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✨ पुण्य और कर्तव्य: एक विचारणीय कथा

पुण्य और कर्तव्य: एक विचारणीय कथा

कभी-कभी हम पुण्य कमाने की चाह में अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि स्वार्थहीन सेवा से भी बड़ा धर्म होता है — कर्तव्य का सही निर्वहन

एक पुण्यात्मा व्यक्ति अपने परिवार के साथ तीर्थ यात्रा पर निकला। गर्मी का मौसम था, प्यास से व्याकुल परिवार की स्थिति बिगड़ने लगी। तभी एक साधु से मार्गदर्शन मिला — “एक कोस दूर उत्तर दिशा में एक छोटी नदी है।” वह व्यक्ति पानी लेने निकल पड़ा।

रास्ते में उसे प्यासे लोग मिलते गए और वह बार-बार अपना पानी दूसरों को पिलाता रहा। उसका यह निस्वार्थ कार्य भले ही पुण्य था, लेकिन उसका परिवार अब तक प्यासा ही था।

साधु जब स्वयं यह दृश्य देखता है, तो उसे एक गहरा सत्य समझाता है —
“पानी बाँटना पुण्य है, पर अपने कर्तव्य की अनदेखी मूर्खता है। अगर तुम सबको दरिया का रास्ता बता देते, तो सबकी प्यास बुझती और तुम्हारा कर्तव्य भी पूरा होता।”

यह कहानी हमें यही सिखाती है कि —

“सबसे बड़ा पुण्य है सही ज्ञान का मार्ग बताना।”

प्यासे को जल देना महान है,
पर उसे जल का स्रोत दिखाना उससे भी बड़ा उपकार है।

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