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वरद लक्ष्मी व्रत आज

सावन के आखिरी शुक्रवार को है वरद लक्ष्मी व्रत 

सावन के आखिरी शुक्रवार को रखा जाने वाला वरलक्ष्मी व्रत बहुत  विशेष माना जाता है।  वरलक्ष्मी अर्थात वर देने वाली लक्ष्मी। मान्यता है कि जो लोग वरलक्ष्मी व्रत रखकर धन की देवी की पूजा करते हैं उन्हें सालभर धन की कमी नहीं होती। हिन्दू धर्म की सभी विवाहित महिलाएं इस दिन वरलक्ष्मी व्रत करती है और मां वरलक्ष्मी  की पूजा की जाती है।
वरलक्ष्मी में वर का अर्थ वरदान देने वाली से है। इस बार वरलक्ष्मी व्रत  16 अगस्त 2024 को रखा जाएगा। मान्यता है कि यह व्रत श्रावण मास के अंतिम शुक्रवार को किया जाता है। इस व्रत को करने से भक्तों की दरिद्रता दूर होती है और उन पर माता रानी की कृपा होती है।  इस वरलक्ष्मी के व्रत को अधिकतर दक्षिणी भारत के लोग मानते है। इस दिन विवाहित महिलाएं इस व्रत को करती हैं। इस व्रत को वरद लक्ष्मी व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं।
Varad Laxmi Vrat: अपना घर सोने से भरना है तो कल अवश्य करें ये काम - varad  laxmi vrat-mobile
वरलक्ष्मी व्रत की तिथि 
वरलक्ष्मी व्रत 16 अगस्त 2024 को सावन के आखिरी शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन एकादशी तिथि भी है। मान्यता है कि जो भी जातक वरलक्ष्मी व्रत रखता है उसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति के जीवन से दरिद्रता दूर हो जाती है। उसकी आने वाल पीढ़ी भी सुखमय जीवन बिताती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व
वरलक्ष्मी व्रत मां लक्ष्मी को समर्पित व्रत है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं। हालांकि, वरलक्ष्मी व्रत के उत्सव के रूप में पारंपरिक रूप से कुछ अनुष्ठान किए जाते हैं, लेकिन मुख्य रूप से इस पर्व की आध्यात्मिकता पर ध्यान देना चाहिए।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी उर्वरता, उदारता, प्रकाश, ज्ञान, धन और भाग्य की संरक्षक देवी हैं। महिलाएं देवी से स्वस्थ संतान और अपने पति के लिए लंबी आयु का आशीर्वाद मांगती हैं। महिलाएं वरलक्ष्मी व्रत मनाती हैं, जो मुख्य रूप से महिलाओं का उत्सव है। मान्यता है कि शुक्रवार मां लक्ष्मी को समर्पित है लेकिन सावन में आने वाला आखिरी शुक्रवार देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इस दिन देवी वरलक्ष्मी की पूजा करने से करने से अचल संपत्ति प्राप्त होती है।
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नान करें।
अब पूजा स्थल को शुद्ध करने के लिए स्थान पर गंगाजल छिड़कें।
अब मां वरलक्ष्मी का शयन करते हुए व्रत रखने का संकल्प लें।
इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
तस्वीर के बगल में थोड़े से चावल रखें और उसके ऊपर एक कलश में जल भर दें।
इसके बाद पूजन करते समय  श्री गणेश को पुष्प, दूर्वा, नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, माला अर्पित करें।
मां वरलक्ष्मी को सोलह श्रृंगार अर्पित करें।
अब मिठाई का भोग लगाएं।
इसके बाद धूप और घी का दीपक जलाकर मंत्र पढ़ लें।
पूजा के बाद वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें।
अंत में आरती करके सभी के बीच प्रसाद का वितरण कर दें।
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा सामग्री
मां वरलक्ष्मी की पूजा करने से पहले नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, कलश, लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धूपस माला, हल्दी, मौली, दर्पण, कंघा, आम के पत्ते, पान के पत्ते, दही, केले, पंचामृत, कपूर दूध और जल एकत्रित कर लें।
वरलक्ष्मी व्रत का दान 
माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सावन महीने के आखिरी शुक्रवार को गुड़, तिल, चावल, खीर, केसर, हल्दी, नमक और जरुरतमंद लोगों को कपड़ों का दान करना चाहिए। इसके साथ ही  गाय का पूजन करें और चारा खिलाएं।
वरलक्ष्मी व्रत कथा
पौराणिक समय मैं मगध राज्य में कुण्डी नामक एक नगर था। पुरातन काल की कथाओं के अनुसार स्वर्ग की कृपा से इस नगर का निर्माण हुआ था। यह नगर मगध राज्य के मध्य स्थापित था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी चारुमति अपने परिवार के साथ रहती थी। चारुमति कर्त्यव्यनिष्ठ नारी थी जो अपने सास, ससुर एवं पति की सेवा और माँ लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत करती थी।
एक रात्रि में माँ लक्ष्मी ने उस महिला से प्रसन्न होकर उसे स्वप्न में दर्शन दिए और उसे वर लक्ष्मी नामक व्रत से अवगत कराया। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हे मनोवांछित फल प्राप्त होगा।
अगले सुबह चारुमति ने माँ लक्ष्मी द्वारा बताये गए वर लक्ष्मी व्रत को समाज की अन्य नारियों के साथ विधिवत पूजन किया। पूजन के संपन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय समस्त नारियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए।
उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके यहां घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियां चारुमति की प्रशंसा करने लगें। क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत विधि के बारे में बताई थी।
कालांतर में यह कथा भगवान शिव जी ने माता पार्वती को सुनाई थी। इस व्रत को सुनने मात्र से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175

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