शांतनु का जन्म कैसे हुआ? शांतनु की कथा रोचक है।
शांतनु का जन्म कैसे हुआ? शांतनु की कथा रोचक है।
प्राचीन काल में महाभिष नामक एक प्रतापी राजा हुए थे। उन्होंने इतने सारे पुण्य-कार्य किये कि उन्हें स्वर्ग बुला लिया गया एवं उन्हें देवताओं जैसे अधिकार एवं मान-सम्मान के योग्य माना गया। वे कल्पतरु, कामधेनु, चिंतामणि आदि कामना पूरी कर सकनेवाले वृक्ष, गाय एवं रत्न, जो देवलोक में, इन्द्र के पास सुरक्षित थे, वहाँ भी बेरोकटोक आ-जा सकते थे।
एक दिन इन्द्र की सभा में गंगा, जो एक अप्सरा थींं, आईं। अचानक हवा के झोंके से उनका आँचल खिसक गया और वे शरीर के ऊपरी हिस्से से अनावृत-सी हो गईंं। सभी देवताओं ने, शिष्टाचार-वश, तत्काल अपनी आँखें नीची कर लीं, किंतु महाभिष गंगा के सौंदर्य में, इतने खो गए कि बस देखते ही रह गए।
सभा की, संसद की मर्यादा भंग होने से, इंद्र कूपित हो गए।
उन्होंने महाभिष को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया और पृथ्वी पर मनुष्य-योनि में जन्म लेने का आदेश दिया। गंगा को भी मनुष्य-योनि में जन्म लेने एवं महाभिष का दिल तोड़ने का आदेश दिया गया।
महाभिष ने ब्रह्मा जी से अनुरोध किया कि, उन्हें हस्तिनापुर के पुरुवंशी सम्राट प्रतीप के घर, उनके पुत्र-रूप में जन्म लेने की सुविधा प्रदान की जाए। ऐसा ही हुआ। वे प्रतीप के छोटे बेटे शांतनु कहलाये।
प्रतीप के वानप्रस्थ-जीवन में प्रवेश करने के बाद, उन्हें सिंहासन पर बैठाया गया, क्योंकि बड़े भाई देवापि, कुष्ठ-रोग से पीड़ित होने के कारण, सिंहासन के अयोग्य बताए गये। वे वन में चले गए। मंझले भाई वाह्लीक, अपने मामा के राज्य, बाल्ख के उत्तराधिकारी बने।
इधर एक दिन, प्रतीप, जब एक नदी किनारे, ध्यान-मग्न बैठे थे, तभी, एक सुंदर युवती, आकर, उनकी दाँयी जाँघ पर बैठ गई।
प्रतीप ने आश्चर्य से पूछा कि तुम यदि मेरी बाँयी जाँघ पर बैठती, तो इसका अभिप्राय होता कि तुम मेरी पत्नी बनना चाहती हो, किंतु तुम मेरी दाँयी जंघा पर बैठी हो, इसका अभिप्राय हुआ तुम मेरी पुत्री-समान हो। तुम कौन हो ? क्या चाहती हो ?
गंगा ने शांतनु की पत्नी एवं उनके पुत्र-वधू. होने की इच्छा जताई। प्रतीप ने इसकी स्वीकृति दे दी।
संयोग से नदी किनारे टहलते हुए, शांतनु ने, एक दिन, गंगा को देखा और आकर्षित होकर, उन्होंने विवाह का प्रस्ताव दिया।
गंगा ने इस शर्त पर इसे स्वीकार किया कि शांतनु, उसे कभी, किसी कार्य से रोकेंगे नहीं, टोकेंगे नहीं, अन्यथा वह, उन्हें छोड़ कर चली जाएगी।
समय के साथ उनके आठ बच्चे हुए, किंतु जन्म के बाद, गंगा, उन्हें नदी डुबोती गई और शांतनु मन मसोस कर रह गए।
इस प्रकार सात पुत्रों को खोने के पश्चात्, आठवें पुत्र को बचाने के लिए, वे आगे आए।
उन्होंने गंगा को रोका और पूछा कि तुम ऐसा क्यों कर रही हो ?
गंगा ने, उन्हें बताया कि, उसके आठों पुत्र, पूर्व जन्म में आठ वसु थे, जिन्हें, वशिष्ठ मुनि की गाय चुराने के आरोप में, मनुष्य-योनि में जन्म लेने का शाप मिला था।
उन सबों ने गंगा से प्रार्थना की थी कि वे, उन्हें, उनके शाप से शीघ्र मुक्ति दिला दें, ताकि उन्हें पृथ्वी पर अधिक समय के लिए टिकना नहीं पड़े।
गंगा ने माँ बन कर, उनकी इच्छा पूरी की और उन्हें जन्म के साथ ही डुबोती रहीं। आठवां वसु का दोष अधिक था। अतः उसे लम्बी अवधि की सजा, धरती पर, रह कर काटनी है।
अतः उनका आठवां पुत्र जीवित रहेगा, किंतु उसके समुचित लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा के लिए, वह उसे अपने साथ ले जाएगी। जब वह अठारह वर्ष का हो जाएगा, तो उसे, उसके पिता के पास, भेज देगी।
वही बालक देवव्रत आगे चल कर भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुआ।