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देवता नाराज़ क्यों हुए? — एक सवाल जो हमें झकझोर देता है

देवता नाराज़ क्यों हुए? — एक सवाल जो हमें झकझोर देता है

हमारे समाज में आज भी कुछ ऐसी परंपराएं और मान्यताएं हैं, जिन पर हम सवाल नहीं उठाते — लेकिन उनके पीछे छुपा सच कई मासूम दिलों को तोड़ देता है।
यह कहानी ऐसी ही एक मासूम बच्ची दिव्या और उसके प्यारे दोस्त बाबू की है — जो सिर्फ एक बकरा नहीं था, बल्कि उसका सबसे प्यारा साथी था।


🐐 बाबू: सिर्फ बकरा नहीं, दिव्या का दोस्त

दिव्या के घर में बाबू नाम का एक बकरा था। उसके गले में घंटी बंधी रहती थी — जैसे ही घंटी बजती, पूरे घर को पता चल जाता कि बाबू आ रहा है।
बाबू पूरे घर में आज़ादी से घूमता, दिव्या के स्कूल लौटने तक दरवाज़े पर इंतज़ार करता और फिर दोनों का रोज़ का खेल शुरू होता — टमाटर खिलाना, नहलाना, और उसका पानी झटक कर भाग जाना।

लेकिन एक दिन सब बदल गया…


🕉️ परंपरा का नाम और टूटता भरोसा

उस दिन दिव्या स्कूल से लौटी तो बाबू उसे लेने दरवाज़े पर नहीं आया। पूछने पर पता चला कि दादा-दादी उसे पास के मंदिर ले गए हैं।
थकी दिव्या सो गई — लेकिन शाम होते ही उसे बाबू की घंटी की आवाज़ नहीं, बल्कि दादा जी का गीला हाथ मिला, जो उसे उठाकर मंदिर ले जाने को कह रहे थे।

मंदिर में भीड़ थी। बाबू खड़ा था — माथे पर तिलक, गले में माला। लोग उसके ऊपर पानी डाल रहे थे ताकि वह पानी झटक दे — क्योंकि गांव में मान्यता थी कि जब तक बकरा पानी नहीं झटकता, तब तक बलि नहीं दी जा सकती।


💔 मासूमियत का आख़िरी खेल

लोगों ने दिव्या से कहा — बाबू तेरा दोस्त है, उसे पानी झटकने के लिए तैयार कर।
दिव्या ने कांपते हाथों से बाबू को सहलाया, टमाटर खिलाया। बाबू ने टमाटर खाया, रस पूरे चेहरे पर लग गया — दिव्या ने उसे साफ किया, वही रोज़ का खेल।

लेकिन इस बार खेल का अंत अलग था।

दिव्या की भीगी आँखों में बाबू ने देखा — और उसने अपना शरीर झटका दिया। भीड़ खुशी से झूम उठी। घंटी दिव्या को लौटा दी गई — बाबू मंदिर के पीछे ले जाया गया।
दो मिनट बाद एक चीख सुनाई दी — फिर सब शांत हो गया।


⚰️ कौन से देवता नाराज हुए?

गांव में रात को भोज हुआ — बलि सफल हुई, सबने खाना खाया।
लेकिन अगली सुबह — दिव्या की अर्थी उठी।

गांव में कोई नहीं समझ पाया — अब कौन से देवता नाराज हुए, जिन्होंने उस मासूम को छीन लिया?
क्या देवता कभी मासूमों का दर्द मांगते हैं?


🕊️ असली सवाल — हम कब जागेंगे?

कहानी यहीं खत्म नहीं होती — यह हमसे सवाल पूछती है:

  • क्या बलि से बारिश आती है या डर से हम मासूमों का भरोसा मारते हैं?

  • क्या ईश्वर हिंसा चाहते हैं या करुणा?

  • क्या हमारी परंपराओं में बदलाव संभव नहीं?

दिव्या और बाबू हमें याद दिलाते हैं कि बच्चों का भरोसा सबसे पवित्र चीज़ है। उसे तोड़ने का हमें कोई हक नहीं।


क्या सीखें?

👉 किसी भी अंधविश्वास या रिवाज के नाम पर मासूमियत की बलि मत चढ़ाइए।
👉 बच्चों के सवाल सुनिए — जवाब दीजिए, बहलाइए मत।
👉 जानवरों के जीवन का भी उतना ही हक़ है जितना हमारा — बिना वजह उनकी आहुति न दें।
👉 अगर समाज को बदलना है, तो पहली शुरुआत घर से करें — अपने बच्चों से करें।


🌿 आइए — बदलाव लाएं

दिव्या और बाबू की कहानी को हर घर में सुनाइए — ताकि अगली बार कोई देवता नाराज न हो — क्योंकि असली देवता तो हमारे भीतर की दया और करुणा ही हैं।

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