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सोशल मीडिया— एक नया रोग

सोशल मीडिया— एक नया रोग

केस-1

वंदना आर्या ने अभी कुछ माह पहले ही शिक्षिका के रूप में स्कूल में कार्यरत हुई। अपनी जॉइनिंग वाली फोटो फ़ोटोशॉप करके फ़ेसबुक और व्हाट्सएप स्टेटस पर पोस्ट किए जिन्हें बहुत लाइक्स मिले। वंदना आर्या जानती थी कि वह असल में यह सब बिल्कुल भी ग़लत है। फ़ोटो शेअर का सिलसिला चलता रहा। कभी स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हुए फोटो तो कभी अपने साथ कार्यरत अन्य शिक्षाकाओं के साथ इंजॉय करती हुई फोटो …. और काफी सारे लाइक्स भी मिलते रहे। लेकिन वंदना आर्या को भय है कि यदि उसके दोस्तों ने उसे असलियत में देख लिया तो क्या होगा??? क्योंकि उसका असली नाम “रीना कुमारी” है जिसकी आयु 39 साल है और नाम बदलने के बाद “वंदना आर्या” मात्र 28 साल ही है , भला वंदना आर्या बनने के बाद वह अपने 17 वर्षीय बेटे को कैसे स्वीकार करगी …. इसी तरह के घेरे सवाल उसके दिमाग में उथल-पुथल कर रहे थे।और बस, यही डर उसे अब अकेले और घर में कैद रहने के लिए मज़बूर कर रहा है और वह एकांत प्रिय हो गई है।

केस-2

संगीता एक विलक्षण प्रतिभा की धनी लड़की थी। वह एक होनहार विद्यार्थी थी लेकिन दिखने में अत्यंत साधारण थी। उसे कोई फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं आती थी और न ही उसके फ़ोटो को कोई ज़्यादा लाइक्स मिलते थे। जबकि उसकी फ्रेंड्स के हज़ारों फेसबुक फ्रेंड्स हैं और उनके फ़ोटो पर सैकड़ों लाइक्स और तारीफ़ से भरे कमेंट्स हैं। ये बातें किरण को अवसाद में धकेल रही हैं और इन सबसे अब उसकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है।

केस-3

एम.बी.ए. करने के बाद अभिमन्यु के सभी दोस्त अपने-अपने जॉब या स्वयं के बिज़नेस करने लगे। वे सभी फ़ेसबुक से जुड़े हुए हैं। अभिमन्यु की न अच्छी जॉब लगी न उसका बिज़नेस अच्छे से चल रहा है। अब रोज़ाना उसके दोस्त अपनी कामयाबी की पार्टियों के फ़ोटो, तो कभी छुट्टियों के टूर्स के फ़ोटो, नई कारों के फ़ोटो और शानदार बंगले या ऑफ़िस के फ़ोटो फेसबुक पर पोस्ट करते हैं। यह देखकर अभिमन्यु हीन भावना (Inferiority Complex) से पीड़ित हो गया है और उसका वज़न लगातार बढ़ता जा रहा है।

केस-4

वंदना को वाट्सएप और फेसबुक का लगभग नशा-सा हो गया है। वह बहुत ज़्यादा समय मोबाइल पर बिताती है – वह भी गर्दन को झुका कर। आज वंदना को बड़ा-सा चश्मा लग चुका है। सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस के कारण उसके हाथों, गर्दन और सिर में दर्द हो रहा है। असहनीय पीड़ाएँ भुगतने के बावजूद उसका सोशल मीडिया से प्रेम जस का तस है।

केस-5

अमन ने ट्विटर पर एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ ट्वीट किया। जिस पर उस समुदाय के यूज़र्स ने उसे बहुत गालियाँ पोस्ट की, धमकियाँ दीं। यहाँ तक कि उसे जान से मारने की तथा उसके घर वालों को भी मारने की बातें पोस्ट की। इस घटना के बाद अमन उस समुदाय विशेष के लोगों को देखकर डर जाता है। उसे यह लगता है कि कहीं ये लोग उस पर अचानक हमला नहीं कर दें और वह अपनी बॉडी लैंग्वेज़ भी बचाव वाली बनाकर चलने लगा है। डर दिन ब दिन हावी होता जा रहा है।

नोट—- आज के लेख में जो भी नाम और स्थान का जिक्र किया जा रहा है वह मात्र एक काल्पनिक है केवल आपके समझाने के उद्देश्य से इसका प्रयोग किया गया है। उपरोक्त सच्चे मामले मैंने नाम बदलकर यहाँ आपको समझाने के लिए प्रस्तुत किए हैं। इस प्रकार के केस मुझे मेरी प्रैक्टिस के दौरान ट्रीट करने के लिए अब आए दिन मिलते हैं।

1971 में पहला ई-मेल भेजा गया था और ये दुनिया के लिए एक नया मोड़ था। आज 45 वर्षों बाद हम एक नई दुनिया में हैं और हमारी ज़िंदगी को सोशल मीडिया के अंधड़ ने झकझोर कर रख दिया है। आज सोशल मीडिया का प्रयोग 4 में से 1 व्यक्ति कर रहा है और इस एक सोशल मीडिया यूज़र्स की दुनिया तीन नॉन यूज़र्स की दुनिया से बिलकुल अलग है।

वास्तविकता से परे सपनों की छद्म आभासी दुनिया का नाम है सोशल मीडिया। आज हमारे गरीब और कम पढ़े-लिखे लोगों के देश में करोड़ों सोशल मीडिया यूज़र्स हैं। क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी इस नई दुनिया की रोज़ाना घंटों सैर करते हैं। कई लोग इससे अपार लाभ उठाते हैं, तो कई अपने लिए मुसीबत को बुलावा दे रहे हैं।

सच से परे हमें आभासी दुनिया (Virtual world) में रोमांच मिलता है। उस दुनिया में हम वह सब कुछ कर सकते हैं, जो हमारी हक़ीक़त की ज़िंदगी में संभव नहीं होता। जैसे : आप शाहरुख खान को उनकी वॉल पर जाकर हग करने की रिक्वेस्ट कर सकते हैं। आप अमेरिका के राष्ट्रपति के सामने उनके ट्विटर अकांउट पर किसी मुद्दे पर अपनी राय रख सकते हैं, आप एमा वाटसन से उनकी पोस्ट पर टिप्पणी के मार्फत डेट का आग्रह कर सकते हैं आदि… आदि।

आप अपनी बेबाक राय विभिन्न विषयों पर रख देते हैं। आप किसी को भला-बुरा कह सकते हैं। आप अपशब्द लिख देते हैं। आप किसी भी खूबसूरत युवती को तारीफ़ कर सकते हैं। आप किसी लड़के को स्मार्ट या चिरकुट जैसे तमगे से नवाज़ सकते हैं। चाहे आप में हक़ीक़त में या यूँ कहें किसी के सामने ये सब कहने की हिम्मत नहीं हो। यही वह कारण है, जो कि युवाओं को आकर्षित करके उन्हें इसका आदि बनाता है जैसा कि नशे की चीज़ों की व्यक्ति को लत लग जाती है।

फेसबुक का मिशन स्टेटमेंट पढ़ें :

“To give people the power to share and make the world more open and connected.” अर्थात “लोगों को शेअर करने की ताक़त देना तथा दुनिया को और अधिक खुला एवं जुड़ा हुआ बनाना।”

हक़ीक़त में सोशल मीडिया हमारे सामने एक बहुत ही वृहद् सोसायटी को खोलता है या उसका आभास करवाता है। मैं अपने ही बारे में कहूँ तो मैं बचपन में उज्जैन के पास एक छोटे से गाँव का शर्मीला सा बच्चा था। मेरी सोसायटी या सर्कल था मेरे गाँव के भोले-भाले और खिलंदड़ मित्र। फिर मैं हाई और हायर सेकंडरी स्कूल में कुछ और मित्रों से जुड़ा। फिर मेडिकल की पढ़ाई के दौरान मेरी और मित्रों से दोस्ती हुई, लेकिन फेसबुक और ट्विटर से मेरे मित्रों का दायरा अंनत हो गया। अब मेरे मित्रों (आभासी) में फ़िल्मी हीरो, नेता, समाजसेवी, वैज्ञानिकों से लेकर मंत्री और नोबेल पुरस्कार प्राप्त महान विद्वान भी शामिल हो गए हैं।

इतने बड़े दायरे जब हमें मिलते हैं तो हम उन्हें अपना सच्चा दोस्त मानने लगते हैं। फिर उनकी ज़िंदगी से अपनी ज़िंदगी की तुलना करते हैं और उनके जैसे जिंदगी जीने की कोशिश करते हैं और अपनी ज़िंदगी में एक नई उलझन पैदा कर लेते हैं

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