खड़ा होता है तब यह खाल पीछे कि ओर खिंच जाती है ।जब शिश्नमुंड से यह त्वचा की टोपी खड़ा होने पर हटती है तभी संभोग कर पाते है ऐसा आचार्य का कथन भी है और हमारे जीवन का नित्य अनुभव भी।