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गजानन “एकदन्ती” बनने की रहस्यमयी कथा: जब परशुराम के परशु से टूटा गणेश जी का दांत

🕉️ गजानन “एकदन्ती” बनने की रहस्यमयी कथा: जब परशुराम के परशु से टूटा गणेश जी का दांत

✨ एक अपूर्व वैदिक प्रसंग ✨

गणेश जी का एकदन्ती स्वरूप हर भक्त के मन में एक जिज्ञासा जगाता है—आखिर क्यों और कैसे उनका एक दांत टूटा? इस कथा में केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि आत्मिक अनुशासन, शिष्य-गुरु संबंध, और ईश्वरीय लीला की अद्भुत झलक है।


⚔️ परशुराम का क्रोध और पुत्रों का वध

जब भगवान परशुराम ने राजा कार्तवीर्य अर्जुन का वध किया, तब उसके सौ पुत्रों ने बदले की भावना से परशुराम पर आक्रमण किया। परशुराम ने अपने दिव्य परशु से 95 पुत्रों का अंत कर दिया, और शेष पाँच भयभीत होकर भाग खड़े हुए।


🚪 शिवद्वार पर बालक गजानन की टक्कर

परशुराम, शिवजी से मिलने शिवलोक पहुँचे। द्वार पर गणेश जी द्वारपाल के रूप में नियुक्त थे, जो उस समय माता पार्वती और शिवजी के विश्राम के कारण किसी को भीतर नहीं जाने दे रहे थे।

गणेश जी ने परशुराम से आग्रह किया कि वे कुछ समय प्रतीक्षा करें। परंतु परशुराम उन्हें बालक समझ कर तिरस्कार करने लगे और बलपूर्वक अंदर जाने की कोशिश की।


🛡️ जब टकरा गया गुरु का परशु शिष्य से

गणेश जी ने रास्ता रोका, विवाद हुआ, और बात युद्ध तक जा पहुँची। परशुराम का क्रोध भड़क उठा और उन्होंने गणेश पर परशु से वार कर दिया। गणेश जी ने अपने बाएं दांत से उस प्रहार को सह लिया — क्योंकि वह परशु उनके पिता शिवजी का दिया हुआ था

गणेश जी ने पिता के अस्त्र का अपमान न हो, इस भाव से उस प्रहार को झेला।


🌍 एक दांत गिरा, कांप उठी धरती

जैसे ही परशु गणेश जी के बाएं दांत से टकराया, वह दांत टूटकर धरती पर गिर पड़ा। पूरी पृथ्वी डोल उठी, देवता भयभीत हो गए, और कार्तिकेय भी रो पड़े।

शिव और पार्वती बाहर आए, और गणेश जी की अवस्था देखकर पार्वती क्रोधित हो उठीं। उन्होंने परशुराम की इस करतूत की तीखी निंदा की।


🙏 श्रीकृष्ण का आगमन और सौहार्द का समाधान

स्थिति इतनी विकट हो गई कि शिवजी ने भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया। श्रीकृष्ण प्रकट हुए और पूरे वातावरण को शांत किया।

उन्होंने घोषणा की:

“जैसे गणेश जी पहले गजानन कहलाए, आज से वे एकदन्ती और वक्रतुंड भी कहे जाएंगे। वे सर्वप्रथम पूज्य होंगे, देवताओं से पहले पूजे जाएंगे, और संकट मोचक कहलाएंगे।”

पार्वती प्रसन्न हुईं और परशुराम को भी श्रीकृष्ण ने तपस्या की ओर प्रवृत्त किया।


🧘 तात्त्विक संदेश

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि—

  • गुरु का सम्मान आवश्यक है, लेकिन शिष्य की मर्यादा भी कम नहीं।

  • मन, क्रोध और ईगो जब नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, तो महान भी अपमानित हो सकते हैं।

  • शांति और विवेक ही किसी भी परिस्थिति को सुलझाने का माध्यम बनते हैं।


🪔 निष्कर्ष

“एकदन्त” केवल गणेश जी का एक नाम नहीं, बल्कि एक लीला, त्याग, और धैर्य की प्रतीक कथा है।

आज जब भी हम श्रीगणेश की पूजा करते हैं, उनके टूटे हुए दांत में छिपा बलिदान और विवेक का स्मरण जरूर करें।


🕉️ जय श्रीगणेशाय नमः 🙏

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