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सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “मोक्षधर्मनिरूपण” नामक {सोलहवां अध्याय}

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “मोक्षधर्मनिरूपण” नामक {सोलहवां अध्याय} मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा, धर्माचरण ही मुख्य कर्तव्य, शरीर और संसार की दु:खरूपता तथा नश्वरता, मोक्ष-धर्म-निरूपण गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – हे दयासिन्धो ! अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरणरूपी संसार चक्र में पड़ता है, यह मैंने सुना। [...]

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “सुकृतिजनजन्माचरणनिरुपण” नामक {पंद्रहवां अध्याय}

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “सुकृतिजनजन्माचरणनिरुपण” नामक {पंद्रहवां अध्याय} धर्मात्मा जन का दिव्यलोकों का सुख भोगकर उत्तम कुल में जन्म लेना, शरीर के व्यावहारिक तथा पारमार्थिक दो रूपों का वर्णन, अजपाजप की विधि, भगवत्प्राप्ति के साधनों में भक्ति योग की प्रधानता गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – धर्मात्मा व्यक्ति [...]

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “धर्मराजनिरुपण” नामक {चौदहवां अध्याय}

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “धर्मराजनिरुपण” नामक {चौदहवां अध्याय} यमलोक एवं यम सभा का वर्णन, चित्रगुप्त आदि के भवनों का परिचय, धर्मराज नगर के चार द्वार, पुण्यात्माओं का धर्म सभा में प्रवेश गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – हे दयानिधे ! यमलोक कितना बड़ा है? कैसा है? किसके द्वारा [...]

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) {तेरहवां अध्याय} “सपिण्डनादि-सर्वकर्मनिरुपण” नामक

सम्पूर्ण गरुड़ पुराण (हिन्दी में) “सपिण्डनादि-सर्वकर्मनिरुपण” नामक {तेरहवां अध्याय} अशौचकाल का निर्णय, अशौच में निषिद्ध कर्म, सपिण्डीकरण श्राद्ध, पिण्डमेलन की प्रक्रिया, शय्यादान, पददान तथा गया श्राद्ध की महिमा गरुड़ उवाच गरुड़जी ने कहा – हे प्रभो! सपिण्डन की विधि, सूतक का निर्णय और शय्यादान तथा पददान की सामग्री एवं उनकी [...]